बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए गए 7 हिन्दू श्रद्धालुओं को इस्लामी आतंकवादियों ने मार डाला। मारे गए 7 हिन्दू श्रद्धालुओं में से 6 महिलाएं हैं। इन हत्याओं से इस्लामिक आतंकवाद का वो खतरा सामने आ गया है, जिसे भारत की सरकारें, राजनीतिक दल, समाज और हिन्दू-मुसलमान भी मानने को तैयार नहीं हैं। इस्लामिक आतंकवाद पर लम्बे समय से भारत की सरकार, राजनीतिक दल और कश्मीर की सरकार और राजनीतिक दलों ने आंखें मूंद रखी थीं। भारत में मुसलमानों की बड़ी आबादी होने से और कश्मीर में घाटी में लगभग मुसलमान रह जाने की वजह से कोई भी राजनीतिक दल या सरकार कश्मीर घाटी में हो रही आतंकवादी घटनाओं को इस्लामी कहने का खतरा मोल नहीं लेना चाह रही थी। हालांकि, हिज्बुल मुजाहिदीन के कमान्डर रहे जाकिर मूसा ने इस्लामी आतंकवाद के सारे आवरण उतार दिए। मूसा 4 मिनट के वीडियो में साफ कह रहा है कि भारतीय मुसलमान दुनिया के सबसे कायर मुसलमान हैं। हम इस्लाम का राज कायम करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम कश्मीरियत को बचाने की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। कश्मीर में कोई राजनीतिक लड़ाई हम नहीं लड़ रहे हैं। हम इस्लाम की लड़ाई लड़ रहे हैं। और इसके रास्ते में जो भी आएगा, उसे इसका परिणाम भुगतना होगा। हिज्बुल के कमान्डर रहे जाकिर मूसा ने अल कायदा का हाथ थामने के बाद जारी वीडियो में यही सब बातें कही हैं। गजवा ए हिन्द की बात लम्बे समय से कही जा रही थी। जिसकी बात पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी करते रहे हैं। पहली बार ये बात इतने साफ तौर पर किसी आतंकवादी ने खुद कबूली है।
इस्लामिक आतंकवाद को नकारने की कोशिश
जाकिर मूसा के वीडियो और अयूब पंडित की हत्या के बाद इतना तय है कि इस इस्लामिक आतंकवाद के शिकार हिन्दू होंगे, ऐसा सोचने वाले गलतफहमी के शिकार हैं। और आतंकवादियों के इस्लामिक राज में मुसलमानों के लिए धरती जन्नत हो जाएगी, ऐसा समझने वालों से बड़ा बेवकूफ धरती पर कोई नहीं। सीरिया और इराक 2 सबसे बड़े उदाहरण हैं, जहां इस्लामिक आतंकवाद ने सिर्फ मुसलमानों को मारा है। इस इस्लामिक आतंकवाद की वजह से दुनिया के किसी भी देश में मुसलमान सन्देह के दायरे में हैं। यहां तक कि वो मुसलमान भी जो बेचारा सीरिया या इराक से इस्लामिक आतंकवाद का शिकार होने से बचकर भाग निकला। उसकी वजह बड़ी साफ है मुसलमानों ने लम्बे समय तक इस्लामिक आतंकवाद को मानने से ही इनकार कर दिया। आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता, ये एक ऐसा अचूक मंत्र है, जिसके आवरण में आतंकवाद का कट्टर इस्लामिक चेहरा ढंक दिया जाता है।
