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देवी महालक्ष्मी का अलौकिक सिद्ध पीठ- जहाँ छिपा है बेशुमार खज़ाना- श्री महालक्ष्मी मंदिर (कोल्हापुर-महाराष्ट्र)

आज मैं अपनी ब्लॉग यात्रा में आपको देवी के एक ऐसे स्थान पर लेकर चलता हूँ जहाँ देवी महालक्ष्मी अपने संपूर्ण स्वरुप के साथ साक्षात् रूप में विराजित है।  आज मैं बात कर रहा हूँ महाराष्ट्र राज्य के करवीर शक्तिपीठ की, जिसे कोल्हापुर के नाम से भी जाना जाता है। 

कोल्हापुर 

करवीर शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।


महालक्ष्मी मंदिर प्रवेश द्वार 

यह शक्तिपीठ महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। यहाँ माता सती का 'त्रिनेत्र' गिरा था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। आदिशक्ति देवी के साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक पूर्ण पीठ है- करवीरवासिनी श्री महालक्ष्मी, परब्रह्म ने साकार रूप में जो शक्ति प्रकट की वह शक्ति यानी श्री महालक्ष्मी।  

मंदिर संपूर्ण क्षेत्र 

पाँच नदियों के संगम-पंचगंगा नदी तट पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है। महालक्ष्मी मंदिर यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंदिर है, जहाँ त्रिशक्तियों की भी मूर्तियाँ हैं। महालक्ष्मी के निज मंदिर के शिरोभाग पर शिवलिंग तथा नंदी का मंदिर है तथा व्यंकटेश, कात्यायिनी और गौरीशंकर भी देवकोष्ठ में हैं। परिसर में अनेक मूर्तियाँ हैं। प्रांगण में मणिकर्णिका कुण्ड है, जिसके किनारे विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराण प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है-

"कोलापुरे महास्थानं यत्र लक्ष्मीः सदा स्थिता।"

'करवीर क्षेत्र माहात्म्य' तथा 'लक्ष्मी विजय' के अनुसार कौलासुर दैत्य को वर प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकटे और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार किया। मृत्युपूर्व उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं, तब इसे 'करवीर क्षेत्र' कहा जाने लगा, जो कालांतर में 'कोल्हापुर' हो गया। माँ को कोलासुरा मर्दिनी कहा जाने लगा। पद्मपुराणानुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आद्याशक्ति का मुख्य पीठस्थान है।

मंदिर प्रांगण 
मत्स्यपुराण के अनुसार काराष्ट्र देश के बीच में श्री लक्ष्मी निर्मित पाँच कोस का करवीर क्षेत्र है, जिसके दर्शन से ही सारे पाप धुल जाते हैं-

"योजनं दश हे पुत्र काराष्ट्रो देश दुर्धटः॥ तन्मद्ये पंचकोशं च काश्याद्यादधिकं मुनि। क्षेत्रं वे करवीरारण्यं क्षेत्रं लक्ष्मी विनिर्मितः॥ तत्क्षेत्रं हि महत्पुण्यं दर्शनात् पाप नाशनम्।"

इसी से इसका माहात्म्य काशी से भी अधिक है-

"वाराणस्याधिकं क्षेत्रं करवीरपुरं महत्। भुक्ति मुक्तिप्रदं नृणां वाराणस्या यवाधिकम्॥"

मंदिर प्रांगण 
करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। यह वर्तमान नाम  कोल्हापुर शहर के मध्य में बसे तीन गर्भगृहों वाला यह पश्चिमाभिमुखी श्री महालक्ष्मी मंदिर हेमाड़पंथी है। इस मंदिर को ही 'अम्बाजी मंदिर' भी कहते हैं। मंदिर में चारों दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर के महाद्वार से प्रवेश के साथ  ही देवी के दर्शन होते हैं। मंदिर के खंभों पर नक्काशी का खूबसूरत काम देखते ही बनता है, लेकिन खंभों की संख्या आज तक कोई जान नहीं पाया क्योंकि जिसने भी गिनने की कोशिश की, उसी के साथ या उसके परिवार में कुछ अनहोनी जरूर घटी। मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि साल में एक बार सूर्य की किरणें देवी की प्रतिमा पर सीधे पड़ती हैं। इसकी वास्तुरचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- गर्भ गृह मण्डप, मध्य मण्डप, गरुड़ मण्डप। प्रमुख एवं विशाल मध्य मण्डप में बड़े-बड़े ऊँचे, स्वतंत्र 16x128 स्तंभ हैं। हज़ारो मूर्तियाँ शिल्प आकृति में हैं। यहाँ सुबह 'काकड़ आरती' से लेकर मध्यरात्रि की शय्या आरती तक अखण्ड रूप से पूजार्चना, शहनाई वादन, भजन कीर्तन, पाठ चलता रहता है।

