Section 377
मनुष्य का रंग, लम्बाई, लिंग कुछ ऐसी चीजें है जो प्राकृतिक है जिसे कोई नहीं बदल सकता और ना ही किसी मनुष्य के रंग, लिंग या उसकी की प्राकृति भावनाओं के लिए उसे दोषी ठहराया जा सकता है हालांकि हम लोग ही समाज के दायरे बनाते बनाते इस बात को भुल जाते है। और उन सभी प्राकृतिक चीजों पर अंगुली उठाते है जिस पर किसी का भी बस नहीं है।
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शायद यही वजह से कई सौ सालों के बाद हमारे समाज के एक महत्वपूर्ण वर्ग को उसका अधिकार प्राप्त हुआ जब सुप्रीम कोर्ट व्दारा भारत में धारा 377 – Dhara 377 को खत्म करने का आदेश दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जिस्टस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने पांच जजों वाली बेंच की अगुवाई में इस फैसले की घोषणा की अब आईपीसी की धारा 377 – Section 377 को खत्म कर दिया जाएगा। हालांकि हमें से कई लोग धारा 377 – Dhara 377 से अनजान है चलिए आपको बताते है आखिर धारा 377 है क्या और वो कौन सा वर्ग जिसमें इस धारा के खत्म होने से सबसे ज्यादा खुशी है।
आईये जानते हैं क्या हैं धारा 377 – What is Section 377
ये हम सभी जानते है हमारे देश ब्रिटिश का गुलाम था लेकिन 1947 में आजादी के बाद भी भारतीय दंड संहिता में कई धाराएं ब्रिटिश कानून से ली गई है जिनमें से एक समलैंगिगता को अपराध मानने वाली धारा 377 भी थी समलैंगिगकता का कानून भारत में साल 1862 में ब्रिटिश ने बनाया था।
इस धारा के अनुसार दो समलैंगिक लोगों का शादी करना या यौन संबंध बनाना कानून अपराध था। क्योंकि दो समलैंगिग के यौन संबंधो को अप्राकृतिक यौन संबंध माना जाता था जो गैर कानूनी था। इस अपराध के लिए दोषी को 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रवाधान है।
हालांकि यहां पर ये बात भी आप लोगों को जानना जरुरी है कि धारा 377 – Article 377 कें अंतर्गत केवल समलैंगिगक के यौन संबंध को गैरकानूनी नहीं माना जाता था। बल्कि किसी जानवर और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन हिंसा को भी अपराध माना जाता था और इस धारा के अँतर्गत सजा और जुर्माने का प्रवाधान था।
इस धारा से जुड़ी एक अहम बात ये भी है कि इस धारा के लिए किसी वॉरेट की जरुरत नहीं होती थी केवल शक के आधार पर या फिर गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस किसी को भी गिरफ्तार कर सकती थी। जिस वजह पिछले 150 सालों के अंदर देश में इस धारा के अंतगर्त समलैंगिक संबंध बनाने के जुर्म में करीब 200 लोगों को दोषी माना जा चुका है।
कैसे खत्म हुई धारा 377 – How to End Article 377
स्त्री और पुरुषों के अलावा हमारे समाज में समलैंगिक लोग भी रहते है हालांकि उन्हें समाज में मान्यता नहीं दी जाती थी जिसके कारण उनके अधिकारों पर किसका कभी ध्यान ही नहीं गया। लेकिन इस धारा को चुनौती उस समय मिली जब वेश्यावृत्ति के दलदल में बर्बाद हो चुकी जिंदगियों को बचाने वाली एक संस्था ने इस धारा के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। समानता के अधिकार के तहत हाइकोर्ट ने माना कि दो वयस्क समलैंगिकों के बीच संबंध को गैरकानूनी नहीं माना जा सकता।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को बहाल कर दिया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जबतक धारा 377 है तबतक समलैंगिकता को अपराध माना जाएगा। लेकिन इस साल लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को खत्म करने का फैसला सुनाया। यानी की भारत में भी अब समलैंगिकता अपराध नहीं है।
आपको बता दें इसे पहले पिछले साल आस्ट्रेलिया ने भी अपने यहां समलैंगिगकता के कानून को खत्म करते हुए समलैंगिक लोगों को शादी करने की मंजूरी दी थी। इसके अलावा दुनियाभर में ओर बहुत सारे देश है जहां समलैंगिगकता अपराध नहीं है।
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