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मेट्रो रेल के हैदराबाद

मेट्रो रेल के हैदराबाद में आने से अब रियल इस्टेट के दाम शहर के बाहर के हिस्सों में भी बढ़ जाएँगे और व्यापार के लिए लोग बाहर से आएँगे हैदराबाद शहर लखनऊ की तरह बहुत ही आलसी शहर हुआ करता था। पहले आप पहले आप में नवाब साहब की गाड़ी हैदराबाद में भी निकल जाया करती थी, क्योंकि हैदराबाद भी बहुत ही तहज़ीब और इज्जत देने का शहर रहा है, यहाँ पर हरेक व्यापारी एक दूसरे को राजा-राजा कहकर बात किया करता है। यहाँ के लोगों का पहले एक ही काम हुआ करता था, खूब खाना और शुगर बढ़ा लेना, और दिन भर एसिडिटी का शिकार होकर डकार मारते रहना। और ढरा ढर ढरा ढर आवाज़ों के लिए बाध्य हो जाना। लोग आपस में अपने ही घर की बात है कहकर बात किया करते हैं। लेकिन जब से ओला और ऊबर टैक्सी हैदराबाद में आ गयी है, तब से हैदराबाद के हरेक गाड़ी की तेज़ी बहुत बढ़ गयी है, बेहद सुकून के इस हैदराबाद शहर में अब सड़क पार करना बहुत ही मुश्किल हो गया है। अब आप मोजमजाही मार्केट की सड़क सुकून से पार नहीं कर सकते, काचीगुडा की नही, बेगमबाज़ार की नहीं, आबिद रोड की नहीं, चारमीनार की नहीं, मदीना की नहीं, शालीबंडा के उतार की सड़क पार करो तो सारी गाडियाँ अपने ही शरीर पर आती हुई दिखाई देती हैं। बहुत ही मुश्किल हो गया था, जीना हैदराबाद में। हैदराबाद में घंटों तक मनतख़ा मारना, इधर-उधर के चारमीनार के चार पुडियाँ मारना (यानी झूठ बात कहना) फेकमफाक करना अब कम होता चला जा रहा है, दिन भर लोगों को उल्लू बनाना और दुश्मनों को अनजान मारना इस शहर की ख़ासियत हो गयी थी। लेकिन पुराने शहर में अभी भी इत्मिनान की ज़िंदगी लोग जीते हैं। लेकिन अब यह इत्मिनान लोगों का छिन सकता है, क्योंकि अब मेट्रो लाईन यानी मेट्रो ट्रेन हैदराबाद में आ गयी है, इस इत्मिनान से सोते हुए शहर को मोदीजी ने बटन दबाकर तेज़ कर दिया है। अब चूँकि पहले-पहल मेट्रो रेल हैदराबाद के बाहरी हिस्से में शुरू हुई है तो वहाँ के रियल इस्टेट के दाम आसमान छू सकते हैं, मेट्रो रेल के आने से लोग अब कार में नहीं जाकर मेट्रो रेल में जाया करेंगे। अमीर से अमीर आदमी भी मेट्रो रेल से जाया करेंगे। क्योंकि यह अमीरों की मेट्रो रेल हो गयी है, अब स्टेशनों पर सीढियाँ चढ़ने की ज़रूरत ही नहीं, एस्केलेटर से ऊपर आराम से जा सकते हैं। इस शहर में यह मेट्रो रेल उसी जगह पहले शुरू हुई है जहाँ पर आँधा के लोग बहुत रहते हैं। कुक्कटपल्ली में तो सभी आँधा के लोग ही रहते हैं, पहले ये लोग डर रहे थे कि तेरास सरकार इनको वापस उनके मुल्क भेज देगी लेकिन अब उन्हें डरने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि अब तो उनके घरों के दाम जो पच्चीस लाख रुपये थे, अब वह दो करोड़ के हो सकते हैं। मेडूगुडा, उप्पल, नागोल के दाम अब आसमान छू सकते हैं। इधर नागोल के बीएन रेड़ी नगर के आस पास भी घरों के दाम एक करोड़ रुपये से दो करोड़ रुपये हो सकते हैं, वहाँ के