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शरद पूर्णिमा 2021 में कब हैं | Sharad Purnima 2021 Mein Kab Hai date

Sharad Purnima 2021 : गुलाबी सर्दी की अनुभूति शरद पूर्णिमा के दिन से होती है. हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि के समापन के पांचवे दिन आने वाली पूर्णिमा को ही ‘शरद पूर्णिमा’ कहा जाता है. शरद पूर्णिमा सनातन कैंलेडर के अनुसार आश्विन माह में आती है. इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहा हैं. इस दिन किए जाने वाले व्रत को कोजागर व्रत या कौमुदी व्रत भी कहते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था. प्राचीन पुराणों में उल्लेखित है कि इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता हैं. उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी  की रोशनी में रखने की परंपरा है. पूरे वर्ष में केवल इस दिन चन्दमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बेहद ही शुभ माना जाता है. चलिए इस पोस्ट में हम जानते है की 2021 में शरद पूर्णिमा कब है (Sharad Purnima 2021 Mein Kab Hai date) और इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है ?

फोटो सोर्स गूगल

शरद पूर्णिमा 2021 में कब हैं | Sharad Purnima 2021 Mein Kab Hai date

2021 mein Sharad Purnima Kab Hai- शरद पूर्णिमा की शुरुआत आश्विन शुक्ला में 19 अक्टूबर 2021, मंगलवार को आएगी. हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है. प्राचीन मान्यताओं की मानें तो इस दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था. रिति रिवाजों के अनुसार शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) का पूजन किए जाने की मान्यता है.

शरद पूर्णिमा के दिन पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में  कुवांरी बालिकाएं सुबह स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं. किदवंति है कि, इस दिन सच्ची श्रद्धा से पूजन करने पर मनचाहा वर की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में उल्लेखित है कि इस दिन शिव पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ था.

इसलिए शरद पूर्णिमा को ‘कुमार पूर्णिमा’ भी कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की विशेष रोशनी पृथ्वी पर गिरती है यह रोशनी  शरीर को रोग मुक्त रखती है. इसलिये इस रात्रि को खीर बनाकर चन्द्रमा की चांदनी में रखा जाता है जिसके बाद प्रसार के रुप में इसका सेवन किया जाता है.

शरद पूर्णिमा 2021 व्रत, पूजन विधि (Sharad Purnima Significance)

इस पूर्णिमा को विशेष रूप से लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है. शरद पूर्णिमा के रोज व्रत रखने से रोगों से मुक्ति मिलती है. इस व्रत में सुबह विधिपूर्वक स्नान करके ताँबे या मिट्टी के कलश पर माता लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित की जाती है. जिसके बाद पश्चात अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य, पान, सुपारी, नारियल आदि से पूजन की जाती है. फिर संध्याकाल में चन्द्रोदय पर 100 दीपक जलाए जाने की मान्यता है. इतना ही नहीं  खीर बनाकर उसे चन्द्रमा की रोशनी में रखा जाता है. पूर्णिमा की रात को मांगलिक भजन कर रात्रि जागरण किया जाता है.

शरद पूर्णिमा 2021 पूजा का मुहूर्त-Sharad Purnima 2021 Puja Muhurat

जैसा की हमारे द्वारा आपकों उपरोक्त आर्टिकल में बताया गया कि, साल 2021 में शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर की है, इसका शुभ मुहूर्त और समय कुछ इस प्रकार है- 

  • शरद पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 19 अक्टूबर 2021 को शाम 07 बजकर 45 मिनट
  • शरद पूर्णिमा तिथि समाप्त: 20 अक्टूबर 2021 को रात्रि 8 बजकर 18 मिनट
  • शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रोदय: 19 अक्टूबर 2020 को 8 बजकर 12 मिनट

शरद पूर्णिमा की कथा

पौराणिक कथाओं की मानें तो एक नगर में एक साहुकार रहता था. जिसकी दो बेटियां थी. साहुकार की दोनों बेटियों का धर्म-कर्म में ध्यान रहता है और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. बड़ी बेटी हमेशा अपना व्रत पूरा करती थी और छोटी बेटी व्रत अधूरा ही करती थी. एक समय बाद  दोनों की शादी हो गई.

बड़ी बेटी ने स्वस्थ संतान को जन्म दिया. लेकिन छोटी बेटी की संताने पैदा होने के उपरांत मर जाती थी. इस कारण से दुखी साहुकार की छोटी बेटी पंडित के पास पहुंची. पंडित ने कहा कि आपने पूर्णिमा का व्रत हमेशा अधूरा किया. इसलिए आपकी संताने जन्म लेते ही मर जाती हैं. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से आपकी संतान जीवित रह सकती हैं.

उसने ऐसा ही किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दीया. बड़ी बहन जब वहां बैठी हुई थी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया.

बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा. यह देखकर बड़ी बहन हैरान हो गई और कहा कि तुमने अपने बेटे को यहाँ क्यों सुला दिया. अगर वह मर जाता है तो मुझ पर कलंक लग जाता. तुम क्या चाहती थी. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तुम्हारे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तुम्हारा पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. उसके बाद नगर में उसने अपनी कहानी बताई तथा पूर्णिमा का विधिवत पूरा व्रत करने की विधि बताई.

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