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1964 का पश्चिम बंगाल दंगा

मेरी पत्रकारिता की जिन्दगी में इस तरह के मामलात अक्सर पेश आए जब मुझे दोहरी जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ा। अखबार के साथ मिल्लत के मसलां व मामलात में अमली तौर पर हिस्सा लेना पड़ता था। आजाद हिन्दुस्तान में मुस्लिम नेतृत्व के समाप्त हो जाने के पश्चात अखबार के संपादक को ही लोग हर मर्ज की दवा और हर मसले का हल समझने लगे। मुझसे जहाँ तक संभव होता, मुस्लिम समस्याआें को अखबार के माध्यम से और जनता के प्लेटफार्म से पेश करता रहा। 1964 में प0 बंगाल पर भीषण साम्प्रदायिक दंगे का कहर टूट पड़ा। यह कांग्रेसी नेता प्रफुल्ल चन्द्र सेन की हुकूमत का दौर था डॉ0 बी0सी0 राय गुजर गए थे। हुआ यह कि कश्मीर में दरगाह हजरत बल से ‘‘मूए मुबारक’’ (दाढ़ी का बाल) चोरी हो जाने के कारण जम्मु-कश्मीर में गम व गुस्से की आग भड़क उठी। वजीर आजम कश्मीर की हुकूमत को 1952 में समाप्त कर बख्शी गुलाम मुहम्मद को केन्द्र सरकार ने सत्ता सौंप दी थी। अवाम का असल क्रोध बख्शी गुलाम मुहम्मद के खिलाफ था, वही उनका निशाना थे । पूरे कश्मीर में भीषण हिंसा व तबाही की घटनाएं पेश आइंर्। पश्चिम बंगाल में भी हिसात्मक विरोध प्रदर्शन कश्मीर की घटना पर प्रारम्भ हुए, साथ ही पूर्वी पाकिस्तान ( आज का बंगला देश) में जल्द ही हिसात्मक प्रदर्शन व परिणाम स्वरूप साम्प्रदायिक हिंसा का दौर शुरू हो गया, जिसके नतीजे में वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दुआें को भारी जान माल का नुकसान हुआ। पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल हिन्दू शरणार्थियां की आमद शुरू हो गयी। कलकत्ते के कुछ अखबारां ने इसे खूब बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, तो कलकत्ते व पास के जिलां की सौहार्द्रता का माहौल बिगड़ने लगा और साल के प्रारम्भ में साम्प्रदायिक घटनाआें के इक्का-दुक्का मामले पेश आए। 
कलकत्ता से मिले हुए बाटा नगर में दंगा भड़क उठा। मुसलमानां के सैकड़ां घर जला दिए गए।
भुवनेश्वर (उड़ीसा) में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इसे संबोधित करते हुए बेहोश हो कर गिर पड़े। अफरा-तफरी मच गई। पं0 नेहरू को फौरन दिल्ली ले जाया गया। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पी0सी0 सेन भुवनेश्वर से उड़े तो रास्ते में साम्प्रदायिक दंगे से जलते हुए बाटा नगर का हवाई नजारा करते हुए कलकत्ता पहँचे। अब साफ दिख रहा था कि पश्चिम बंगाल में बड़े साम्प्रदायिक दंगे का बादल फटने वाला है। दोपहर का वक्त था, मैं अखबार के दफ्तर में व्यस्त था कि एक मुखबिर ने आकर खबर दी कि आज रात ठीक आठ बजे अंटाली के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर फसाद बरपा होगा। यह खबर मिलते ही मैं जकरिया स्ट्रीट खिलाफत कमेटी के दफ्तर मैंं चला गया। जाने से पहले मुल्ला जान मुहम्मद को फोन कर दिया था कि कुछ और लोगां को बुला लें, जरूरी सलाह करनी है। दंगे की खबर सुनकर सभी परेशान हुए और तय पाया कि हम लोग फौरन राइटर्स बिल्डिंग जाकर मुख्यमंत्री से भेंट करें और दंगे को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने पर जोर डालें।