ज़मीनों के दाम भी बहुत बढ़ सकते हैं। अब तो ऐसा हो जायेगा कि मेट्रो रेल के स्टेशन के आस-पास दाम बेतहाशा बढ़ जाएँगे वहाँ के लोग बैठे-बैठे लखपति से करोड़पति हो जाएँगे। पहले क्या था कि काचीगुडा के गोकुलधाम के रेट बहुत ज़्यादा हो गये थे, हौलेपाशा लोग नारायणगुडा, चिक्क्डपल्ली, हिमायतनगर में ही मरखप रहे थे, यहाँ के ही फ्लैट ख़रीद रहे थे, लेकिन अब इन सभी की ज़िंदगी ढकलुस ज़िंदगी हो गयी है, बेचारे ये लोग हैरान, बौरान, परेशान गली के लोग हो गये हैं, क्योंकि इनके पास अब मेट्रो रेल की जन्नत नहीं रह गयी है, आयेगी भी तो कब आयेगी, ऊपरवाला ही जाने, अब हरेक इलाके के एमएलए और एमपी पर बहुत सारा प्रेशर आ सकता है कि वे लोग मेट्रो रेल के नये स्टेशन बनाएँ वरना उनकी सीट को भी ख़तरा हो सकता है। उनकी पुंगी कभी भी बज सकती है, उनकी बरात कभी भी निकल सकती है। इतना ही नहीं जहाँ-जहाँ पर मेट्रो रेल की पटरियों की जगह बनी हुई है वहाँ के दाम आसमान छू सकते हैं। और जहाँ-जहाँ पर मेट्रो रेल के स्टेशन हैं वहाँ पर बीस-बीस माले के शापिंग कामप्लेक्स शुरू हो सकते हैं, अब मेट्रो रेल के आने के बाद हैदराबाद में बाहर के लोग भी बहुत सारा पैसा लगाना चाहेंगे। वे यहाँ आकर नयी-नयी दुकानें खोल सकते हैं। अब मेट्रो रेल के पास के थियेटरों की भी चाँदी हो गयी है, यहाँ पर भीड़ ज्यादा हो सकती है, मेट्रोरेल के पास के कॉलेज भी बहुत चल सकते हैं, वहाँ के कॉलेज अपनी फ़ीस को दस हज़ार रुपये तक बढ़ा सकते हैं।
दिल्ली में तो इस समय मेट्रो रेल का जाल कम से कम सौ से लेकर डेढ़ सौ किलोमीटर तक फैला हुआ है, हरियाणा दिल्ली मेट्रो रेल से ही जोड़ दिये गये हैं। दिल्ली में तो एक रिश्तेदार अगर अस्सी किलोमीटर की दूरी पर भी रहता है तो उस तक लोग आराम से मेट्रो रेल की मारफत केवल एक घंटे में ही पहुँच जाया करते हैं दिल्ली अब बेतहाशा फैल गया है, अब हम तो कहते हैं कि जहाँ भी मेट्रो रेल का प्रोजेक्ट सुनने को भी मिले तो लोगों को वहाँ की ज़मीन ले लेना चाहिए, इस टाइगर की बात नहीं सुनोगे तो बहुत पछताओगे। जैसे ही आपने मेट्रो रेल के स्टेशन के पास ज़मीन ले ली तो रिशतेदार को ख़र्चा-पानी देने की भी ज़रूरत नहीं है, रिश्तेदार अपने आप कुत्ते की मौत मर जायेगा, लेकिन हैदराबाद में तो कबूतरखाना से अलवाल जाना हो तो नानी तो क्या परनानी भी याद आ जाती है, कार में अलवाल जाने तक तीन से चार घंटे तक कार में धकेलते धकेलते ढकलुस ज़िंदगी जीना पड़ रहा है। पीठ में तो इतना दर्द होता है पीठ जाकर पटा बन जाती है, और कमर जाकर कमरा बन जाती है, पैर सुन्न हो जाते हैं, कार में से उतरने के लिए दो लोगों को उठाना पड़ता है, तब सभी लोग यही कहते हैं दो लोगों से क्यों उठवा रहे हो सीधे सीढ़ी लाकर चार लोग उठाकर शमशान क्यों नहीं पहुँचा देते। कहानी ही ख़त्म हो जायेगी। पूरी रिश्तेदारी की कार में ही माँ बहन हो जाया करती है, तीन घंटे की कार ड्राइविंग करके रिश्तेदार के पास जाते-जाते उस रिश्तेदार की माँ, बहन, बाप दादा, काका, काकी, सभी की जन्मकुंडली तो क्या मरणकुंडली भी गिना दिया करते हैं, मगर अब मेट्रो है तो जन्नत ही जन्नत है।मेट्रो में DD DDD D DDD D DDD D DD DS DaaL aDaDBDB DuD D DDu uDuDu DuD uDuuD uDu uDD D DBDB DuDS D DuLCaaLu DuD Du D DuDD DuD D BDBD D DuDu uD DuuDD uLS
