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दुनिया की सर्वोच्च परम शक्ति का केंद्र- कैलाश पर्वत के अद्भुत रहस्य

आज मैं आपको अपनी ब्लॉग यात्रा में दुनिया के सर्वोच्च परम शक्ति के केंद्र बिंदु भगवान् शंकर और पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वत के कुछ अद्भुत प्रामाणिक रहस्यो से अवगत करना चाहता हूँ ताकि आज का वैज्ञानिक और बुद्धिमान प्राणी उस परम शक्ति की सत्ता को समझ और महसूस कर सके। यह केवल अंध्विश्वास नहीं परंतु जांचा परख प्रमाणिक सत्य है।  

परम सदाशिव शक्ति 

पुराणों के अनुसार जब कुछ भी नहीं था तो परमात्मा ने खुद को प्रकट किया और अपने में एक स्त्री शक्ति  को स्थान देकर पृथक किया| उनके  संयोग से एक अंडज़ की उत्पति हुई जो फैलता गया और बिग बैंग थेओरी को सार्थक करता हुया फैलता गया और अभी तक फेल रहा है| स्त्री पुरुष ने स्वयं को तीन भागों में पृथक कर त्रिदेवों और त्रिशक्तियों को स्थान दिया| परम भगवान शिव ने ब्रह्माण्ड सृजणी शक्ति के साथ एक लिंग में प्रकट हुये जिसका ना कोई आदि था और ना ही कोई अंत| उस ब्रह्माण्ड सृजनी शक्ति के साथ शिव जी ने लिंग रूप में धरती पर निवास किया। वह शक्ति और कुछ नहीं परमाणु और अणु शक्ति थी जिससे आज एटम बम्ब बनाये जाते हैं और इसकी शक्ति से पहले ब्रह्मास्त्र बनते थे। शिवलिंग का ऐसा आकार भी इस लिए है ताकि इसके अंदर होने वाले विस्फोटों और उनकी ऊर्जा को अंदर ही रखा जा सके। ऐसा ही आकर आत्मा का है। भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लो तो हैरान हो जाओगे कि भारत सरकार के नुक्लिएर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योत्रिलिंगो के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है | शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्यूक्लिअर रिएक्टर्स ही हैं तभी उनपर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं | क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता | भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिव लिंग की तरह है |

कैलाश पर्वत शिवलिंग 
जैसा कि आप लोगो को ज्ञात है कि एक्सिस मुंडी को ब्रह्मांड का केंद्र, दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव के रूप में, यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है जहाँ अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं रूसिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। ‘परम रम्य गिरवरू कैलासू, सदा जहां शिव उमा निवासू।’ आप ये तो जानते होंगे कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं पर ये नहीं जानते होंगे कि वह इस दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत है जो कि माना जाता है कि वह अद्भुत शक्तियों का भण्डार है। 

कैलाश पर्वत 
१. ऊंचाई और स्थिति – इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है। और यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों जैसे माउन्ट एवरेस्ट के साथ रेस तो नहीं लगा सकता पर इसकी भव्यता ऊंचाई में नहीं, लेकिन उसके आकार में है। उसकी चोटी की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। जिस पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है। कैलाश पर्वत पर चढना निषिद्ध है पर 11 वी सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढाई की थी। कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा है सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकर सूर्य के सामान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के सामान है।

2. मानसरोवर झील और राक्षस झील – मानसरोवर झील और राक्षस झील, ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को प्रदर्शित करते हैं जिसका सम्बन्ध सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा से है। जब इन्हें दक्षिण की तरफ से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिन्ह वास्तव में देखा जा सकता है।

मानसरोवर झील 

3. चारों ओर एक अलौकिक शक्ति – कैलाश पर्वत और उसके आस पास के बातावरण पर अध्यन कर रहे वैज्ञानिक ज़ार निकोलाइ रोमनोव और उनकी टीम ने तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरुओं से मुलाकात की उन्होंने बताया कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है जिसमे तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलिपेथी संपर्क करते है।

4. ओ३म् की ध्वनी – पुराणों के अनुसार यहाँ शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ़ से सटे 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को ‘कैलाश मानसरोवर तीर्थ’ कहते है और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि करता है।

पर्वत पर ॐ आकृति 
5. कैलाश का महत्व – पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।

6. जब आती है मृदुंग की आवाज़ – गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ़ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज़ भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज़ है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले, तो वह ‘रुद्रलोक’ पहुंच सकता है। कैलाश पर्वत, जो स्वर्ग है जिस पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं, नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है।

7. मानसरोवर झील में है विष्णु का वास – मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जो पुराणों में ‘क्षीर सागर’ के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है।

8. कैलाश पर्वत का दर्शन – कैलाश पर्वत को ‘गणपर्वत और रजतगिरि’ भी कहते हैं। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। यह हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है – जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है।

कैलाश पर्वत स्वर्ण मुद्रा 
9. कैलाश पर्वत की परिक्रमा – इसकी परिक्रमा का महत्त्व कहा गया है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलाश परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलास परिक्रमा का आधार शिविर है। कैलाश की परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी तारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है।

10. हिमरत्न – घोडे और याक पर चढ़कर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुये यात्री डेरापुफ पहुंचते हैं। जहां ठीक सामने कैलाश के दर्शन होते हैं। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ़ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को ‘हिमरत्न’ भी कहा जाता है।

11. इतनी ठंडी जगह पर भी है गरम पानी के झरने – ड्रोल्मापास तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन भजन करते हैं। यहां कहीं कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।

कैलाश यात्रा प्रवेश 
12. जहां देवी पार्वती ने किया था घोर तप – इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है। ड्रोल्मा से नीचे बर्फ़ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील, गौरीकुंड है। यह कुंड हमेशा बर्फ़ से ढंका रहता है, मगर तीर्थयात्री बर्फ़ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 फ़ुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।

13. गंगा का स्थान – पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।

14. मानसरोवर का अर्थ – इस प्रकार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। इसी कारण इसे ‘मानस मानसरोवर’ कहते हैं। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्कद्ध) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रातःकाल 3-5 बजे) में देवतागण यहां स्नान करते हैं।

15. मानसरोवर की महिमा – ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। हिन्दू उसे ‘कल्पवृक्ष’ की संज्ञा देते हैं। झील लगभग 320 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है। पुराणों के अनुसार मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी, उसी का नाम ‘मानसरोवर’ है

16. राक्षस ताल – राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है।

कैलाश पर्वत क्षेत्र 

ऐसा है हमारे अद्भुत शक्ति के पुंज कैलाश पर्वत की महिमा।।।। 


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