Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

मुट्ठी भर कारपोरेट घराने और पूंजीपति अपने धन के बल पर सत्ताधारी दल पर नियंत्रण करेंगें

लखनऊ. मोदी सरकार ने संसद में बिना चर्चा कराये अपने संख्या बल पर संविधान में संशोधन कर पूँजीपतियों से चुनाव बाण्ड्स के जरिये असीमित चंदा लेने का रास्ता खोल दिया है। इससे चुनावों में पहले से चली आरही धन की भूमिका खतरनाक हद तक बढ़ जायेगी। मुट्ठी भर कारपोरेट घराने और पूंजीपति अपने धन के बल पर सत्ताधारी दल और उन दलों को जो उनके हितों को पूरा कराने को जनता के हितों को कुचलते हैं, पर अपना नियंत्रण और मजबूत करेंगे।
                         यह विचार व्यक्त करते हुए  भाकपा ( मा॰ ) की पोलिट ब्यूरो के सदस्य और पूर्व सांसद नीलोत्पल बसु ने कहा कि  इस नियम को बदलवाने के लिये वामपंथी दलों और अन्य दलों को जनता के बीच जाकर अभियान चलाना होगा और इस कानून को पलटवाना होगा नहीं तो 2019 के चुनाव की तस्वीर बहुत ही भयावह होगी। समानुपातिक चुनाव प्रणाली की वकालत करते हुये उन्होने कहाकि हमें इसी पर नहीं रुक जाना चाहिये अपितु ऐसी चुनाव प्रणाली के लिये काम करना चाहिये जो सर्वाधिक लोकतान्त्रिक हो। उन्होने उत्तर प्रदेश के वामदलों की प्रशंसा की कि उन्होने एक अति सामयिक मुद्दे को उठाने की पहलकदमी की है।
                              कन्वेन्शन के प्रारंभ में चर्चा हेतु आधार पत्र प्रस्तुत करते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने कहाकि हमारे देश की मौजूदा चुनाव प्रणाली उस ब्रिटिश उपनिवेशवाद की देन है जो ब्रिटेन में एक उदार लोकतन्त्र और अपने औपनिवेशिक देशों में कठोरतम लोकतन्त्र चलाना चाहता था। इस प्रणाली में अल्पमत बहुमत पर शासन चलाता है। गत लोकसभा चुनाव में मात्र 31 प्रतिशत मत लेकर भाजपा 282 सीटें हथिया लेगयी जबकि उसके विपक्ष में पड़े 69 प्रतिशत वोटो का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। आज यह प्रणाली धनबली बाहुबली, जातिवादी और सांप्रदायिक तत्वों को सत्ता हथियाने का साधन बन गयी है। समाज के वंचित तबके सत्ता में भागीदारी से वंचित होते जारहे हैं।
उन्होने कहाकि समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली में पार्टियों को प्राप्त मतों के समकक्ष प्रतिनिधित्व मिलता है। महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और अन्य तबके भी सत्ता में भागीदार बनते हैं। पार्टियों की नीतियों पर वोट मिलता है और पार्टियों में आंतरिक लोकतन्त्र स्थापित करना पड़ता है। इस प्रणाली के जरिये गरीबों का शासन स्थापित किया जासकता है और समतमूलक समाज की स्थापना के काम को आगे बढ़ाया जासकता है। आज दुनियाँ के 92 देश इस प्रणाली को अपना चुके हैं। हाल ही में नेपाल में भी अर्ध समानुपातिक प्रणाली से चुनाव हुये और धर्मान्ध ताकतों को मुह की खानी पड़ी। डा॰ गिरीश ने कहाकि यदि यह प्रणाली लागू होजायेगी तो भाजपा कभी भी सत्ता का मुह नहीं देख पायेगी। उन्होने जनता के दूसरे सवालों के साथ जोड़ कर इस सवाल पर आंदोलन खड़ा करने पर ज़ोर दिया।
भाकपा- माले के पोलिट ब्यूरो के सदस्य का॰ रामजी राय ने कहाकि यह लड़ाई उस उत्तर प्रदेश से शुरू हुयी है जिसने 1857 में अँग्रेजी हुकूमत को ललकारा था। वामपंथ को चाहिये कि वह जनता के ज्वलंत मुद्दों पर चल रहे आंदोलनों को और तेज करे।
कन्वेन्शन को आल इंडिया फारबर्ड ब्लाक के नेता उदय भान सिंह, सीपीएम के राज्य सचिव डा॰ हीरालाल यादव, भाकपा- माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव, भाकपा के राज्य सह सचिव अरविंदराज स्वरूप, राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय सचिव शिव बरन सिंह, पूर्व विधायक, राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता अरुण यादव, अपना दल ( क्रष्णा पटेल ) के अध्यक्ष आर॰ बी॰ सिंह पटेल तथा लोकतान्त्रिक जनता दल के अध्यक्ष जुबेर अहमद ने भी संबोधित किया। अध्यक्षता इम्तियाज़ अहमद पूर्व विधायक, दीनानाथ यादव पूर्व विधायक, सुधाकर यादव तथा हरीशंकर गुप्ता ने की।
कन्वेन्शन में पारित प्रस्ताव में मांग की गयी है कि निर्वाचन आयोग चुनाव सुधार पर विभिन्न आयोगों, कमेटियों और न्यायिक फैसलों के आधार पर एकमुश्त ड्राफ्ट तैयार करे जिसमें समानुपातिक चुनाव प्रणाली की सिफ़ारिश भी शामिल हो। इस पर चर्चा के लिये सभी राजनेतिक दलों की बैठक बुलाई जाये।
ईवीएम के सवाल पर कन्वेन्शन की राय है कि सारा मतदान वीवीपेट युक्त मशीनों से हो। इन मशीनों की विश्वसनीयता की गारंटी करना निर्वाचन आयोग और सरकार की ज़िम्मेदारी है।
साथ ही पूँजीपतियों द्वारा राजनैतिक दलों को चंदा देने पर रोक लगाने, और यह चंदा चुनाव आयोग को दिये जाने, चुनाव प्रचार के लिये स्टेट फंडिंग किये जाने, चुनावी विज्ञापन और धन के बल पर होने वाले मीडिया मैनेजमेंट को प्रतिबंधित किये जाने, प्रत्याशी के चुनाव खर्च में दल का खर्च भी जोड़े जाने, अपराधियों के चुनाव लड़ने से रोकने की कारगर प्रणाली तैयार करने तथा चुने प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार जनता को दिये जाने की मांग भी की गयी है। 

सम्मेलन का आयोजन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी ) भाकपा- माले और फारबर्ड ब्लाक की राज्य कमेटियों ने संयुक्त रूप से किया था। कई धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक दलों के नेताओं ने सम्मेलन में पहुँच कर वामपंथी दलों की इस पहल के साथ एकजुटता का इजहार किया। इससे इस कन्वेन्शन का संदेश और व्यापक हुआ है। 
  कन्वेन्शन ने सभी लोकतान्त्रिक दलों, शख़्सियतों, बुद्धिजीवियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, आदिवासियों और इन सभी के शुभचिंतकों से अपील की है कि वे समानुपातिक चुनाव प्रणाली और चुनाव सुधार लागू कराने की मुहिम में वामपंथी दलों का साथ दें।


This post first appeared on लो क सं घ र्ष !, please read the originial post: here

Share the post

मुट्ठी भर कारपोरेट घराने और पूंजीपति अपने धन के बल पर सत्ताधारी दल पर नियंत्रण करेंगें

×

Subscribe to लो क सं घ र्ष !

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×