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गुरुकुल शिक्षा से गलत सूचना देकर विद्वानों ने जो धृष्टता दिखाई अशोभनीये है

सबकुछ माफ़ करा जा सकता है, 
लकिन शिक्षा में शोषण हेतु गलत सूचना ; 
कभी माफ़ नहीं करी जा सकती ! 
कोइ भी मानक का प्रयोग करलो, यह सामाजिक , धार्मिक दोनों दृष्टि से दंडनीय अपराध है !

गुरुकुल शिक्षा से, समाज के शोषण हेतु , गलत सूचना दी गयी, जिस्मे प्रमुख कुछ यह हैं:

१. बिना वेद को परिभाषित करे, अवतरित श्री विष्णु के अवतार, श्री राम और श्री कृष्ण की छबी को धूमिल करने के लिए यह बताना कि रावण और आचार्यद्रोण वेद्ज्ञाता थे; और यह आज भी हो रहा है |

२. निहत्ते द्रोण को बंदी बनाया जा सकता था, मारा नहीं जा सकता था, लकिन युधिष्टिर ने श्री कृष्ण की बात मान कर निहत्ते द्रोण को युद्ध-भूमि पर मरवा दिया, ताकि भविष्य को सही सन्देश जाए | अब बताईये क्या सूचना को पूरी तरह से पलट नहीं दिया गया, जिससे भारत आज तक नहीं उभरा ! यदि आज भी यह सत्य समाज को ‘समझा’ दिया जाए, तो समाज कि सोच बदल जायेगी | सही सूचना से समाज दुबारा गुलाम नहीं हो पाता, ना ही भविष्य में हो पायेगा | लकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ |

३. पिछले ५००० वर्षो से, सारी ‘सही’ पुराणिक सूचना को ढक कर तोड़-मरोड़ कर गलत सूचना समाज को गुरुकुल शिक्षा द्वारा दी गयी ताकि धर्मगुरु समाज का शोषण कर सकें, और उनको ‘धार्मिक निष्पादन’ से “समाज की प्रगति होनी चाहीये”, से मुक्ती भी मिल जाए | उसके लिए आवश्यक था कि सब कुछ बेशर्मी से सिर्फ और सिर्फ गलत बताया जाए | और , गलत बताया जाए, का मतलब तो आप जानते ही हैं....पुराणिक सूचना गलत बताई जाए, और चुकी पुराणिक सूचना संस्कृत में है, तो यह आसान भी है | उद्धारण : झूट बताया गया कि सत्ययुग सबसे अच्छा युग था, मानव के लिए, जबकी पुराणों के अनुसार सतयुग सबसे खराब युग है |

४. रामायण, महाभारत और पुराण को ‘मिथ्या’ प्रमाणित करना | अब इसके लिए संस्कृत विद्वानों को क्या क्या लाभ है, इसका विस्तार इतना आसान भी नहीं है | लकिन यह भी पूर्ण सत्य है कि इनलोगों ने रामायण , महाभारत और पुराण को ‘कथा’ बना कर अलोकिक शक्ति से लाद दिया , और कभी भी इतिहास नहीं माना | मिथ्या की उपाधि इन लोगो ने बड़ी बेशर्मी से दिलवाई , और आज भी है |

५. गलत सूचना का यहाँ पर विस्तार आवश्यक है | रामायण महाभारत अवतरित ईश्वर का इतिहास है, कथा नहीं | इतिहास में किसी के पास अलोकिक शक्ति नहीं होती | और , सनातन धर्म यह बताता है और मानता है कि अवतरित ईश्वर का इतिहास दूसरा वेद है | वेद, यानी की समाज में जीने का ज्ञान | वेद तो कोइ आज तक समझ नहीं पाया, ना ही इस ब्लॉग के अतिरिक्त किसी ने वेद को परिभाषित करा | इसीलिये जिसका जैसे मन होता है उसको वेदज्ञाता बता देता है | यहाँ तक नीच, अभिचारी , कपटी, स्वांग भरने वाले रावण को वेदज्ञाता बताया जा रहा है | समाज पूरी तरह से गुलामी कि और बढ़ रहा है |

६. उसी तरह से पुराण, पृथ्वी, सौर्यमण्डल और ब्रहमांड का इतिहास और खुगोलिये इतिहास है , जो की समाज तक नहीं पंहुचा, हाँ पूजा-पाठ के लिए कथा स्वरुप पहुचा दिया गया है |

७. शिव-सति और शिव-पार्वती से सम्बंधित इतिहास प्रकृति और श्रृष्टि के विकास का वर्णन है , विज्ञान है, जिसमें विभिन्न तत्वों/रसायनों में सुर और असुर के बीच सामंजस्य कैसे और क्यूँ है , वोह भी बताया गया है | लकिन फिर से; वोह सब जानबूझ कर शोषण हेतु समाज तक नहीं पहुचने दिया गया |

तो गलत सूचना किसी भी शिक्षा पद्धति से कभी दी नहीं जाती, जब तक की उस समाज को गुलाम बना कर ना रखना हो | 

लकिन...
हिन्दुओ को दी गयी, और आज भी उसी सूचना का प्रयोग धर्मगुरु कर रहे हैं, और संस्कृत विद्वान भी यही शिक्षा संस्कृत विद्या केंद्र, जो समाज के धन से यानी की सरकारी अनुदान से चल रहे हैं , से दे रहे हैं | कहने का अर्थ स्पष्ट है, आज भी यह लोग गलत सूचना ही दे रहे हैं |

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