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अरोड़ा समाज की उत्पत्ति व इतिहास Arora Samaj History in Hindi

Arora samaj history in hindi | Kuldevi of Arora | Origin of Arora

प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने खत्रियों की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए प्रसंगवश अरोड़ा समाज का भी उल्लेख करते हुए लिखा है- ‘भगवान् राम के पुत्र लव को लाहौर का राज्य उत्तराधिकार में मिला था। उनके कुल में कालराय नामक राजा हुए। उनकी दो रानियां थी। एक रानी का पुत्र शांत स्वभाव का था इसलिए उसे अरूट् (अक्रोधी) कहा जाता था इसलिए राजा ने मंत्री की राय से अरूट् को अपना सारा खजाना दे दिया तथा दूसरी रानी के पुत्र छोटे राजकुमार को राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया।’

बड़े राजकुमार अरूट् ने लाहौर नगर छोड़कर मुलतान की ओर प्रस्थान किया। उसके साथ अनेक नागरिक और सैनिक भी चल पड़े। राजकुमार अरूट् ने अरूटकोट नामक नगर बसाया। अरूट् को स्थानीय भाषा में अरोड़ तथा नगर को अरोड़कोट कहा जाता था। राजकुमार अरोड़ के वंशज अरोड़ा कहलाए।

डा. सत्यकेतु ने अपने अग्रवाल जाति के इतिहासग्रंथ में प्रसंगवश अनेक प्राचीन गणराज्यों का भी उल्लेख किया है। वे लिखते हैं- “मैक्रिंडल ने अलेक्जेण्डर नामक ग्रन्थ में अरट्रियोयी नामक प्राचीन गणराज्य का वर्णन किया है। उसे महाभारत (6,85,3664) में आरट्ट कहा है। वह गणराज्य अरोड़ा जाति का था।”

अरोड़ा वंश पंजाब का समुदाय है। अरोड़ा  शब्द का अर्थ है पाकिस्तान के सिंधप्रांत के पश्चिमोत्तर भाग में सिंधु नदी के तट पर स्थित ‘अरोड़’ नामक प्राचीन शहर से सम्बन्ध रखने वाले। यह स्थान पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में रोहरी तथा सुक्कुर नामक आधुनिक कस्बों से समीप स्थित था। अरोड़ा खत्री समूह के समान ही होते हैं। दोनों समूह समान कार्यों में संलग्न हैं, इनका उच्चारण और भौतिक स्वरूप एक समान है, परंपरायें और अनुष्ठान आदि भी समान ही होते हैं। दोनों समुदायों के बीच उपनाम तथा उपसमुदाय लगभग एक जैसे ही हैं। दोनों समुदाय एक दूसरे के काफी निकट हैं  और दोनों समुदायों के बीच शादियां भी होती हैं। 

अरोड़ा अपनी उत्पत्ति खत्री समाज से ही मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि खत्री, लाहौर और मुल्तान के खत्री हैं तथा अरोड़ा अरोड़ के खत्री ही हैं। अमृतसर में एक सड़क है जिसका नाम ‘अरोड़ियाँ वाली गली’ है। ऐसा प्रतीत होता है कि अरोड़ा महाराजा रणजीत सिंह के समय या उससे पहले ही अमृतसर में बस गए थे। वे सिंध या मुल्तान से पलायन कर लाहौर और फिर अमृतसर आये थे।

अरोड़ा बहुत बुद्धिमान और ऊर्जावान हैं। अधिकतर अरोड़ा व्यावसायिक कार्यों में लगे हैं। वे व्यवसाय करने में पारंगत हैं।

अरोड़ा समाज की कुलदेवी –

अरोड़ा राजकुल में कुलदेवी हिंगलाजमाता की पूजा की परम्परा है।

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