मेरा प्रस्ताव था कि ऐसी आशंका है कि यह दंगा बड़े सुनियोजित ढंग से बड़े पैमाने पर होगा। यह भी संभव है कि मुसलमानां को दंगाग्रस्त बस्तियां से बचाकर सुरक्षा पूर्ण ढंग से निकालना पड़े तो हम लोग मुख्यमंत्री से प्रार्थना करें कि बचाव के इस कार्य में वह हमें गोरखा पुलिस का विशेष दल उपलब्ध करांएँ। इसी के साथ-साथ हम चार-पाँच ट्रकां का भी प्रबन्ध कर लें वरना ऐन वक्त पर कुछ बनाए नहीं बनेगा। मुल्लाजान ने मेरे इस प्रस्ताव का यह कहते हुए विरोध किया कि वह 1950 ई0 वाली गलती दोबारा नहीं करेंगे कि मुसलमान अपनी बस्तियाँ खालीकर दें और उस पर गैरां का कब्जा हो जाएगा। मीटिंग में मौजूद अन्य व्यक्तियां ने भी मुल्लाजान की बात से अपनी सहमति जताई। मैंने एक बार फिर अपनी बात को दोहराते हुए कहाकि यदि दंगाइयां का हमला इतना तीव्र हुआ कि मुसलमान ठहर न सके तो ऐसी हालत में संवदेनशील क्षेत्रां से असुरक्षा की स्थिति में उन्हें गुजरना होगा और उनको अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा, परन्तु मुल्लाजान अपनी राय पर कायम रहे तो मैं खामोश हो गया। हम लोगां का एक शिष्टमंडल मुख्यमंत्री पी0सी0 सेन से मिलने पहुँचा। हमसे पहले कम्यूनिस्ट पार्टियां के लीडर बड़ी संख्या में मुख्यमंत्री से मिलने आए थे और उनसे सख्त शब्दां में दंगे को फैलने से रोकने की मांग कर रहे थे। उनके जाने के बाद हम लोग मुख्यमंत्री से मिले। वह आंखें बंद किए हुए आराम से झूलन कुर्सी पर झूलाझूल रहे थे। उनके मंत्री विजय सिंह नहार पास बैठे थे। हम ने मुख्यमंत्री को सूचना दी कि आज रात 8 बजे कलकत्ते में दंगां का सिलसिला अंटाली जिले से प्रारम्भ होगा। यदि कलकत्ता को बचाना है तो पहले अंटाली को बचाना होगा। वहाँ के थानेदार को इसी समय हटाकर किसी योग्य व मजबूत थानेदार को वहाँ भेजें। पी0सी0 सेन ने हमारी बात सुनने के पश्चात कलकत्ता पुलिस कमश्निर को आदेश दिया कि अंटाली थाना प्रभारी को हटाकर वहाँ दूसरा अफसर तुरन्त भेजो। इस आदेश का पालन अंटाली व कलकत्ता में दंगा भड़ककर शान्ति होने के दो माह पश्चात हुआ। उसी समय मुख्यमंत्री के पास बाटा नगर के दंगा पीड़ित अपनी फरियाद लेकर आ गए, कि ‘‘हमारा घर बार सब लूट मारकर के जला दिया गया है, 250 से अधिक घर जलाए जा चुके हैं। हजारां की संख्या में मुसलमान मर्द, औरतें व बच्चे बेघर व तबाह हो गए थे।
 मगरिब से पहले हम लोग खिलाफत कमेटी के दफ्तर लौट आए। ठीक 8 बजे टेलीफोन की घंटी बजी। मुल्ला जी ने मेरी ओर और मैंने उनकी ओर देखा दोनां को एक साथ यही शंका हुई कि यह दंगा प्रारम्भ होने की खबर होगी। फोन मैंने उठाया तो कोई बदहवास शख्स फरियाद कर रहा था कि अंटाली में दंगाइयां ने बड़े पैमाने पर हमला करके नरसंहार प्रारम्भ कर दिया है, हमें यहाँ से निकालो। उन दिनां अंटाली क्षेत्र में बड़ी मुस्लिम बस्ती आबाद थी और मुसलमानां के रबड़ व चमड़े के बड़े