मंदिर प्रांगण 

देवी का श्रीविग्रह हीरा मिश्रित रत्नशिला का स्वयंभू तथा चमकीला है। उसके मध्य स्थित पद्मरागमणि भी स्वयंभू है- ऐसा विशेषज्ञ कहते हैं। प्रतिमा अति प्राचीन होने से घिस गई थी। अतः 1954 में कल्पोक्त विधि से मूर्ति में व्रजलेप-अष्ट वन्धादि संस्कार करने से विग्रह स्पष्ट दिखने लगी। चतुर्भुजी माँ के हाथ में मातुलुंग, गदा, ढाल, पानपात्र तथा मस्तक पर नाग, लिंग, योनि है- ऐसा उल्लेख मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य में है-

"मातुलुंगं गदा खेटं पान पात्रं च विभ्रती। नागंलिंगं च योनि च विभ्रती नृप मूर्धनि॥

स्वयंभू मूर्ति में ही सिर पर किरीट उत्कीर्ण है, जिस पर शेषफण की छाया है। साढ़े तीन फुट ऊँची यह प्रतिमा अति सुंदर है। देवी के चरणों के पास सिंह भी विराजमान है।

मंदिर स्तम्भ 
माना जाता है कि इस मंदिर में बेशकीमती खजाना छिपा है। 3 साल पहले जब इसे खोला गया तो मंदिर से हजारों साल पुराने सोने, चांदी और हीरों के ऐसे आभूषण सामने आए जिसकी बाजार में कीमत अरबों रुपए में हैं। इतिहासकारों की माने तो कोल्हापुर के इस महालक्ष्मी मंदिर में कोंकण के राजाओं, चालुक्य राजाओं, आदिल शाह, शिवाजी और उनकी मां जीजाबाई तक ने चढ़ावा चढ़ाया है। जब मंदिर के खजाने की गिनती शुरू हुई तो इसकी पूरी कीमत का अंदाजा लगाने के लिए करीब 10 दिन का वक़्त लग गया। मंदिर के इस खजाने का बीमा भी कराया गया है। हालांकि ये बीमा कितनी कीमत का है इसका खुलासा मंदिर ट्रस्ट ने नहीं किया है। इससे पहले मंदिर के खजाने को साल 1962 में खोला गया था।


मंदिर 

इस मंदिर में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा यानी घटस्थापना से उत्सव की तैयारी होती है। पहले दिन बैठी पूजा, दूसरे दिन खड़ी पूजा, त्र्यंबोली पंचमी, छठे दिन हाथी के हौदे पर पूजा, रथ पर पूजा, मयूर पर पूजा और अष्टमी को महिषासुरमर्दिनी सिंहवासिनी के रूपों में देवी का उत्सव दर्शनीय होता है।  

माता श्री महालक्ष्मी जी 
ऐसा कहा जाता है कि तिरुपति यानी भगवान विष्णु से रूठकर उनकी पत्नी महालक्ष्मी कोल्हापुर आईं। इस वजह से आज भी तिरुपति देवस्थान से आया शालू उन्हें दिवाली के दिन पहनाया जाता है। इस महालक्ष्मी मंदिर की मान्यता इतनी है कि तिरुमाला के बालाजी मंदिर का दर्शन कोल्हापुर में महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन के बिना अधूरा माना जाता है।  कोल्हापुर की श्री महालक्ष्मी को करवीर निवासी अंबाबाई के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ दीपावली की रात महाआरती में जो भी सच्चे मन से अपनी मुराद माता से मांगता है उसे देवी महालक्ष्मी अवश्य पूरा करती है। 


माता श्री महालक्ष्मी जी 



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