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दक्षिण भारत का एक अलौकिक स्थान- भगवान् अय्यप्पा स्वामी, शबरीमाला (केरल)

आज मैं आपको दक्षिण भारत के ऐसे स्थान के बारे बताने जा रहा हूँ जिसको किसी पहचान की जरूरत नहीं है।  आज मैं बात कर रहा हूँ एक ऐसे चमत्कारिक, पवित्र और असीम श्रद्धा के प्रतीक भगवान् अय्यप्पा स्वामी मंदिर की। 

शबरीमाला मंदिर 
ये तो आप जानते ही होंगे कि अय्यप्पा स्वामी मंदिर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है।  दक्षिण भारत के राज्य केरल में सबरीमाला में अय्यप्पा स्वामी मंदिर है।  इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं। बताया जाता है कि जब-जब ये रोशनी दिखती है इसके साथ शोर भी सुनाई देता है।  इस खास घटना को देखने के लिए हर साल अय्यप्पा मंदिर आने वाले भक्त मानते हैं कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं। भक्तों की मानें तो ये मकर ज्योति है।  इसी ज्योति के दर्शन के लिए करोड़ों भक्त अय्यप्पा स्वामी के दर्शन को आते हैं।  आस्था के सागर में गोते लगाने वाले भक्त इसे मकर ज्योति मानते हैं।  

मकर ज्योति 


कई शताब्दियों से सबरीमाला तीर्थस्थल पूरे भारत खासतौर से दक्षिण भारत के राज्यों के लाखों लोगों को आकर्षित करता रहा है।  यहां सबसे पहले भगवान अय्यप्पा के दर्शन होते हैं।  जिन्हें धर्म सृष्टा के रूप में भी जाना जाता है।  इन्हें वैष्ण्वों और शैवों के बीच एकता के प्रतीके के रूप में देखा जाता है।  ऐसा माना जाता है कि इन्होंने अपने लक्ष्य को पूरा किया था और सबरीमाल में इन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। 

अय्यप्पा भगवान् 
केरल में भगवान अय्यप्पा का यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।  इस मंदिर को मक्का-मदीना की तरह विश्व के सबसे बड़े तीर्थ स्थानों में से एक माना जाता है, जहां करोड़ों की संख्या में हर साल तीर्थयात्री आते हैं।  यहां विराजते हैं भगवान अय्यप्पा।  इनकी कहानी भी बहुत अनूठी है।  अय्यप्पा का एक नाम 'हरिहरपुत्र' है, हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव के पुत्र।  हरि के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है।  सबरीमाला का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है।  जी हां, वही रामायण वाली शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और राम ने उसे नवधा-भक्ति का उपदेश दिया था। 

मंदिर प्रांगण 
दूसरी ओर, इतिहासकारों के मुताबिक, पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में गोद लिया। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और वो महल छोड़कर चले गए।  आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।  जो नब्बे किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में सबरीमाला पहुंचती है।  कहा जाता है इसी दिन यहां एक निराली घटना होती है।  पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है। 

मंदिर प्रांगण 
पंद्रह नवंबर का मंडलम और चौदह जनवरी की मकर विलक्कू, ये सबरीमाला के प्रमुख उत्सव हैं।  मलयालम पंचांग के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं।  उत्सव के दौरान भक्त घी से प्रभु अय्यप्पा की मूर्ति का अभिषेक करते हैं।  यहां आने वाले श्रद्धालुओं को 'स्वामी तत्वमसी' के नाम से संबोधित किया जाता है।  उन्हें कुछ बातों का खास ख्याल रखना पड़ता है।  इस समय श्रद्धालुओं को तामसिक प्रवृत्तियों और मांसाहार से बचना पड़ता है।  इस मंदिर में सभी जाति के लोग जा सकते हैं।  लेकिन दस साल से पचास साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर मनाही है। 

भगवान अय्यप्पा मंदिर की मध्य नवंबर से तीर्थयात्रा शुरू हो जाती है।  औसतन नवंबर से जनवरी के बीच करीब चार करोड़ भक्त मंदिर में भगवान के दर्शन करने आते हैं और इस दौरान यहां करोड़ों रुपये का चढ़ावा आता है।  ये आमदनी ‘अरवाना’ प्रसाद यानी गुड़ का प्रसाद बेचने से, ‘अप्पम’ और कनिक्का से होती है।

