यह है व्रत विधि
शनि प्रदोष व्रत के दिन जातक को प्रात:काल उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान कर शिवजी का पूजन करना चाहिए। पूरे दिन मन ही मन ‘ऊं नम: शिवाय’ का जप करें। निराहार व्रत करें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिवजी का पूजन करना चाहिए। शनि प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच की जाती है।
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ऐसे करें शाम की पूजा
शाम की पूजा से पहले एक बार फिर से स्नान कर लें। पूजा घर की सफाई करें और पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन के समय कलश में गंगाजल लें। यदि संभव न हो तो स्वच्छ जल भरें। कुश के आसन पर बैठकर शिवजी की पूजा करें। ‘ऊं नम: शिवाय’ कहते हुए शिवजी को जल अर्पित करें।
ऐसे करें हवन
शिव पूजन और ध्यान के बाद, शनि प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा सुनाए। फिर हवन सामग्री मिलाकर 11, 21 या 108 बार ‘ऊं ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा’ मंत्र से आहुति दें । उसके बाद शिवजी की आरती करें। आज के दिन केवल मीठे भोजन का भोग करें।
शनि प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। एक नगर का सेठ धन-दौलत और वैभव से संपन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुख देनेवाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं दुखी थे क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी।
एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नहीं टूटी मगर पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़कर बैठे रहे।
फिर अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्नी को देख वह मुस्कुराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले, ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स ! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।’
साधु ने संतान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई और शंकर भगवान की निम्न वन्दना बताई।
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।
शिव शंकर जगगुरु नमस्कार॥
हे नीलकंठ सुर नमस्कार।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार॥
हे उमाकान्त सुधि नमस्कार।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥
ईशान ईश प्रभु नमस्कार।
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार॥
तीर्थ यात्रा के बाद सेठ-सेठानी वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे। फिर एक दिन सेठ की पत्नी ने एक सुंदर पुत्र जन्म दिया और दोनों सुखी परिवार के साथ जीवन यापन करने लगे।
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