Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

झाँसी का किले का इतिहास | Jhansi Fort History in Hindi

Jhansi Fort – झाँसी का किला उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश की भंगीरा पहाड़ी पर स्थित है। 11 वी शताब्दी से 17 वी शताब्दी तक यह बलवंत नगर के चंदेल राजा का गढ़ था।

झाँसी का किले का इतिहास – Jhansi Fort History in Hindi

इस किले का निर्माण 1613 में ओरछा साम्राज्य के शासक और बुन्देल राजपूत के चीफ बीर सिंह देव ने किया था। बुंदेला का यह सबसे शक्तिशाली गढ़ हुआ करता था। 1728 में मोहम्मद खान बंगेश ने महाराजा छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया था। जिसमे पेशवा बाजीराव ने महाराजा छत्रसाल को मुग़ल सेना को परास्त करने में सहायता की थी। उनका आभार व्यक्त करते हुए महाराजा छत्रसाल ने उन्हें राज्य का कुछ भाग भी दे दिया था, जिनमे झाँसी भी शामिल है।

इसके बाद 1742 में नारोशंकर को झाँसी का सूबेदार बना दिया गया। अपने 15 साल के कार्यकाल में उन्होंने केवल झाँसी को विकसित ही नही किया बल्कि झाँसी के आस-पास दूसरी इमारते भी बनवाई। 1757 में जब नारोशंकर को पेशवाओ ने वापिस बुला लिया था, तब माधव गोविन्द ककिर्दे और फिर बाबूलाल कनहाई को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। 1766 से 1769 तक विश्वासराव लक्ष्मण ने झाँसी का सूबेदार बने रहते हुए सेवा की थी।

इसके बाद रघुनाथ राव द्वितीय की नियुक्ति झाँसी के सूबेदार के रूप में की गयी। रघुनाथ एक कुशल प्रशासक था, उन्होंने राज्य का राजस्व बढ़ाने में भी काफी सहायता की और किले के अंदर महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया।

शिव राव की मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे रामचंद्र राव को झाँसी का सूबेदार बनाया गया। लेकिन वे एक अच्छे प्रशासक नही बन सके और उनके कार्यकाल का अंत उनकी मृत्यु के साथ ही 1835 में हुआ। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी रगुनाथ राव द्वितीय की मृत्यु 1838 में हुई। इसके बाद ब्रिटिश शासको ने गंगाधर राव को झाँसी के नए राजा के रूप में स्वीकार किया। रघुनाथराव तृतीय के अक्षम प्रशासन ने झाँसी की आर्थिक हालत काफी ख़राब कर दी थी।

उनके जाने के बाद गंगाधरराव ने झाँसी को अच्छी तरह से संभाला और वे एक अच्छे प्रशासक भी बने। कहा जाता है की झाँसी के स्थानिक लोग उनसे बहुत प्यार करते थे और वे उनके कार्यो से खुश भी थे। 1842 में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका ताम्बे से शादी की, जिसे शादी के बाद लक्ष्मी बाई का नाम दिया गया। 1851 में लक्ष्मीबाई ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम बादमे दामोदरराव रखा गया, लेकीन जन्म के 4 महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गयी।

इसके बाद महाराजा ने आनंद राव नाम के एक बच्चे को गोद ले लिया, जो गंगाधर राव के भाई का ही बेटा था।इसके बाद में उसी का नाम बदलकर दामोदर राव रखा गया, महाराजा की मृत्यु के एक दिन पहले उसका नाम बदला गया था।

दत्तक लेने की यह प्रक्रिया बिटिश राजनितिक अधिकारियो की उपस्थिति में हुई, जिसमे उन्होंने महाराजा के कहने पर एक आदेश भी दिया किया की उनके दत्तक लिए हुए पुत्र को उन्ही का पुत्र माना जाए और उसे वे सभी सम्मान और अधिकार दिए जाए तो एक राजकुमार को दिए जाते है और साथ ही उन्होंने हमेशा के लिए झाँसी के राजसिंहासन को उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई को सौपने का भी आदेश दिया था।