भगवन यात्रा 
प्रत्येक साल चौदह जनवरी को संक्रामम (सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायणन की ओर जाना) मंदिर का सबसे प्रमुख उत्सव है।  इस प्रमुख दिन पर लाखों की संख्या में अय्यप्पा मंदिर में लोग पूजा-अर्चना के लिए इकट्ठा होते हैं।  यहां लोगों को इस दौरान माकारा विलाकू के दर्शन होते हैं  जिससे ईश्वर के होने का आभास होता है। सबरीमाला मंदिर के करीब वावर नामक पुण्यस्थल है और ऐसा माना जाता है कि यह किसी मुस्लिम विद्वान का है, जो श्री अय्यप्पा के काफी करीब थे।  यहां लोग सबरीमाला मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और साथ ही वावर में भी माथा टेकते हैं, जो केरल में वर्षों से चली आ रही धार्मिक भाईचारे का अद्भुत उदाहरण है। 

मकरसंक्रांति पर मानव मंदिर स्थित भगवान अय्यप्पा का मंदिर मकर ज्योति की तरह जगमगा जाता है। मकर संक्रांति पर पट खुलने के बाद प्रात: भगवान अय्यप्पा का रुद्राभिषेक होता है।  इसके बाद सबसे पहले सुबह श्री गणपति पूजा, फिर उषा पूजा, इसके बाद रुद्राभिषेक एवं अय्यप्पा पूजा की जाती है।  दोपहर में मध्यान्ह पूजा होगी।  शाम को एन.टी.सी मुक्तेश्वर महादेव मंदिर से थालापोली कार्यक्रम में गजराज पर भगवान अय्यप्पा की सवारी प्रारंभ की जाती है जो शोभायात्रा मानव मंदिर पहुंचती है।  यहां पर मानव मंदिर में मकरराविलक्कु अय्यप्पा मंदिर में पूजा आयोजित की जाती है।  रात के समय दीप-आराधना, प्रसाद वितरण, आतिशबाजी प्रदर्शन और फिर अंत में दस बजे के आसपास आरती की जाती है।

भगवान् अय्यप्पा स्वामी 
यह मंदिर पश्चिमी घाटी में पहाडियों की श्रृंखला सह्याद्रि के अंदरूनी हिस्से पर स्थित है।  यहां आने वाले तीर्थयात्री घने जंगलों, ऊंची पहाड़ियों और तरह-तरह के जानवरों के कारण यहां अधिक दिनों तक नहीं ठहर सकते। सबरीमाला में साल के हर मौसम में आना संभव नहीं क्योंकि यहां आने का एक खास मौसम और समय होता है।  जो लोग यहां तीर्थयात्रा के उद्देश्य से आते हैं उन्हें इकतालीस दिनों का कठिन वृहताम का पालन करना होता है, जिसके तहत उन्हें सुबह शाम की कठिन प्रार्थना से होकर गुजरना पड़ता है।  सरनामविली और भगवान अय्यप्पा की शरण में मस्तक झुकाना पूजा का मुख्य हिस्सा है। 

केरल का प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर की वार्षिक तीर्थयात्रा दो महीने तक चलती है जो काफी अहम मानी जाती है। पूरी पहाड़ियाँ अयप्पा के मंत्र के साथ गूंज उठती हैं क्योंकि इस समय के दौरान मंडल पूजा का उत्सव मनाया जाता है। भक्तों को मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने के लिए 18 पवित्र सीढियां चढ़नी होती हैं। ऐसा विश्वास है कि ये सीढियां मनुष्य के अलग अलग लक्षणों को प्रस्तुत करती हैं: पहली पांच सीढियां मनुष्य की पांच इन्द्रियों को चिन्हित करती हैं, अगली 8 मानवीय भावनाओं को प्रस्तुत करती हैं, इसकी अगली तीन सीढियां मानवीय गुण और अंतिम 2 सीढियां ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक हैं। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि तीर्थयात्रा में श्रद्धालुओं को आक्सीजन से लेकर प्रसाद के प्रीपेड कूपन तक उपलब्ध कराए जाते हैं।  दरअसल, मंदिर नौ सौ चौदह मीटर की ऊंचाई पर है और केवल पैदल ही वहां पहुंचा जा सकता है। 

अठारह सीढिया 
सबरीमाला को सबसे लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है, यहां तक कि प्रमुख तीर्थस्थलों की वैश्विक सूची में भी उसे जगह मिलती है, जहां वेटिकन और कुंभ जगह साझा करते हैं।  यहां तक कि फोर्ब्स ट्रेवेलर भी इस जगह को 'विश्व के दस सर्वाधिक लोकप्रिय धार्मिक तीर्थस्थल' की सूची में रखता है।  यहां सालाना करीब छह करोड़ देशी-विदेशी सैलानी आते हैं। 


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