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निजी क्षेत्र के श्रमिकों की स्‍थिति बदतरतम



-- रिटायर्ड ई पी एफ ओ पेंशनर जा पहुंचे बी पी एल राशन कार्ड ( पात्र ग्रहस्‍थ) पाने की कैटेगरी में  
केन्‍द्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार 
आगरा: मोदी सरकार के द्वारा शासन के चौथे साल में भी एम्‍पलाई प्रोवीडैंट फंड पेशन की सुधार संभावनाओं को नजरह अंदाज कर दिये जाने से उ प्र के निजीक्षेत्र कर्मचारी और ई पी एफ ओ पेंशन पाने वाले लगभग 1.2 करोड वर्तमान व रिटायर्ड श्रमिकों में भारी निराशा है। अगर समय रहते कोयी ठोस कदम नहीं उठाया तो पेंशनरों के सामने जीवन यापन की आधार भूत जरूरतें जुटाना भी मुश्‍किल हो जायेगा।इनमें ससे ज्‍यादातर की मांग हे कि पेंशन
बढाये या नहीं किन्‍तु गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को दिया जाने वाला राशन कार्ड जिसे कि प्रचलन में बी पी एल कार्ड कहा जाता है दिलवाना
सुनिश्‍चित करें।  क्‍योकि पी एफ पेंशप पाने वाले शत प्रतिशत विलो पावर्टी लाइन के नीचे आमदनी वाले है और उ प्र शासन की पात्र ग्रहस्‍थ की परिभाषा की कसौटी पर खरे हैं।
सबसे अधिक दिलचस्‍पी पूर्ण तथ्‍य यह है कि उद्योग लगाने और उद्यमियो के लिये सुविधाओं व आर्थिक सहायता की बात तो सरकार कर रही है किन्‍तु लो पेड उस श्रम शक्‍ति के बारे में अब तक सरकार ने चार साल में कुछ भी नया नहीं किया। यहां तक कि श्रमिकों की की हालात सुधारने के लिये सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिये गये उस आदेश तक पर अमल करने को प्रयास नहीं किया जो कि श्रमिकों की पेंशन स्‍थिति में सुधार लाने के लिये लम्‍बी कानूनी प्रक्रिया के बाद संभव हुआ था।
वर्तमान में अधिकांश ई पी एफ ओ पेंशन पाने वालों को एक हजार से 2500 के बीच में ही धन मिलता है। इसमें भी अस्‍सी प्रतिशत वे हैं जिन्‍हे एक हजार से डेढ हजार के बीच ही धन मिलपाता है। यह राशि मनरेगा श्रमिकों को मिनीमम वर्कडेज गारंटी के एवज में मिलने वाली राशि से भी चालीस प्रतिशत से भी कम है।
कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार के समय पेंशन की मौजूदा स्‍थिति सुधार को 6500 वेतन की गणना राशि को 15000 कर दिया गया था किन्‍तु भाजपा सरकार ने इसका लाभ केवल उन श्रमिकों  तक ही सीमित करके रख दिया जो कि 2014 के बाद यानि श्री नरेन्‍द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद रिटायर्ड हुए थे। सरकार ने यह फैसला उस समय लिये जब कि दिल्‍ली में एक रैंक एक पेंशन का आंदोलन पूर्व सैनिकों के द्वारा किया हुआ था और सरकार भी इसे स्‍वीकार कर चुकी थी।
सेवा रत श्रमिकों में से ज्‍यादातर असंगठित क्षेत्र की सी स्‍थिति में हैं।अस्‍सी प्रतिशत से ज्‍यादा कांट्रैक्‍ट वर्कर है, या फिर आऊट सोर्सिंग  एजैसियों के माध्‍यम से उनकी सेवायें ली जा रही हैं। ऐसे मे पूरा वेतन और श्रम मंत्रालय के द्वारा दी जाने वाली अन्‍य सुविधाये दिया जाना तो दूर  बल्‍कि अपनी मेहनत की कमाई मे से एक भाग  काम दिलवाने वाले एजैंट को देना पडते हैं।हाल में न्‍यायलय के हुए निर्णयों के तहत अब ठेका श्रमिक भी नियमित कर्मचारियों के समान ही ई पी एफ ओ पेंशन , प्रौवीडैंट फंड पाने के अधिकारी हो गये हैं किन्‍तु अब आऊट सोर्सिंग एजैंसियों को हिदायत दी गयी  है कि कर्मचारियों को बदल बदल कर भेजो जिससे कि वे नौकरी या पद पर स्‍थायी होन का क्‍लेम न करने लगें।
सेवा रत कर्मचािरयों को भी ज्‍यादा दिन काम पर टिकने देना उद्यमियों में से अधिकांश की नीित है और सरकार का उसे अधोषित रूप से पूरा समर्थन है। उ प्र में श्रम विभाग कर्मचािरयों के मामले हल करवाने में नाकारा साबित हो रहा है। अगर निस्‍तारित वादों की स्‍थिति का विश्‍लेषण किया जाये तो उपश्रमायुक्‍त और श्रमायुक्‍त कार्यालयों में आने वाले वादों में से निस्‍तारित होने वाले वादो का प्रतिशत पांच से भी कम  है। श्रम न्‍यायलयों की स्‍थिति और भी खराब  है। सरकारी सेवाओं के रिटायर्ड आफीसर इनके पीठासीन अधिकारी हैं , इनमें से अधिकांश लंवित वादों को र्निस्‍तारित करने के स्‍थान पर लम्‍बी लम्‍बी तारीखे देते रहते हैं। श्रमिकों केे द्वारा दायर किये गये मुकदमों में सेवायोजकों की गवाही की स्‍थिति तक पहुंचना काफी जतन से ही संभव हो पाता है।


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