Srirangapatna Fort – श्रीरंगपटना किला एक ऐतिहासिक किला है, जो दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य की ऐतिहासिक राजधानी श्रीरंगपटना में बना हुआ है। इसे 1454 में तिम्मंना नायक ने बनवाया था, टीपू सुल्तान के शासन के समय इस किले को सभी पहचानने लगे थे।
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ऐतिहासिक श्रीरंगपटना किले का इतिहास – Srirangapatna Fort History
इस किले को को पूरी तरह से गढ़ के आकार में बनाया गया है और फ्रेंच वास्तुकला के आधार पर इसे सजाया गया है। किले के एक तरफ से कावेरी नदी भी बहती है। कावेरी नदी ने ही किले को पश्चिमी और उत्तरी दिशा से संरक्षित कर रखा है।
1799 में जब ब्रिटिशो ने इस किले पर अपना अधिकार जमाया, तब इस किले में लाल महल और टीपू सुल्तान का महल भी था। इस किले में 7 दुकाने और 2 कालकोठरी है।
इतिहास – History:
इस किले का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के शासक तम्मंना नायक ने 1454 CE में करवाया था। 1495 तक यह किला राजा के ही हात में था, लेकिन इसके बाद वाडियार ने विजयनगर के शासको पर कब्ज़ा कर लिया। यह किले के शासक समय के साथ-साथ बदलते गये, पहले अक्रोत के नवाब ने इसपर राज किया और फिर यह किला पेशवा और मराठाओ के हात में गया।
वाडियार ने किले पर कब्ज़ा करने के बाद अपनी राजधानी मैसूर को श्रीरंगपटना में स्थानांतरित कर दिया और किले को ही अपने साम्राज्य की गद्दी बनाया। 1673 से 1704 में चिक्का देवराज वाडियार के शासनकाल में बहुत से प्रगतिशील परिवर्तन भी हुए, लेकिन बाकी बचे हुए तीन शासको का इस किले पर ज्यादा प्रभाव नही पड़ा।
इसके बाद कृष्णराज वाडियार (1734-66) के शासनकाल में राजा ने किले में सशक्त सेना का निर्माण किया और हैदर अली को सेना प्रमुख बनाया।
कहा जाता है की 1757 में हैदर अली ने 32 लाख रुपये में यह किला मराठाओ को सौप दिया था, लेकिन फिर इसे हासिल करने के लिए उसने जोरो से वापसी भी की। 1782 के समय में, हैदर अली का बेटा टीपू सुल्तान ने किले पर कब्ज़ा कर लिया और किले पर दुर्ग का निर्माण करवाया।
टीपू सुल्तान के इस किले पर ब्रिटिशो ने कयी बार आक्रमण किया था। लेकिन टीपू ने फ्रेंच के साथ समझौता कर रखा था और उन्होंने नेपोलियन को ख़त भी भेजा। लेकिन कयी असफल कोशिशो के बाद, कर्नल वेलेस्ली के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने 4 मई 1799 को गुप्त रूप से टीपू सुल्तान के महल पर आक्रमण किया। उस समय ब्रिटिश सेना में कुल 2494 ब्रिटिश सैनिक और 1882 भारतीय सैनिक थे।
सेना ने जब चौकीदार दोपहर में आराम करने चला जाता हा, तभी गुप्त रूप से नदी को पार करना शुरू किया था। इस लढाई में टीपू सुल्तान मारा गया और अंग्रेजो ने वाडियार की रानी से समझौता कर लिया। कहा जाता है की इसी लढाई से भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार की शुरुवात हुई थी।
किले को पश्चिम और उत्तरी दिशा में कावेरी नदी ने संरक्षित कर रखा है। किले में लाल महल और टीपू का महल भी है, जिसे 1799 में ब्रिटिशो ने ध्वस्त कर दिया था।
महल में कुल 7 दुकाने और 2 कालकोठरी है। कहा जाता है की किले के अंदर बने रंगनाथ स्वामी मंदिर का निर्माण रामानुज ने करवाया था, जो वैश्नाद्वैता दर्शनशास्त्र के समर्थक थे और उन्होंने इसका निर्माण12 वी शताब्दी के होयसला राजा, द्वारासमुद्रा से पैसे लेकर करवाया था। यह मंदिर उन्ही गिने-चुने हिन्दू मंदिरों में से एक है, जिनकी मीनारों को टीपू सुल्तान ने नहीं गिराया था।
किले के पश्चिमी भाग में मंदिर के पास एक खुला बगीचा भी है। किले के उत्तरी भाग में घर और कालकोठरीयाँ है, कहा जाता है की इन कालकोठरीयो में यूरोपियन कैदियों को रखा जाता था। टीपू सुल्तान का महल भी रंगनाथ स्वामी मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के विपरीत बना हुआ है। किले के भीतर टीपू सुल्तान द्वारा इंडो-इस्लामिक वास्तुकला के आधार पर बनायी गयी जामा मस्जिद भी है।
ब्रिटिश म्यूजियम में आज भी टीपू सुल्तान की तलवार और अंगूठी रखी गयी है और कहा जाता है की उनकी तलवार का उपयोग आर्थर हेनरी कोल ने किया था।
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