नवम्बर 1853 में महाराजा की मृत्यु के बाद, गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना ने चुक का सिद्धांत लगाकर दामोदर राव को सिंहासन सौपने से मना कर दिया और ना ही उन्हें राजा का कोई अधिकार देने के लिए कहा। मार्च 1854 में रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिशो को महल और किले को छोड़कर जाने के लिए ब्रिटिशो को 60,000 रुपये भी दिए थे। 1857 में विद्रोह टूट गया और लक्ष्मीबाई ने ही किले की बागडोर अपने हात में ले ली और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लक्ष्मीबाई झाँसी की सेना का नेतृत्व कर रही थी।

अप्रैल 1858 में जनरल ह्यूज के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना झाँसी को पूरी तरह से घेर लिया और 4 अप्रैल 1858 को उन्होंने झाँसी पर कब्ज़ा भी कर लिया। उस समय रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत दिखाकर ब्रिटिश सेना का सामना किया और घोड़े की मदद से महल से निकलने में सफल रही।

1861 में ब्रिटिश सर्कार ने झाँसी के किले और झाँसी शहर को जियाजी राव सिंधियां को सौप दिया, जो ग्वालियर के महाराज थे लेकिन 1868 में ब्रिटिशो ने ग्वालियर राज्य से झाँसी वापिस ले ली थी।

यह किला पहाडीयों पर बना हुआ है और इससे हमें इस बात का अंदाजा लग जाता है की कैसे उत्तरी भारतीय किले दक्षिणी भारतीय किलो से अलग है। दक्षिण में बहुत से किलो का निर्माण समुद्र के आस-पास किया गया है, जैसे की केरला का बेकाल किला। ग्रेनाइट से बनी किले की दीवारे 16 से 20 फीट मोटी है और दक्षिण में यह शहर की दीवारों से भी मिलती है। किले का दक्षिणी मुख तक़रीबन सीधा ही है।

किले में प्रवेश करने के लिए कुल 10 द्वार है। उनके से कुछ खंडेराव गेट, लक्ष्मी गेट, दतिया दरवाजा, उ सीनयर गेट , न्नाव गेट, झरना गेट, सागर गेट, ओरछा गेट, और चाँद गेट है। किले के भीतर बनी कुछ एतिहासिक धरोहरों में शिव मंदिर, गणेश मंदिर और कड़क बालाजी मंदिर शामिल है, जिनका उपयोग 1857 में किया जाता था और आज भी किया जाता है। मुझे वह स्मारक बोर्ड भी याद जहा से रानी लक्ष्मीबाई ने अपने घोड़े को लेकर एक लंबी छलांग लगायी थी।

किले के आस-पास 19 वी शताब्दी में बना रानी महल भी है, जो आज एक आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम बन चूका है।

यह किला तक़रीबन 15 एकर में फैला हुआ है और जानकारों के अनुसार यह 312 मीटर लम्बा और 225 मीटर फैला हुआ है। सभी को मिलकर किले में कुल 22 विशाल मजबूत दीवारे इसकी सुरक्षा और सहायता के लिए बनी हुई है, जिसके दोनों तरफ खाई है। कहा जाता है की इसके पूर्वी भाग का निर्माण ब्रिटिशो ने करवाया था, साथ ही उन्होंने वहा पञ्च महल भी बनवाया था।

घटना:

हर साल जनवरी और फरवरी के महीने में यहाँ झाँसी महोत्सव नाम का एक विशाल उत्सव मनाया जाता है, इस महोत्सव में बहुत से प्रदर्शनकारी अपनी कला का प्रदर्शन करते है।

झाँसी कैसे पंहुचा जा सकता है ?

झाँसी का किला झाँसी शहर के बीच में बना हुआ है। यह झाँसी स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर है, किले का सबसे नजदीकी एअरपोर्ट ग्वालियर में है, जो झाँसी से 103 किलोमीटर दूर है।

Read More:

  • History in Hindi

Hope you find this post about ”Jhansi Fort History in Hindi” useful and inspiring. if you like this Article please share on facebook & whatsapp. and for latest update download : Gyani Pandit free android App.

The post झाँसी का किले का इतिहास | Jhansi Fort History in Hindi appeared first on ज्ञानी पण्डित - ज्ञान की अनमोल धारा.

Share the post

झाँसी का किले का इतिहास | Jhansi Fort History in Hindi

×

Subscribe to Gyanipandit - ज्ञानी पण्डित - ज्ञान की अनमोल धारा

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×