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How to Live a Happy Life in Hindi जानिए यहाँ

How to Live a Happy Life in Hindi एक बहु चर्चित प्रश्न है, इसे एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझे… 

एक बार बहुत ही ख़राब अभिनेता था, सच मच बहुत ही ख़राब! जो एक किरदार निभा रहा था. जैस-जैसे नाटक आगे बड़ा उसकी एक्टिंग और ख़राब होती गयी. जब उसने एक लाइन कही तो लोगो ने उस पर चीजे फेकना शुरू कर दी, तब वो स्टेज से निचे उतरा और बोला की ये घटिया नाटक मैंने नहीं लिखा है. उसके इतना कहते ही जो लोग उस पर चींजे फेक रहे थे. अब उस पर हसने लगे……  

दुनिया के सभी दुखी लोग सोचेते है, की दुनिया में ही कुछ गड़बड़ी है. दुनिया के सभी दुखी लोग यही सोचते है की सब भगवान की ही गलती है. और इन काल्पनिक गलतीयो को समझने के लिए ऐसे लोग के पास अनगिनत फालतू के विचार होते है, जिन्हें फिलोसोफी के नाम से जाना जाता है.

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धरती पर जितनी भी फिलोसोफी है. अगर आप उन सभी को इकट्ठा कर ले, तो वो सब बकवास है. उससे कही बेहतर तो एक पेड़ का पत्ता है. जो काफी सुन्दर है, लेकिन फिर भी लोग जीवन भर उसमे व्यस्त रहते है, क्यू की उनमे वैसी बाते होती है, जैसी वो सुनना चाहते है.

फिलोसोफर वो लोग होते है, जो अपने काम काज छोड़ चुके होते है, वैसे महिला फिलोसोफ़र कम होती है. ऐसे आदमी जो कम से कम खुद के काम छोड़ने की सफाई दे सके. तो ये बेकाम लोग, जिनके पास कुछ भी नया करने को नहीं होता है, वो बस बैठे-बैठे ऐसी फालतू की बकवास कर के आपको भ्रमित करते है.

किसी भी इन्सान को इस श्रष्टि या जीवन के ऊपर फिलोसोफी बनाने के कोई अधिकार नहीं है. हर इन्सान की जिन्दगी अलग होती है, और हर किसी के अपने अपने अलग-अलग अनुभव हो सकते है. अगर आप हजार साल तक भी इस धरती पर जीते है, तब भी आप इस धरती का एक छोटा सा हिस्सा तक नहीं जान पाएंगे.

जब इस तरह की दुनिया मौजूद है, तो किसी का भी फिलोसोफी बनाना एक गुनाह है. लेकिन समाज में आज ऐसी स्थिति ऐसी बन गयी है. जहा आप कुछ ऐसा कहते जो किसी औरो को समझ में नहीं आता, तो बहुत से लोग यह  सोचेंगे की आप बहुत बुद्धिमान है.असल में बुद्धिमानी उन लोगो को समझाने में है, जो इन चीजो को नहीं समझ पाते है.

जो चीज वो जानते है, उन्हें उसी के बारे में भ्रमित करना बुद्धिमानी नहीं है. परन्तु समाज में आज कल यही चल रहा है, और ऐसे लोगो को बुद्धिमान समझा जाता है. लोग शब्दों के मायाजाल में पड़ कर असली दुनिया से दूर हो गये है. उन्होंने बस अपनी ही एक अलग दुनिया बना ली है, जो की, उन्हें हर समय दुःख के अलावा कुछ नहीं देती है.

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अगर आप मन के कचरे के ढेर पर खड़े है, और आपके पैर जमीन को नहीं छु रहे है, तो आप असली दुनिया को कभी नहीं जान पाएंगे. इसलिए इस संस्कृति में आप हर जगह देखते है. लोग मंदिरों में झुकते है. यह नियम इसलिए बनाये गए की आप थोड़ी देर ही सही, लेकिन आप अपने नग्न पैरो से धरती पर चले….

धरती के साथ संपर्क में रहना बेहतर है. अगर आप एक आत्मीय शांति चाहते है और उस दुनिया से जुड़ना चाहते है जिसके आप अक्सर सपने देखा करते है. जिस प्रकार एक घास का तिनका जमीन से बहार निकलता है. ठीक उसी प्रकार आपके भीतर भी एक नयी प्रकार की उर्जा का गमन होगा.

आप अपने आप को इन्सान मानते होंगे, लेकिन श्रष्टि के लिए आप सिर्फ एक मिट्ठी  का ढेर है. और ये एक बहुत बड़ी बात है, आप खुद अपने आप में एक श्रष्टि है, बस आप चल फिर सकते है. दिमाग में बेकार की बाते सोच कर, आप इस जीवन का आनंद नहीं ले सकते. ये विचार आपके समाज के मुर्ख विद्वानों के लिए ज्ञान की बाते हो सकती है, जो की असल में बकवास है.

तो श्रष्टि का आदर करिए, क्यू की आप खुद अपने आप में एक श्रष्टि है. यदि आपने इस जीवन को दुखमय बना लिया, और अपने विचारो की एक अलग ही दुनिया बना ली है. तो निश्चित रूप से जब आपका यह शरीर छोड़ने का समय आयेंगा तब यह श्रष्टि आप का साथ नहीं देगी….. 

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