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क्या भारत चीन से टकराने में सक्षम नहीं है, आईये परखते हैं की ये कितना सत्य है ?

बहुत से पत्रकार ये विचार फैलाने में लगे हैं की यदि भारत चीन का युद्ध हुआ तो भारत चीन से लड़ने में सक्षम नहीं है, किंतु ध्यान देने योग्य बात ये है की इन पत्रकारों को न तो सैन्य रणनीति का ज्ञान है, न भारत-चीन की थल व् जल  सीमाओं की भौगोलिक परिस्थितियों का, इनमें से कइयों ने तो आज तक LAC (लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल) भी नही देखी है, युद्ध की नीतियों व् सामान्य  नियमों से ये पूर्णतः अनभिज्ञ  है, 
सत्य ये है की चीन की जल,थल व् वायु सेना अनुभवहीन है, युद्ध में चीन छोटे से देश वियतनाम से और 1967  में  भारत से हार चुका है, अब यहाँ मैं केवल भारत को रक्षात्मक भूमिका में रखकर चीन द्वारा थोपे गए युद्ध के समय भारत की क्षमता को आज की परिस्थितियों के परिपेक्ष्य  में  रखकर आपसे परिचित करवाने का प्रयास कर रहा हूँ,

आज की युद्ध-नीति का नियम है की  रक्षात्मक मुद्रा में बैठी सेना से जीतने हेतु 9:1 के रेशियो की आवश्यकता होती है, अर्थार्थ हर एक रक्षात्मक सैनिक के लिए 9 आक्रमणकारी सैनिक चाहिए, भारत ने करीब 1.5 लाख सैनिक चीन सीमा पर तैनात कर रखे हैं, जिसका मतलब उनसे निपटने के लिए चीन को 13.5 लाख सैनिक चाहिए, जो आंकड़ा चीन के पास नहीं है, इसके अलावा भारत ने दो माउंटेन डिविजन डोकलाम में लगा रखी है, और यहाँ भारतीय सेना ऊँचाई पर बैठी है जिसका सीधा रणनीतिक लाभ भारत को है,

चीन अपनी आवश्यकता का 80% तेल आयात करता है जो अंडमान के पास मलक्का स्ट्रेट से जाता है जो मात्र 1.7 किमी चौड़ा है और अंडमान में भारत का नौसैनिक अड्डा है, जहाँ यदि भारतीय नेवी ब्लॉकेड कर दे तो चीन तेल की एक एक बूँद के लिए मोहताज हो जायेगा और केवल अपने उसी तेल पर निर्भर रहेगा को उसने संग्रह कर के रख छोड़ा होगा, और तेल के अभाव में कोई भी सेना लम्बे समय तक युद्ध नहीं लड़ सकती,

चीन यदि मिसाइलों व् वायुसेना का प्रयोग करता है तो फिर सीधा युद्ध होगा जिसमे भारत विश्व की सबसे तीव्रतम क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस का प्रयोग करेगा जो ध्वनि की गति से 3.5 गुना अधिक तेज है जिसकी रेंज MTCR के सदस्य बनने के बाद भारत दोगुनी कर चुका है जिसे केवल विश्व में एक ही मिसाइल रोक सकती है बराक-8 जो केवल भारत व् इसराइल के पास है, और ब्रह्मोस किसी भी आगे बढती सैन्य टुकड़ी, जहाज  व् एयरक्राफ़्ट कैरियर तक को नष्ट कर सकती है, इसके अलावा भारत प्रहार, पृथ्वी-II,पृथ्वी-III,शौर्य, अग्नि-I,अग्नि-II,अग्नि-III,अग्नि-IV जैसी घातक मिसाइलों से चीन के शहरों पर भी आक्रमण कर सकता है, ध्यान देने की बात ये हैं की चीन के पास कोई बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम नहीं है,

