दलजीत चौधरी ने बताया कि ये सभी संदिग्ध खुद से रैडिकलाइज हुए थे और इन्हें बाहर से किसी भी तरह की मदद नहीं मिली थी, इन लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए आईएस के लिटरेचर को पढ़ते थे और उससे प्रेरित होते थे। दलजीत चौधरी ने कहा कि हमारे पास ऐसा कोई सबूत नहीं जिससे हम कह सके कि ये संदिग्ध सीधे तौर पर आईएस से जुड़े थे बल्कि ये खुद से आईएस के साहित्य की तरफ प्रेरित थे और खुद को खुरासान मॉडूल्य के तौर पर स्थापित करना चाहते ते।
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सरेंडर कराने की बहुत कोशिश की एडीजी ने बताया कि हमने सैफुल्ला के भाई और पड़ोस में रहने वाले हाजी साहब के जरिए कोशिश की ताकि सैफुल्ला खुद को सरेंडर कर दे लेकिन उसने सरेंडर करने से इनकार कर दिया है। हमने काफी कोशिश की कि सैफुल्ला खुद को सरेंडर करे लेकिन बावजूद इसके हमने अपनी कोशिशे जारी रखी, आखिरकार हमें फोर्सफुल एंट्री कमरे में करनी पड़ी जिसके बाद सैफुल्ला की मौत हो गई।
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सैफुल्ला के पास से तीन पासपोर्ट पाए गए हैं जिसमें से एक पासपोर्ट सैफुल्ला का ही है जोकि लखनऊ पासपोर्ट से जारी किया गया है और इसमें सैफुल्ला के घर जोकि कानपुर में मनोहर नगर का पता है और इसी पते पर सैफुल्ला के परिवार वाले आज भी रहते हैं। हम यह नहीं कहेंगे कि यह संदिग्ध नौसिखिए हैं, इनमें से कई लोगों ने ब्लास्ट किए थे और कई लोगों ने काफी सख्त रवैया भी दिखाया था।