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reservation mistake of constitution

आरक्षण- संविधान की सबसे बड़ी भूल




इधर बहुत दिनो से अनेक सरकारी परीक्षाओ मे फेल होते होते मन मे एक खिन्नता सी आ गई थी . लेकिन इस बात का विश्वास की अगली बार या एक बार भी परीक्षा मे पास हो गये तो आने वाली जिंदगी सुकून से निकल जायेगी और सारे दुख दर्द दूर हो जायेंगे एक परीक्षा और दे आते है . वैसे तो हम जाती को नही मानते लेकिन अलग अलग जातियों की जारी होने वाली कट – ऑफ लिस्ट और उनका अंतर कहीं ना कहीं जाति  व्यवस्था को लेकर समाज की और सरकार की मान्यता दर्शाता है क्या जनरल वालो के दिमाग मे अलग से कोई कम्प्यूटर की तरह् प्रोसेसर लगा होता है जिससे वी यदि 200 अंको की परीक्षा मे 189 लाये तो उनका सेलेक्शन अमुक परीक्षा के लिये होगा और पिछड़ी जाति का विद्यार्थी 150 और अति पिछड़ी जाति  का 100 नंबर लाने पर ही अपनी सीट सुरक्षित कर लेता है क्या इसको लेकर अन्य जातियो मे वैमनस्य नही उत्पन्न होता .
यदि यह मान्यता सही है तो क्या मायावती जैसी नेता के पास दिमाग की कमी है क्या अखिलेश यादव द्वारा चुनाव लड़ने पर 50000 वोट स्वतः ही बढ़ा देना चाहिये क्योंकि वो पिछड़ी जाती से है . यानी हमारा संविधान मानता है की अखंड भारत मे दिमाग के अनुसार लोगो का बंटवारा किया जाता है . संविधान मे यदि आरक्षण लागू है तो में साफ कहना चाहूंगा की उसका फार्मूला ही गलत है . में नही मानता ऐसे संविधान को जिसने आज जाती व्यवस्था को इतना बढ़ावा दे दिया की इंसान स्वार्थ हेतु एक दूसरे को मारने काटने पर उतारू है जहा पिछडेपन का करण आर्थिक स्थिति ना होकर मानसिक स्थिति है . हम खुद ही जातियो को हंसी का पात्र बनाते जा रहे है और उस वर्ग मे कुंठा को उपजा रहे है जो दिन रात मेहनत करके अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की कोशिश करता है .
अब कुछ लोग कह सकते है की संविधान ने तो इसे 10 साल के लिये है लागू किया था पर राजनीतिक पार्टीयो ने वोट बैंक की राजनीति के लिये इसे आजतक जारी रखा तो इसमे भी कही ना कही संविधान की ही खामी है संविधान सभा मे जहा प्रत्येक कानून के निर्माण के समय उसकी विसंगतियो और भविष्य मे होने वाले दुरुपयोग पर विचार किया गया वही इस पर भी अवश्य विचार करना चाहिये था की राजनीतिक दल अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु कुछ भी कर सकते है . 
अगर लाभ के लिये आरक्षण हेतु दंगो पर उतारू हुआ जा सकता है अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करके दंगे भडकाया जा सकता है तो मेरा सरकार से अनुरोध है की कृपया करके इनपर कारवाई ना की जाये क्योंकि हमारा संविधान भी मानता है की भारत मे कई जातिया ऐसी है जिनके पास दिमाग की कमी है हो सके इसी कमी की वजह से उनसे कुछ गलती हो गई हो . अगर उनके पास दिमाग की कमी नही होती तो आरक्षण हटाने का पहला प्रस्ताव उन्ही की तरफ से आता की इसे खत्म किया जाये हम किसी से कम नही है और आरक्षण और जाति को लेकर इस देश मे कोई राजनीति ना हो अगर करनी ही है तो केवल विकास और की राजनीति हो रोजगार की राजनीति हो शान्ती की राजनीति हो अहिंसा की राजनीति हो परंतु यह तभी संभव है जब हम तर्क के साथ सवाल पूछना शुरु करते है जब प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारो के प्रति जागरूक हो जब इस देश मे शिक्षा का स्तर नकल से अकल के लिये जाना जाये जब नाली से लेकर संसद मे दी जाने वाली गाली का हिसाब लिया जाये . जय हिन्द …

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