समंदर के किनारों पर ,अपना नाम लिखता हूँ। पता है मिटा देंगी इन्हें लहरें। फिर भी बेखौफ आम लिखता हूँ।। खुद ही खींच कर समानान्तर लकीरें, उनके साथ चलता हूँ। कभी तो मिल जाएं ये आपस में, दुआओं संग यही पैग़ाम लिखता हूँ।। कहीं कोई छाप ना लग जाये , मेरे शब्दों पर, कभी रहीम लिखता हूँ ,कभी राम लिखता हूँ।। चाहे सुबह की लालिमा हो ,या डूबते सूरज की, ज़िन्दगी की भी इसी कहानी को, सुबह शाम लिखता हूँ।। कमलेश, फल की
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