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कबीर दास के दोहे अर्थ सहित | Kabir Das Ki Amritvani

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित | Kabir Das Ki Amritvani

कबीर के दोहे (Kabir Dohe)

संत कबीर का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था. कबीर दास एक महान कवि थे. उन्होनें हिन्दी भाषा में अपनी रचनाएँ लिखी थी. इन्हीं रचनाओं को नाम दिया गया कबीर के दोहे (kabir das ki amritvani). जो लोग कबीर दोहे का उच्चारण करते है उन्हें सुख समृद्धि मिलती है. आज हम आपको कबीर के दोहे अर्थ सहित बताएँगे.

कबीर के दोहे अर्थ सहित (Kabir Das Ki Amritvani)

कबीर के दोहे हमें जीवन में सही राह की प्रेरणा देते है. यदि हम कबीर दोहे का ठीक से उच्चारण करें तो हमें सफलता प्राप्त हो सकती है और हमारी सोच सकारात्मक बन जाती है. जाने कुछ महत्वपूर्ण कबीर के दोहे अर्थ सहित –

“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब.
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब.”

अर्थ: कबीर जी कहते है कि जो कार्य कल करना है उसे आज ही कर लो और जो कार्य आज करना है उसे अभी कर डालो. थोड़े ही समय में जीवन ख़त्म हो जाएगा, तो कार्य कब पूरा कर पाएगा.

“गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय.
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय.”

अर्थ: कबीर दोहे (kabir dohe) का मतलब है कि अगर गुरु और भगवान आपके सामने खड़े हो तो आप पहले किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने ही हमें ज्ञान दिया है उन्होनें ही हमें भगवान से मिलने की राह दिखाई है कबीर के कहने का मतलब है कि गुरु भगवान से बड़ा होता है इसलिए पहले गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए.

“ऐसी वाणी बोलिए, मन का आप खोये.
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए.”

अर्थ: कबीर के दोहे का अर्थ है कि हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो लोगो के मन को भाए मतलब दूसरे लोगो के मन को अच्छी लगे. ऐसी वाणी दूसरों को सुख और आनंद देती है, जब दूसरे व्यक्ति हमारी वाणी से सुख में हो तो खुद को भी खुशी मिलती है.

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर.
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर.”

अर्थ: कबीर दोहे (kabir dohe) का अर्थ है कि खजूर का पेड़ बहुत लंबा होता है. लेकिन उस पेड़ का कोई फायदा नहीं होता है क्युकि ना तो वह पेड़ पंछी को छाया देता है और फल भी बहुत दूर लगते हैं. वैसे ही अगर कोई इंसान बड़ा है लेकिन दूसरों का भला नहीं करता तो उसका बड़े होने का कोई फायदा नहीं है.

“दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय.
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय.”

अर्थ: संत कबीर दास का कहना है कि इंसान भगवान को दुख के समय याद करता है, लेकिन सुख के आने पर इंसान भगवान को भूल जाता है. यदि इंसान सुख के आने पर भगवान को नहीं भूलता है अर्थात हर समय भगवान को याद करता है तो उसके जीवन में दुख नहीं आता है.

“नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए.
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए.”

अर्थ: इस कबीर दोहे का अर्थ है क़ि नहाने धोने से कोई फायदा नहीं है अगर आपके मन में मैल है. जैसे मछली हमेशा पानी में ही रहती है लेकिन मछली से बदबू नहीं जाती.

“आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर.
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर.”

अर्थ: कबीर जी कहते है कि राजा हो या फकीर अगर दुनिया में आए है तो एक दिन जाना भी पड़ेगा. अंतिम समय में यमदूत सभी को एक जंजीर में बाँध कर ले जाएँगे.

“जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान.
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान.”

अर्थ: कबीर के दोहे का अर्थ है कि सज्जन लोगों की जाती नहीं पूछनी चाहिए उनसे ज्ञान के बारे में बात करनी चाहिए. जैसे मूल्य तो तलवार का होता है तलवार को ढकने वाले खोल (म्यार) का नहीं.

“अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप.
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप.”

अर्थ: कबीर के दोहे (kabir dohe) का मतलब है कि अति चीज़ बुरी होती है. जैसे ज़्यादा बोलना भी ठीक नहीं होता और ना ज़्यादा चुप रहना. वैसे ही न ज़्यादा बारिश ठीक होती है और न ही अधिक धूप.

“माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे.
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे.”

अर्थ: इस कबीर के दोहे (Kabir Das Ki Amritvani) का मतलब है मिट्टी कुमार से कहती है कि आज तू मुझे रौंद रहा है बर्तन बनाने के लिए. एक दिन ऐसा भी आएगा जब तू मिट्टी में मिल जाएगा और मैं तुझे रौंदूंगी.

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