मेट्रो रेल आते ही हरेक शहर नैशनल से ज़्यादा इंटरनैशनल हो जाया करता है। क्योंकि हर जगह पर तेज़ी से पहुँचा जा सकता है। उप्पल स्टेडियम में अब पाँच हज़ार लोग तो ज़्यादा आ सकते हैं। हैदराबाद में लोगों के पास पैसा बहुत हो गया था, क्योंकि हैदराबाद से अमेरिका लंदन में जाने वाले युवाओं ने लाखों करोड़ों रुपया तो कमा लिया था, लेकिन उनके पास शहर के भीतर घूमने का कोई तेज़ साधन नहीं था, मेट्रो रेल के आने से कॉरपोरेट जगत के युवाओं को बहुत ही फ़ायदा हो गया है, अब बड़े आराम से लोग इससे तेज़ी से दफ्तर जा सकते हैं नहीं तो इनकी ज़िंदगी बहुत ही बेज़ार, उजाड़, बेबस, लाचार, ज़िंदगी हो गयी थी, लोग देरी की वजह से आत्महत्या की भी कोशिश करने वाले थे, कि ये कैसा जीवन है कि जितने घंटे दफ्तर में गुजारो उतना ही कैबों में गुजारना पड़ रहा था। दफ्तर से घर आने तक तो सभी निढाल होकर सो जाया करते थे। प्यार करने का समय ही नहीं मिला करता था, क्योंकि शक्ति ही नहीं बची रह पाती थी, अब तो सभी लोग यही गीत गा रहे हैं, जो अभिनेता अशोक कुमार ने गाया था। अरे रेलगाड़ी, अरे रेलगाड़ी, आगे वाले स्टेशन बोले रुक रुक रुक रुक, धड़क धुडुक, धड़क धुडुक. ।
अब यहाँ से जनता ही जमकर शोर मचाना शुरू कर देगी कि जहाँ पर इस समय मेट्रो लाइन अधूरा बनकर तैयार है वहाँ का काम युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए नहीं तो इसी विषय को लेकर तेरास सरकार को गिरा दिया जा सकता है। इसलिए तेरास सरकार के लोग दिन रात काम करके मेट्रोरेल को तेज़ी से लाने की कोशिश कर सकते हैं, इधर भाजपा भी तेलंगाना में सरकार बनाना चाहती है, इसलिए इसी मुद्दे पर भाजपा भी यह चुनाव में जीत सकती है।
हैदराबाद में या हैदराबाद के बाहर के लोग हैदराबाद की ट्राफिक से बहुत ही उकता चुके हैं। अब तो ट्रैफिक की इतनी बुरी हालत हो चुकी है कि अब तो फुटपाथ ही नहीं बचे थे। अब बाहर के लोग शहर को आकर मेट्रो रेल में जाकर अपना काम जल्दी से निबटाकर उसी पलाईट से अपने शहर वापस चले जा सकते हैं।
आजकल का हर छोटा बड़ा व्यापारी यही शोर मचा रहा है कि समय ही नहीं मिल रहा है, ट्राफिक इतना ज्यादा हो गया है हम सोचते हैं कि आज पाँच काम तो कर ही लेंगे लेकिन बहुत ही रात होने तक केवल तीन काम ही हो पाते हैं इससे हमारा व्यापार आगे नहीं बढ़ पा रहा है, इससे सभी को बहुत ही नुकसान हो रहा है।
चलिए बाहें फैलाकर मेट्रो रेल का स्वागत करते हैं, इससे अब एमएमटीएस भी ज्यादा राउंड करेगा या इसकी संख्या बढ़ी दी जायेगी, अब हमें गर्व है कि हम मुंबई और दिल्ली की तरह आगे निकल चुके हैं।
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