Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

मुम्बई मेट्रो: घाटकोपर से वर्सोवा

मेट्रो शानदार साधन, सुविधा है। मेट्रो सुन्दर, उसके स्टेशन सुन्दर और इसमें यात्रा करते यात्री भी सुन्दर ही दिखते हैं। मुम्बई में घाटकोपर से वर्सोवा की मेट्रो की सवारी भी ऐसा ही अहसास देती है। मेट्रो के बाहर की ये तस्वीर उसी ख़ूबसूरती को और बढ़ाती दिखती है। लेकिन, पहाड़ी के नीचे आती नीली छतों वाली ये तस्वीर उतनी ख़ूबसूरत नहीं है। बल्कि, ये मुम्बई या कहें कि हर बढ़ते शहर की लाइलाज बीमारी है। अवैध झुग्गी-झोपड़ी। मुम्बई की लोकल के किनारे तो जैसे झुग्गी ही स्वाभाविक दृश्य है। अब मेट्रो को इन्हीं झुग्गियाँ के बीच में से अपना रास्ता बनाना पड़ रहा है।


मुम्बई मेट्रो में ये निर्देश देखकर समझ आया कि मुम्बई लोकल जिन्दाबाद थी, है और रहेगी। हालांकि, मेट्रो बची रहे, इसके लिए ये बेहद जरूरी है। निर्देश हिन्दी और मराठी में ही लिखे हैं। क्योंकि, ये तो साफ है कि मराठी या हिन्दी समझ रखने वालों के अलावा तो कोई मच्छी लेकर तो मुम्बई में आने-जाने से रहा। और सबसे अच्छी इस निर्देश के साथ लगी हुई ये तस्वीर। 








दिल्ली मुम्बई हर तरह से अलग है। सोचिए मेट्रो भी अलग हो गई है। दिल्ली मेट्रो में सीट के नीचे पैर पसारने का जुगाड़ है। मुम्बई मेट्रो में घर, सड़क की तरह मेट्रो में बैठे भी "सकेते म समधियान" टाइप मामला। मुम्बई पसरने का मौक़ा मेट्रो में भी नहीं दे रही है।


This post first appeared on बतंगड़ BATANGAD, please read the originial post: here

Share the post

मुम्बई मेट्रो: घाटकोपर से वर्सोवा

×

Subscribe to बतंगड़ Batangad

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×