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भारत का अराजक विपक्ष

रोहित वेमुला का नाम लेकर दलित राजनीति करने वाले धूर्त व् नीच नेताओं का मुँह जांच रिपोर्ट के आने के बाद पुनः काला हो गया है, जाँच रिपोर्ट में कहा गया है की रोहित वेमुला दलित था ही नहीं, उसकी माँ ने आरक्षण का लाभ उठाने हेतु दलित होने का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाया था, वैसे यही बात मिडिया का एक छोटा सा वर्ग कह रहा था, तथा स्मृति ईरानी ने भी संसद में यही बात कही थी, किन्तु पूरे विपक्ष, मुख्यधारा के मिडिया तथा सत्ता विरोधी बुद्धिजीवी वर्ग और NGO ब्रिगेड ने बिना सच नकार दिया और देशव्यापी प्रदर्शन, धरने, मशाल और मोमबत्ती जुलुस निकलने में व्यस्त हो गए, उन्हें लगा की ये एक अवसर है जिससे वो सरकार पर दलित विरोधी होने का ठप्पा लगा सकते हैं, और उन्होंने भरसक प्रयास किया और लड़के की मृत्यु पर सब अपने स्वार्थ, राजनीती, एजेंडा और वोट बैंक की रोटियां सेंकने निकल पड़े, दलित वोट बैंक की आड़ में समान्य वर्ग को जी भर कर कोसा गया गलियां दी गयी, और बिन कारण के भला बुरा कहा गया, किन्तु अब जांच रिपोर्ट के सामने आने के बाद एक भी नेता,पत्रकार-एडिटर,बुद्धिजीवी व् NGO ब्रिगेड का व्यक्ति निकल कर नहीं आया जिसने अपनी गलती स्वीकारी हो और क्षमा मांगी हो। 

यह पहली बार नहीं है की झूठी बातें फैलाकर देश में आग लगाने का प्रयास किया गया है, दादरी के अख़लाक़ वाले मामले में, मुस्लिम औरत को फ़्लैट न मिलने का झूठा विषय, बौलीवुड की एक हस्ती द्वारा गौ रक्षकों पर झूठा केस दर्ज कराने का विषय, चर्चों पर हमलों के झूठे मामलों में भी कुछ ऐसे ही प्रयास हुए थे, जिनके द्वारा देश में हिंसा-दंगे व् आगजनी फैलाने का प्रयास विपक्ष के बड़े नेताओं,पत्रकारों-एडिटरों, इतिहासकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों,NGO ब्रिगेड व् चिन्तकों द्वारा किया गया,

इन अराजक सरकार विरोधियों की समस्या ये है की इनका समर्थन करने वाली व् इन्हें अनैतिक आर्थिक लाभ पहुंचाने वाली राजनितिक पार्टियां केंद्रीय सत्ता से बाहर है, जिससे इनके पास आने वाला धन और मिलने वाली सुविधाएं जैसे सरकारी निवास, मलाईदार पद, विभिन्न प्रकार के भत्ते और चापलूसी के उपहार स्वरूप मिलने वाले पुरस्कार व् पुरस्कार राशि, मुफ्त की विदेश यात्रायें व् उसका पूरा खर्च मिलना रुक गया है,और उसी बौखलाहट व् द्वेष के कारण ये लोग मौजूदा सरकार के शत्रु बन बैठे हैं और हर विषय और मुद्दे को झूठ का आवरण पहनाकर सरकार पर हमला कर उसका जनाधार खंडित करने का प्रयास कर रहे हैं। 

वहीँ दूसरी और सत्तादारी पार्टी को आर्थिक नीतियों द्वारा अर्थव्यवस्था को सुदृण करने, सरकारी सब्सिडी व् फंड की चोरी रोकने  व् उसका लाभ जनता तक पहुंचाने में अपार सफलता मिली है जिसके फलस्वरूप सरकार के प्रति जनता का विश्वास, आकर्षण व् लोकप्रियता बढ़ी है, जिससे सभी विपक्षियों को अपनी दुकानें बन्द होने का भय है,

अतः इसीलिए ये कुछ भी करके सत्तासीन पार्टी की छवि बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं, चाहें देश में दंगे हो, आग लगे, देश की छवि को आघात हो या कानून व्यवस्था का ही संकट खड़ा हो जाए,
इन्हें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, इन्हें केवल जनता के संसाधनों व् धन का दोहन कर सत्ता चाहिए व् उसके द्वारा मिलने वाली सुविधाओं व् आर्थिक लाभ से मतलब है, बाकी न इन्हें देशहित से मतलब है, न जनता के हित से, एक दृष्टि से देखा जाए तो ये जनता के लिए अवसर है ऐसे लोगों के असली व्यक्तित्व, विचारधारा, उद्देश्य व् चेहरे पहचानने का।


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