आज मैं आपको अपनी ब्लॉग यात्रा में एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसको भगवान शंकर की उपनगरी कहा जाता है और वो स्थान है "माउंट आबू"। यह स्थान बड़ा ही अद्भुत स्थान है।
माउंट आबू |
वाराणसी भगवान शंकर की नगरी कही जाती है जहां के बारे में पौराणिक मान्यता है कि भगवान शंकर यहां के कण-कण में विराजमान हैं। दूसरी तरफ राजस्थान के माउंटआबू को अर्धकाशी माना जाता है। स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में इस नगरी को भगवान शंकर की उपनगरी भी कहा जाता है। यहां छोटे-बड़े मिलाकर भगवान शंकर के 108 मंदिर है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि कहा जाता है कि वाराणसी के बाद भगवान शंकर अपने अलौकिक स्वरुपों में माउंटआबू में वास करते हैं।
हम यहां के माउंटआबू में स्थित कुछ प्रमुख मंदिरों का जिक्र कर रहे हैं। सबसे पहले बात करेंगे दुनिया भर में मशहूर अचलगढ़ मंदिर की जो दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान है जहां भगवान शंकर के शिवलिंग नहीं बल्कि उनके अंगूठे की पूजा होती है, तभी इनका नाम अचलगढ पड़ा। अचलगढ़ किला मेवाड़ के राजा राणा कुंभा ने एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था। परमारों एवं चौहानों के इष्टदेव अचलेश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर अचलगढ़ में ही है। पहाड़ी पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर |
माउंटआबू में अचलगढ़ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में उनके शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। माउंटआबू में अचलगढ़ मंदिर भगवान शंकर का मंदिर है। माउंटआबू की पहाड़ियों पर स्थित अचलगढ़ मंदिर पौराणिक मंदिर है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है।
अचलेश्वर महादेव द्वार |
इस मंदिर की पौराणिक कहानी है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हुई। क्योंकि इसी पर्वत पर भगवान शिव की प्यारा वाहन नंदी भी था। लिहाजा पर्वत के साथ नंदी को भी बचाना था। भगवान शंकर ने हिमालय से ही अपना अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। नंदी बच गए और अर्बुद पर्वत भी स्थिर हो गया। भगवान शिव के अंगूठे के निशान यहां आज भी देखे जा सकते है। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है।
नंदी प्रतिमा |
भगवान शिव के अर्बुदांचल में वास करने का स्कंद पुराण में प्रमाण मिलता है। स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में ये बात सामने आती है कि भगवान शंकर और भगवान विष्णु ने एक रात पूरे अर्बुद पर्वत की सैर करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि माउंटआबू की गुफाओं में आज भी सैकड़ो साधु-संन्यासी तप करते है क्योंकि कहते है यहां की गुफाओं में भगवान शंकर आज भी वास करते है और जिससे प्रसन्न होते है उसे साक्षात दर्शन भी देते है। यही नहीं पहाड़ी के तल पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। सदियों से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खाई पानी से नहीं भरती। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इसी अंगूठे ने पूरे माउन्ट आबू के पहाड़ को थाम रखा हैं और जिस दिन यह अंगूठे का निशान गायब हो जायेगा माउंट आबू पहाड़ खत्म हो जाएगा ।
अचलेश्वर महादेव |
माउंटआबू में ही स्थित सोमनाथ संत सरोवर का जिक्र शिव पुराण और स्कंद पुराण मे भी आता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान शंकर की यहां हर सावन के हर सोमवार को विशेष कृपा होती है और जिन भक्तों से वो प्रसन्न होते है उन्हें भगवान के दर्शन भी होते है। भगवान शंकर का यहां एक प्राचीन भव्य मंदिर भी है। भगवान शंकर के यहां 12 ज्योतिर्लिंग भी बनाए गए है। शिवपुराण में बारह ज्योतिर्लिंगों की महिमा बताई गई है। लेकिन माउंटआबू के सोमनाथ धाम में आप एक साथ 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन कर सकते हैं।
यहां स्थित बालाराम महादेव मंदिर के बारे में ये मान्यता है कि यहां भगवान शंकर वास्तविक स्वरुप में वास करते है। यानि उनके साथ उनके गले में लिपटा सर्प भी वास करते हैं। यहां के बारे में कहा जाता है कि भगवान शंकर के जटा से निकली हुई गंगा की धारा यहां भी बहती है। गंगा के पानी का स्रोत कहां से है ये अबतक एक रहस्य बना हुआ है। ये जगह माउंटआबू और राजस्थान की सीमा पर है। ये मंदिर पहाड़ियों पर मनोरम स्थान पर बसा हुआ है। यहां भगवान शंकर के ऊपर गोमुख से गंगा की अमृतधारा बहती है। ये स्थान अदभुत है जहां भगवान शंकर के साथ गोमुख से बहती गंगा के भी दर्शन होते हैं।
माउंटआबू में ही स्थित लीलाधारी महादेव मंदिर भगवान शिव का स्वयंभू मंदिर माउंटआबू से 65 किलोमीटर दूर मंडार में स्थित है। ये मंदिर 84 फीट ऊंचा है। मंदारशिखर पर्वत पर ये मंदिर स्थित है।यहां के बारे में ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर यहां कई लीलाओं के रुप में वास करते है। यहां एक शिवलिंग जमीन पर स्थित है। ये चट्टानों से बना शिवलिंग है।
अर्बुद नीलकंठ मंदिर भी माउंटआबू का एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है। अर्बुदा देवी तीर्थ के पास ये मंदिर है जहां नीलम पत्थर से बना हुआ शिव मंदिर है। इस मंदिर को राजा नल और दमयंती ने बनवाया था। इस मंदिर तक पहुचने के लिए श्रद्धालुओं को 350 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। नीलकंठ मंदिर नाम इसलिए है कि भगवान शंकर का मंदिर और शिवलिंग नीलम के पत्थर से बना हुआ है।
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