हुआ है क्या लोगों ,आज़ के ज़माने को, ढूंढता है क्यूँ ,हर गली जाती है मयख़ाने को।💐 छोड़ दी पीनी हमने ,उसके इसरार पर पाबन्दी लगा दी है मगर, उसने हमें बताने की।💐 नींद भरी आंखों में ,ना देखो लाल डोरों को, परछाईं है उसकी मय भरी 'आंखों के पैमानों की।💐 लड़खड़ाता हूँ मैं ये सबको ,बहुत अजीब लगता है, पर क्या करूं ये अदा है मेरी ,मंज़िल तक पहुंच जाने की।💐 आसान नहीं है इश्के-इबादत ,इस स्याह दुनिया में, आग के
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