चीनी हवाई हमलों,  मिसाइलों व्  युद्धक विमानों के लिए भारतीय सेना के पास पर्याप्त  संख्या में स्टिंगर, बराक-8, आकाश, S-125, S-200, 9K33 Osa, 9K35 Strela-10, 9K22 Tunguska, SA-18 Grouse जैसी मिसाइल हैं, जो चीन के हवाई आक्रमण से निपटने में सक्षम हैं, यह स्थिति तब की है यदि भारत वायु सेना का प्रयोग न करे, यदि वायु सेना युद्ध में उतरती है तो MIG21, MIG29, Sukhoi30-MKI, MIRAGE-2000 जैसे युद्धक विमान विश्व के सर्वाधिक ट्रेंड भारतीय पायलट्स के हाथों में इतने घातक तो हैं ही की भारतीय एयरस्पेस से चीन के विमानों का सकुशल वापस जाना असंभव बना दें 

इंडियन ओशन क्षेत्र में  P8i व् MIG29K जैसे एयरक्राफ्ट, आईएनएस विक्रमादित्य जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस चक्र, आईएनएस अरिहंत, आईएनएस चक्र, सिंधुघोष, शिशुमार क्लास की न्यूक्लियर व् कन्वेंशनल सबमरीन, कोलकाता, दिल्ली व् राजपूत क्लास के डीस्ट्रॉयर, शिवालिक, तलवार, ब्रह्मपुत्र व् गोदावरी क्लास के फ्रिगेट्स व्  बराक-8, सागरिका, K-4 व् ब्रह्मोस से लैस  भारतीय नेवी की स्थिति सिर्फ इस बात से समझ लीजिये की इस जल क्षेत्र से भारतीय नेवी इतनी भली प्रकार परिचित है अमेरिकी नेवी से युद्ध अभ्यास में पलड़ा बराबरी का रहा था,


अंत में यदि स्थिति परमाणु युद्ध तक आई तो भारत व् चीन दोनों के प्रमुख शहर एक दूसरे की मिसाइलों की जद में हैं और दोनों ही परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हैं और चीन भली प्रकार जनता है की भारत के पास सेकेंड स्ट्राइक की क्षमता है अर्थार्त भारत समुद्र में कहीं से भी अपनी पनडुब्बी से परमाणु मिसाइल सागरिका या K-4 का प्रयोग कर सकता है

चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर हैं और लगभग सभी देश चीन के सस्ते कम गुणवत्ता वाले उत्पादों के कारण व्यापार घाटे से त्रस्त हैं, और इस समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, जापान व् लगभग संपूर्ण यूरोप जो चीन के लिए एक बड़े बाजार की तरह है वो भारत के साथ है, 
युद्ध की दशा में ये देश चीन पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा सकते हैं जिससे चीनी अर्थव्यवस्था की कमर टूटना तय है, पश्चिमी देशों व् अमेरिका के भारत से घनिष्ठ होते सम्बन्धों को देखकर एक बात से इंकार नहीं किया जा सकता की चीन से सीधे युद्ध की स्थिति में नाटो फोर्सेस भारत के पक्ष में युद्ध कर सकती है, ऐसी स्थिति में चीन के पास केवल पाकिस्तान और नार्थ कोरिया जैसे सहयोगी होंगे और आर्थिक संकट से जूझ रहा रूस तटस्थ भूमिका में रहेगा,

मिडिया, पत्रकार बुद्धिजीवी स्वघोषित विश्लेषक चाहे कुछ भी दावे कर लें किन्तु यथार्थ यही है की भारत चीनी आक्रमण से निपटने में व् चीन को गम्भीर व् भारी क्षति पहुँचाने में पूर्ण रूप से सक्षम है और चीन भी भली प्रकार जानता है की भारत से युद्ध में जो आर्थिक क्षति उसे पहुंचेगी वो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए न केवल घातक सिद्ध होगी, अपीतु चीन के अपने आपको आर्थिक महाशक्ति के रूप में देखने के स्वप्न को सदैव के लिए चकनाचूर कर देगी, और दूसरी ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी जो एक प्रोपगैंडा के अंतर्गत अपने को सर्वशक्तिमान दिखाकर लोकतंत्र की मांग करने वालों के हौसलों का आजतक दमन करती आई है उसके लिए युद्ध के उपरांत उठ खड़े होने वाली लोकतंत्र की मांग और बगावत से निपटना बहोत कठिन होगा और सम्भव है चीन में गृहयुद्ध की स्थिति आ जाये और आर्थिक संकट से पीड़ित चीन सोवियत संघ की तरह कई टुकड़ों में टूट जाये

लेखक: रोहन शर्मा


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