एक बार की बात है। गुरुकुल में २ ब्राह्मण एक साथ पढ़ते थे। आगे चलकर चारों ने आचार्य स्तर की शिक्षा के लिए अलग अलग विषय का चयन किया। एक ने ज्योतिष शास्त्र को चुना तो दूसरे ने कर्मकांड को।
उन दोनों में मित्रता तो दिखती थी लेकिन सभी को पीठ पीछे एक दूसरे की शिकायत करने की आदत थी। जिसे पैशुन्य की संज्ञा दी जाती है। सभी आस पास के गाँव के रहने वाले थे। वो सभी अपने शिक्षा शास्त्र की अवधी पूरी होने पर अपने गावँ को चल दिए।
पुराने समय में अधिकांश लोग पद यात्रा ही किया करते थे। पथिक पाथेय लेकर चलते थे और संध्या होने पर पास के किसी गाँव में विश्राम कर लेते थे। दोनों एक साथ गुरुकुल छोड़ चुके थे गोधूलि देखकर विद्वान ब्राह्मणों ने पास के गांव के एक वणिक के यहाँ ठहरने के निश्चय किये।
वणिये ने उन दोनों का स्वागत किया। एक एक विप्र कुमार का स्नान मज्जन आदि से स्वागत करने लगा। जब ज्योतिष से आचार्य किये ब्राह्मण स्नान कर रहे थे तो बनिए ने कर्मकाण्ड से आचार्य ब्राह्मण के विद्वता और स्वभाव के बारे में पूछा। ब्राह्मण कुमार को पैशुन्य की आदत थी सो दूसरे ब्राह्मण के बारे में बताया की "वो गधे है मतिमंद हैं "
पुनः दूसरे ब्राह्मण कुमार को स्नान मज्जन करने के क्रम में ज्योतिषी जी के बारे में पूछा। कर्मकांडी ब्राह्मण ने अपनी साथी ब्राह्मण को बैल बताया। क्योंकि वो बैल की तरह ज्यादा कहते थे।
अब उस व्यवसायी ने भोजनोपरांत पशुशाला में उन दोनों के सोने का व्यवस्था किया। जिसके बारे में बैल सुना उसे बैलों के साथ और जिसके बारे में गधा सुना उसे गधे के साथ सोने को विवश होना पड़ा। ब्राह्मण कुमारों ने सोचा की संभव है इस बनिए के पास अतिथि कक्ष न हो जिससे लाचार होकर इसने हमें पशुशाला में सुलाया।
सुबह उठाने पर स्नानादि से निवृत होने के बाद बनिए से इसका कारण ज्ञात करना चाहा तो बनिए ने जबाब दिया। आप दोने ने एक दूसरे के बारे में मुझे अच्छी तरह बता दिया था. अब गधे और बैल को तो अतिथि कक्ष में नहीं सुलाया जा सकता न।
सारांश :पैशुन्य बहुत निंदनीय है। हम किसी की आदर करते हैं तो आदर पाते हैं। शिकायत करते हैं तो शिकायत पाते है। महापुरुषों का कहना है --अगर आप अपनी बड़ाई चाहते है तो, दूसरे की बड़ाई कीजिये। आपको अपने मुँह से अपनी बड़ाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, लोग आपकी बड़ाई करेंगे।
praise other and get praise
पुनः दूसरे ब्राह्मण कुमार को स्नान मज्जन करने के क्रम में ज्योतिषी जी के बारे में पूछा। कर्मकांडी ब्राह्मण ने अपनी साथी ब्राह्मण को बैल बताया। क्योंकि वो बैल की तरह ज्यादा कहते थे।
अब उस व्यवसायी ने भोजनोपरांत पशुशाला में उन दोनों के सोने का व्यवस्था किया। जिसके बारे में बैल सुना उसे बैलों के साथ और जिसके बारे में गधा सुना उसे गधे के साथ सोने को विवश होना पड़ा। ब्राह्मण कुमारों ने सोचा की संभव है इस बनिए के पास अतिथि कक्ष न हो जिससे लाचार होकर इसने हमें पशुशाला में सुलाया।
सुबह उठाने पर स्नानादि से निवृत होने के बाद बनिए से इसका कारण ज्ञात करना चाहा तो बनिए ने जबाब दिया। आप दोने ने एक दूसरे के बारे में मुझे अच्छी तरह बता दिया था. अब गधे और बैल को तो अतिथि कक्ष में नहीं सुलाया जा सकता न।
सारांश :पैशुन्य बहुत निंदनीय है। हम किसी की आदर करते हैं तो आदर पाते हैं। शिकायत करते हैं तो शिकायत पाते है। महापुरुषों का कहना है --अगर आप अपनी बड़ाई चाहते है तो, दूसरे की बड़ाई कीजिये। आपको अपने मुँह से अपनी बड़ाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, लोग आपकी बड़ाई करेंगे।
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