इस्लामिक आतंकवाद कैसे घाटी में जगह बना चुका है। इसका उदाहरण सिर्फ जाकिर मूसा का वीडियो नहीं हैं। पत्रकार रवीश रंजन शुक्ला का लिखा इस्लामिक आतंकवाद को नकार रहे हिन्दुस्तान की तस्वीर पेश करता है। वो लिखते हैं “बुरहान वानी को चे ग्वेरा मानेंगे और सेना के जनरल की तुलना जनरल डायर से करेंगे... हम कहेंगे तीर्थयात्रियों पर ये हमला आजादी की जंग है।“ बुरहान वानी को सेना ने मार गिराया। बुरहान वानी घाटी में एक ऐसे आतंकवादी कमांडर के तौर पर उभरा था, जिसने घाटी के नौजवानों को कट्टर इस्लामिक आतंकवाद की तरफ आकर्षित किया। सोचिए उस देश में क्या हो सकता है, जहां बुरहान वानी जैसे आतंकवादी के साथ सहानुभूति करके भी राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश राजनीतिक पार्टियां करती हों। सेना पर ही सवाल खड़ा किया जाए। इस तरह की छोटी-छोटी लगातार हुई घटनाओं ने घाटी में इस्लामिक आतंकवाद को मजबूत किया है। और ये इस्लामिक आतंकवाद कैसे हिन्दुस्तान में घुस चुका है। इसका पता हमें तब चलता है, जब देश के अलग-अलग हिस्सों से सीरिया में इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ने कुछ हिन्दुस्तानी मुसलमानों के जाने की खबर आती है।
घाटी में मजबूत होता इस्लामिक आतंकवाद
लम्बे समय से कश्मीर घाटी में वहाबी/सलाफी इस्लाम मजबूत हो रहा था। मूर्ख किस्म के विश्लेषक ये कहते रहते हैं कि कश्मीर घाटी में बीजेपी-पीडीपी की सरकार के गलत फैसलों की वजह से हिंसक घटनाएं बढ़ी हैं। जबकि, सच्चाई ये है कि पीडीपी-बीजेपी की सरकार ने कश्मीरियत के खिलाफ कोई फैसला नहीं लिया है। हां, इस्लामिक आतंकवादियों को मारने का फैसला जरूर हुआ है। इस फैसले ने चुपचाप इस्लामिक आतंकवाद फैला रहे कट्टर मुसलमानों को विचलित कर दिया। इस कदर कि उन्होंने भारतीय मुसलमानों को ही कायर कह दिया। दरअसल अरब से आया शुद्ध इस्लाम कहता है कि वहाबी/सलाफी के अलावा सारे मुसलमानों को भी शुद्ध करने की जरूरत है। इस्लामिक आतंकवादी बार-बार ये बात कह रहे हैं कि ये सच्चे मुसलमान और गैर मुसलमान की लड़ाई है। सच्चा मुसलमान कौन ? सच्चा मुसलमान वो जो सच्चा इस्लाम माने और सच्चे इस्लाम में गैर मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है। यानी अगर कोई मुसलमान भी सच्चा इस्लाम नहीं मान रहा है, तो उसके लिए इस्लामिक आतंकवाद रियायत नहीं देता। अब तो छुट्टी पर जाने वाले पुलिस और सेना के मुसलमान अधिकारियों को मारा जा रहा है। इस्लामिक आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों को भी मारा जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण शब ए कदर की रात की तकरीर के दौरान डीएसपी अयूब पंडित को पीटकर मारा जाना है। डीएसपी पंडित मारवाइज उमर फारुक के साथ सुरक्षा में थे। मीरवाइज मस्जिद में अन्दर तकरीर देते रहे और बाहर भीड़ ने डीएसपी पंडित को पीटकर मार डाला। डीएसपी के शव पर रोते हुए भतीजी चीख रही थी- हां, हम भारतीय हैं, हम भारतीय हैं। उन्होंने हमारे अंकल को मार दिया।
