"इश्क एक हादसा! एक दम वैसा ही, जैसे, मन के शीशे को, बेचैनी के पत्थर से, किरच किरच में ,पसार देना, और फ़िर, लहू लुहान हथेलियों को, अश्क के मरहम से देना, ’मसर्रत’! और कौन? फ़िर,अपने आपसे पूछना भी!"
"इश्क एक हादसा! एक दम वैसा ही, जैसे, मन के शीशे को, बेचैनी के पत्थर से, किरच किरच में ,पसार देना, और फ़िर, लहू लुहान हथेलियों को, अश्क के मरहम से देना, ’मसर्रत’! और कौन? फ़िर,अपने आपसे पूछना भी!"
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