कारखाने वहाँ थे। अब फोन लगातार बज रहा था और उधर से एक ही सदा आ रही थी कि हम लोग दंगाइयां से घिर गए हैं हमको बचाओ। मुल्ला जी ने मंत्री विजय सिंह नहार को फोन किया तो उनका रूखा जवाब आया कि आप को अंटाली के मुसलमानां की चिंता है मगर हमारी ठाकुर बाड़ी को मुसलमानां ने बर्बाद कर दिया है। यह सूखा जवाब मिलने के बाद उन्हांने मुख्यमंत्री पी0सी0 सेन को फोन लगाया। वह राजभवन कम्पाउन्ड में रहते थे। शादी विवाह नहीं किया था लंडूरे थे। बाल-बच्चां के दुख दर्द से अपरिचित थे। उनके आदमी ने फोन पर बताया कि मुख्यमंत्री सो रहे हैं और उन्हें किसी हालत में जगाया नही जा सकता। उधर से मायूस होकर मुल्लाजी ने कहा कि हम लोग अंटाली चलते हैं। मुल्लाजी के पास जीप थी, उसमें जब मैं आगे बैठने लगा तो मुल्ला जी ने मुझे धक्का देकर नीचे उतार दिया और कहा ‘‘तेरे बच्चे हैं, पीछे बैठो’’। मुल्ला जी की यह हमदर्दी वाली बात आज भी मुझे याद है।
जीप जकरिया स्ट्रीट से निकली तो वेलिंगटन स्कवायर से होकर धर्मतल्ला और मौला अली का रास्ता नहीं पकड़ा जो सीधे अंटाली जाता था बल्कि स्पलेनेड, चौरन्गी और पार्क स्ट्रीट होते हुए हम लोग पार्क सर्कस मैदान से अंटाली की ओर मुड़े तो सड़क बन्द थी, पुलिस ने रूकावटें खड़ी कर दी थीं, भारी संख्या में पुलिस फोर्स मार्ग रोके खड़ी थी और सामने पूरा क्षेत्र शोलां की लपेट में था। आकाश सुर्ख हो रहा था। जलती हुई बस्ती से चीख व पुकार साफ सुनाई दे रही थी। हमने आगे बढ़ना चाहा तो पुलिस वालां ने अपनी राइफलें तान ली। एक अफसर ने आगे बढ़कर हमें आगाही दी कि ‘‘वापस चले जाओ वरना गोली चला देंगे। हम बेबस होकर खिलाफत दफ्तर वापस लौट आए। पूरी रात आँखां में कटी, फोन लगातार बजता रहा, दंगा अंटाली से भी आगे फैल रहा था। मजलूम मुसलमान मदद की गुहार लगा रहे थे, हम बेबस थे, कहने के लिए कुछ नहीं था, सिर्फ फरियाद सुनकर फोन रख देते थे, इसी में सुबह हो गयी तो मालूम हुआ कि अंटाली में आबाद पूरी बस्ती जलकर राख हो गई। रबड़ और चमड़े के कारखाने भी जलकर तबाह हो गए। पूरा क्षेत्र मुसलमानां से खाली हो गया। जिसका जहाँ सींग समाया, पनाह ली। हमने बचाव की तैयारी नहीं की थी, मंसूबे के अन्तर्गत दंगे का उद्देश्य मुस्लिम बस्तियां को खाली कराके उस पर कब्जा करना था, ताकि वहाँ अपनां की नयी आलीशान बस्तियाँ बसायी जाएँ। पुलिस पूरी तरह से दंगाइयां का साथ दे रही थी। दूसरे दिन कलकता शहर में दूर-दूर तक दंगा फैल गया और हजारां, लाखां की संख्या में तबाह बर्बाद व बेघर मुसलमान, बूढ़े, महिलाएं व बच्चे जकरिया स्ट्रीट व कोलूटोला के फरयामां पर ठंड के जमाने में पड़ गए जितनी बिल्डिंग थी सब पनाह गज़ीनां (शरणार्थियां) से भर गयी। कलकत्ता शहर में कर्फ्यू लग गया। शरणार्थियां के खाने-पीने के बन्दोबस्त करने के लिए क्षेत्र के सैकड़ां नौजवान मैदान में आ गए। फिर भी पनाहगजीनां की हालत काबिलेरहम थी। भोजन व दवा की सख्त कमी थी। घायलां को अधिकांशतः इस्लामियां अस्पताल ले जाया जाता। दूसरे और तीसरे दिन यह आलम था कि चीटियों की तरह पनाह गजीनां का रैला आ रहा था। चाँदनी क्षेत्र भी खाली होने लगा था।