2003 में संयुक्त हुर्रियत कांफ्रेंस में विघटन के बाद वहाबी/सलाफी इस्लाम का विस्तार तेजी से हुआ। उसके बाद के एक दशक में ये विस्तार तेजी से हुआ। अरब के पैसे से फल फूल रहा वहाबिज्म नौजवानों को आकर्षित करने लगा। बताया जाता है कि कश्मीर घाटी में कुल 7500 मस्जिदें हैं, इनमें सबसे ज्यादा हनाफी मस्जिदें हैं। जबकि, 200 के आसपास सूफी दरगाह हैं। और करीब 1000 मस्जिदें ऐसी हैं, जो वहाबी प्रभाव वाली हैं। यही मस्जिदें हैं, जहां से सच्चे इस्लाम का राज कायम करने की तकरीरें दी जाती हैं। वहाबी प्रभाव वाली मस्जिदों का विस्तार पिछले डेढ़ दशक में बहुत तेजी से हुआ है। लेकिन, जम्मू कश्मीर और केंद्र की सरकार ने अभी भी इस कट्टर इस्लामिक विस्तार पर जानते हुए भी आंखें मूंद रखी थीं।
इस्लामिक आतंकवाद से अनजान नहीं है जम्मू कश्मीर की सरकार
बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी के बिगड़े माहौल के बीच जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह से मेरी एक मुलाकात हुई थी। मैंने उनसे पूछा कि सरकार की क्या योजना है ? उन्होंने कहा- हालात कठिन हैं। कोई सीधा और तुरन्त वाला रास्ता नहीं है। निर्मल सिंह ने बताया कि शान्ति वाले इस्लामिक पन्थ को मजबूत करके हम कट्टर इस्लाम से लड़ेंगे। उदाहरण के तौर पर निर्मल सिंह ने चरारे शरीफ दरगाह को गोद लिया है। लेकिन, इतने भर से अब बात नहीं बनने वाली। सरकार में बैठे लोगों से लेकर समाज तक को ये खुलकर बोलना होगा। कट्टर इस्लामिक खतरे के बारे में शाहिद सिद्दीकी साफ-साफ कहते हैं। शाहिद सिद्दीकी लिखते हैं “मैं लम्बे समय से घाटी में सूफी को खत्म करके बढ़ रहे वहाबी खतरे के बारे में चेता रहा हूं। दुर्भाग्य ये है कि मुख्यधारा के राजनीतिक दल वहाबियों को समर्थन दे रहे हैं।” वो आगे लिखते हैं “कश्मीर कब तक खुद का इस्तेमाल पाकिस्तानी आतंकवादियों को करने देगा। आईएसआईएस ने इराक और सीरिया को खत्म कर दिया। अब वो कश्मीर खत्म कर देंगे।” दुर्भाग्य से अभी भी किसी भी राजनीतिक दल ने अमरनाथ यात्रियों की हत्या पर इस्लामिक आतंकवाद और वहाबी इस्लाम पर लानत नहीं भेजा है। ये चिन्ता की बात है।
भारतीय मुसलमान कायरता छोड़े
सचमुच भारतीय मुसलमान आतंकवादी जाकिर मूसा के लिए चिन्ता की वजह है। क्योंकि, इस्लाम के नाम पर इतना भड़काने के बाद भी भारतीय मुसलमान उस तरह से कट्टर इस्लामिक आतंकवाद के साथ नहीं खड़ा हो रहा है, जो उम्मीद इस्लामिक स्टेट के आकाओं ने पाल रखी है। इसीलिए वो परेशान हैं। जरूरी है कि भारतीय मुसलमान कायरता छोड़कर इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को बढ़ाने की कोशिश में लगे लोगों का खुलकर विरोध करे। वो विरोध अमरनाथ यात्रा पर गए श्रद्धालुओं की हत्या के बाद प्रतीक तौर पर दिखने से कुछ नहीं होगा। हिन्दुस्तानी मुसलमान की नीयत पर सन्देह नहीं है। लेकिन, ये पक्के तौर पर समझना होगा। मुसलमान होने के नाते बुरहान वानी जैसे आतंकवादी को हीरो बना देने की हल्की सी भी गुन्जाइश इस्लामिक आतंकवाद को ही मजबूत करेगी, इस्लाम को नहीं। वहाबी मस्जिदें घाटी से निकलकर देश के दूसरे हिस्सों तक पहुंच चुकी हैं। उन पर सरकार को कड़ी कार्रवाई करना चाहिए। उसके लिए देश के किसी दूसरे हिस्से में अमरनाथ यात्रा जैसी घटना का इन्तजार करना ठीक नहीं होगा। अब इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ पूरे हिन्दुस्तान को मिलकर बड़ी लड़ाई लड़ना ही होगा।