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कौन ? भाग 2

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शुक्रवार ,११ जुलाई  २०१२ ,शाम ४ बजे

नैनीताल की एक ऊँची छोटी टिपन-टॉप का उत्तरी इलाका , पूरे इलाके को गहरी धुंद ने ढका हुआ था | बरसात के मौसम में अक्सर पहाड़ी इलाकों की चोटियों पर बादल तैरते नजर आते हैं | जब बादल झुंड में होते हैं तो घने कोहरे जैसा प्रतीत होता है | आज भी कुछ ऐसा हो रहा था , पूरे इलाके में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था जो इस कोहरे को और भी भयानक रूप दे रहा था | कभी-कभी इस सन्नाटे को तोड़ते हुए , छोटे-बड़े चीड़ के पेड़ हवा के साथ मिलकर , डरावनी सी धुन तरंगित कर रहे थे |

टिपन-टॉप, शहर का एक प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट होने के कारण हफ्ते भर यहाँ भीड़ लगी रहती है | दिन भर अलग-अलग गुट बनाये, कई पर्यटक और स्थानीय लोग यहाँ मौसम का आन्नद उठाते हुए, और बच्चे खेलते हुए देखे जा सकते थे | रविवार को नैनीताल के बोर्डिंग संस्थानों का “आउटिंग डे” होता है और विद्यार्थियों को एक दिन शहर घूमने का मौका मिलाता है  | रोमांचक स्थल होने की कारण ज्यादातर विद्यार्थी उस दिन टिपन-टॉप का ही रूख करते थे इसीलिए रविवार को इस इलाके में मेला सा लग जाता है  | पिछले दिन भारी बारिश थी और आज भी कुछ ऐसा ही अंदेशा था इसीलिए आज यहाँ पेड़ों के अलावा शोर करने के लिए कोई मौजूद नहीं था | 
    
शहर के मल्लीताल इलाके से टिपन-टॉप जाने का के लिए एक कच्चा रास्ता है जिससे यात्री या तो पैदल जाते है   या फिर पहाड़ी घोड़ों में बैठकर, वैसे ज्यादातर स्थानीय लोग खासकर विद्यार्थी वहाँ पहुँचने के लिए “शोर्ट-कट” पहाड़ी रास्तों का भी उपयोग करते है | यहाँ के उत्तरी इलाके को , एक काँटों भरी बाड़ अन्य इलाकों से अलग करती थी | बाड़ पर्यटकों को उस इलाके में जाने से रोकने के लिए थी , बाड़ पर कई जगह छोटे-छोटे तख्ते लगे हुए थे जिनमे लाल रंग से चेतावनी लिखी हुए थी|

TRESSPASSING IS NOT ALLOWED
बाड़ पार करना मना है


ऐसा इसीलिए था क्योंकि उत्तरी इलाके में कई जगह पर तीखी ढलान थी जो सीधी नीचे गहरी खाई में जाती थी,  खाई की तलहटी में नैनीताल का गोल्फ का मैदान था| बरसात के मौसम मे जमीन में बिखरे चीड़ के सूखे-गीले पत्तों की फिसलन इस ढलान को और भी खतरनाक बना देती थी | बाड़ पुरानी चुकी थी और जंगली जानवरों के द्वारा कई जगहों पर तोड़ी भी जा चुकी थी | चूँकि बच्चों में वयस्कों की अपेक्षा जिज्ञासा की प्रवर्ती अधिक होती है और अवसाद झेलने की शक्ति कम, इसीलिए विद्यार्थी कई बार इस बाड़ को पार कर चुके थे, कभी किसी रोमांचक अभियान के लिए तो कभी अपना जीवन समाप्त करने के लिए | बीते सालों में कई विद्यार्थियों के शव गोल्फ के मैदान में मिल चुके थे इसलिए एहतियातन “आउटिंग डे” के दिन विद्द्यार्थियों की देखरेख के लिए कोई न कोई अद्ध्यापक उनके साथ अवश्य होता था |  

शाम होने को थी , पर इलाके पर “चहलकदमी” नदारद थी | तभी कुछ क़दमों की आहटों ने सन्नाटे को भंग किया,   स्कूल युनिफोर्म पहने हुए एक लड़की  तेज क़दमों से चीड़ के छोटे-छोटे पेड़ों से बने झुरमुटों को हाथ से हटाती हुई प्रतिबंधित क्षेत्र की जानिब जाने लगी ,धुंद ने पारदर्शिता को बिलकुल नगण्य कर दिया था पर उसकी आँखें नशे से सराबोर थी इसीलिए वह बेपरवाह इस फिसलन भरी जगह पर भागती जा रही थी, नशे में चलते कदम आंखिर कब तक फिसलन भरी जगह में संतुलन बनाये रखते.. फिसल ही गए.. और गिरते-लुढ़कते हुए वह लड़की पहाड़ी के मुहाने पर पहुँच गयी.....लड़की की अधखुली आंखे ये इशारा दे रही थी की वे उस वीभत्स स्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं और फिर कुछ देर बाद पूरी तरह बंद हो गयी |   


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