दंगे के तीसरे दिन ऐसा लग रहा था कि कलकत्ता व उसके समीपवर्ती क्षेत्र मुसलमानां से खाली हो जाएंगे। प्रेस के कारण मेरा व मेरी कार का पास बन गया था। दिन और रात मैं सिर्फ चंद घंटे अखबार के दफ्तर और घर में, बाकी समय खिलाफत दफ्तर में या जहाँ-तहाँ से किसी दंगा पीड़ितां को बचाकर लाने में कट जाता, मुश्किल से दो तीन घंटे सोने को मिलते। एक सुबह आँख अभी खुली ही थी कि कोलूटोला से मुफस्सिर कुरान मौलाना हकीम मोहम्मद जमां हुसैनी का फोन आया, वह अपने मतब में थें, कैनिंग स्ट्रीट, कोलूटोला व चूना गली (फेयर्स लेन) तक पुलिस ने अंधाधुन्ध फायरिंग कर दी। हकीम साहब के फोन पर गोलियाँ चलने की आवाजें आ रही थीं। हमला दो तरफा था। उधर पुलिस गोलियाँ बरसा रही थी और दूसरी ओर सेन्ट्रल एवेन्यू से कोलूटोला में दंगाई बम मारते और आग लगाते बढ़ रहे थे। लोगां ने मौके पर एक मंत्री को भी देखा। किसी तरह दंगाई पस्पा हुए और गोलियाँ चलना भी बंद हुईं। पनाहगजीं बहुत भयभीत हो गए। उनको समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह कहाँ जाएं अब कौन-सी जगह सुरक्षित बची है ? मैं उजलत में तैयार होकर खिलाफत दफ्तर भागा। हर ओर अफरा-तफरी व दहशत का आलम था। पुलिस फायरिंग से कई लोग मर गए थे, कई घायल हो चुके थे। कोलूटोला और जकरिया स्ट्रीट के क्षेत्र भी जब पनाहगजीनां के लिए सुरक्षित नहीं रहे तो वह अपना बोरिया-बिस्तर समेटने लग गए। मालूम हुआ कि  बरबाद मुसलमानां के काफिले अब कलकत्ता मैदान में डेरा डालेंगे। इसका मतलब यह था कि कलकत्ते के मुसलमान किधर जांएगे यह किसी को नहीं मालूम। क्या पूर्वी पाकिस्तान कूच करेंगे ? किसी को कुछ नहीं पता था कि मंजिल कहाँ है और बादे हवादिस के थपेड़े उन्हें किधर ले जाएँगे? स्थिति काफी संगीन व मायूसकुन थी।
खिलाफत दफ्तर पहुँच कर मैंने प्रस्ताव रखा कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को फोन करते हैं परन्तु वह तो गंभीर रूप से बीमार होकर बिस्तर पर पड़े हुए हैं। इन्दिरागांधी से बात की जाए। उस समय इन्दिरा जी का कोई ओहदा नहीं था। 
              प्रधानमंत्री के घर ट्रेक कॉल बैक की गईं, चन्द मिनट में लाइन मिल गई, फोन इन्दिरा जी ने उठाया। मैंने विस्तार से कलकत्ता के हालात बताकर उनसे निवेदन किया कि कलकत्ते के मुसलमानां को उजड़ने से बचा लीजिए। इन्दिरा जी ने हालात सुनकर काफी चिन्ता व्यक्त की। मैंने कहा कि कलकत्ते को बचाने की एक ही सूरत है कि उसे फौज के सुपुर्द कर दिया जाए क्यांकि दंगा सुनियोजित है और प्रादेशिक हुकूमत खामोश हैं, पुसिल दंगाइयां के साथ मिली हुई है। इन्दिरा जी ने कहा कि घबराइए नहीं अपना फोन नंबर दीजिए, मैं थोड़ी देर में आप को फोन करती हूँ। खिलाफत कमेटी का फोन नम्बर उन्हें दे दिया और पन्द्रह बीस मिनट बाद इन्दिरा जी का फोन आ गया कि कलकत्ता शहर को फौज के हवाले किया जा रहा है। जनरल चौधरी फौरन कलकत्ता के लिए रवाना हो रहे हैं और शाम तक गृह मंत्री गुलजारी लाल नन्दा कलकत्ता पहुँचेगें। दो घंटे के भीतर फौजी दस्ते बैरेकां से निकल पड़े और जनरल चौधरी भी कलकत्ते आ गए। फौज ने शहर का चार्ज लेते ही लाल बाजार पुलिस हेड र्क्वाटर पर कब्जा किया। कुछ पुलिस वालां को फौजियां ने पीट भी दिया। पुलिस की गश्ती गाड़ियां की फौज ने तलाशी लेना शुरू कर दी। कुछ गाड़ियां से बम बरामद होने की भी सूचना मिली। दंगे की तीव्रता इस कद्र थी कि रात तक शहर के कई क्षेत्र जल चुके थे। केन्द्रीय गृह मंत्री गुलजारी लाल नन्दा भी कलकत्ता आ गए थे और अपनी आँखां से शहर का दृश्य देख रहे थे। नन्दा जी ने खिलाफत दफ्तर पहुँच कर मुल्लाजान मुहम्मद को साथ लिया और दौरे पर निकल पड़ें। मुझसे यह गलती हुई कि अपनी खटारा आस्टिन कार खुद चलाकर मैं उनके पीछे हो लिया परन्तु केला बगान में बुरी तरह फंस गया। पूरा क्षेत्र दंगाइयां के कब्जे में था। इमारतें और दुकानें जल रही थीं। फायर ब्रिगेड अपनी पसन्द के अनुसार इमारतां की आग बुझाते फिर रहे थे। बाकी को जलने के लिए छोड़ देते थे। एक स्थान पर सड़क पर जलता हुआ मलबा पड़ा था, मैंने बेवकूफी से जलती हुई लकड़ी के लठ्ठे पर गाड़ी चढ़ा दी गाड़ी फंस गई। अब स्थिति यह हुई कि गाड़ी में बैठे-बैठे मैं जल मरूँ या गाड़ी से बाहर किसी दंगाई के बम का निशाना बनूँ। गाड़ी पर प्रेस लिखा हुआ था, उसे देखकर फायर ब्रिगेड वालां ने मदद की और मेरी गाड़ी को जलते हुए लकड़ी के लठठे से निकाला। अब नन्दाजी के पीछे जाना फजूल था वह न जाने  किधर निकल गए हो। मैंने अपने दफ्तर का रूख कर लिया और पहली लीड स्टोरी इस घटना की बनाकर घर जाकर सो रहा। दूसरी सुबह गृहमंत्री भारत सरकार, गुलजारीलाल नन्दाजी के साथ दौरे पर मुझे निकलना था। उन की गाड़ी में पीछे की सीट पर मुल्ला जी और मैं नन्दा जी के साथ बैठे, आगे की सीट पर विजय सिंह नहार थे। हमारी गाड़ी के साथ न पुलिस और न मिलेट्री की गाड़ी थी। जकरिया स्ट्रीट से निकलकर कालेज स्ट्रीट में चले तो मेडिकल कालेज से आगे बढ़ते ही ईडेन हॉस्पिटल रोड पर दंगाइयां की भीड़ नजर आई जो आग लगा रही थी। पुलिस वाले बंदूकें लिए तमाशबीन बने खड़े थे। नन्दा जी ने यह दृश्य देखा तो बर्दाश्त न कर सके। वह गाड़ी से उतरे और पुलिस को फटकारा कि गोली क्यां नहीं चलाते, फायरिंग हुई, आठ दंगाई हताहत होकर गिरे। चार मौके पर मारे गए और चार घायल हो गए। सामने वाली गली के मोड़ पर मन्दिर था। उसके सामने भी भीड़ जमा थी। नन्दा जी जोश में आकर भीड़ की ओर ललकारते हुए बढ़े तो मैंने और मुल्लाजी ने दौड़कर उन्हें पकड़ा और गाड़ी में बिठाया। गाड़ी आगे बढ़ी तो वैलिंगटन स्क्वायर पार कर के हम एक तंग गली में दाखिल हुए। यह स्मिथ लेन थी और उसी से मिली हुई डाक्टर लेन। दोनां ही इलाके सुनसान थे, दंगाइयां ने पूरा इलाका खाली करा लिया था। यहाँ से चले तो हम लोग खिजिरपुर पहुँचे, वहाँ नजरअली बस्ती में दाखिल हुए तो देखा कि बहुत से लोग घरेलू सामान अपने सिर पर उठाकर भागे चले जा रहे हैं। नन्दाजी समझे कि यह भयभीत मुसलमान है जो घर छोड़कर भाग रहे हैं। मैंने नन्दा


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