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ऊंट किस करवट लेगा

कोई सौ साल हुए।   होड़ल गॉँव  में एक कुम्हार रहता था।  वह मिट्टी के अच्छे-अच्छे बर्तन बनाकर बाजार में बेचा करता था।  उसके बनाए बर्तन इतने अच्छे होते थे कि हाथों हाथ बिक जाते थे। 

कुम्हार के पड़ोस में एक किसान भी रहता था।  जो अपनी खेती में कभी कभार साग-सब्जी बो दिया करता था।  उसके पास ऊँट भी था जो खेत जोतने और सवारी के काम आता था।  एक.बार कोई बड़ा पर्व आया किसान ने सोचा वह तो मेरे पास है ही क्यों ना इस बार साग सब्जी बाजार में ले जाकर बेची जाए। त्यौहार होने के कारण सब्जी के अच्छे दाम मिल जाएंगे तो रुके काम हो जाएँगे ।

कुमार ने जब सुना कि उसका पड़ोसी किसान अपनी साग सब्जी लेकर इस बार बाजार जाएगा तो वह किसान के पास आया।  बोला भैया तुम मंडी जा रहे हो मुझे भी साथ ले चलो हंसते-बोलते रास्ते भी कट जाए और तुम्हारा माल भी मैं अच्छे दाम पर बिकवा दूंगा।

किसान भोला-भाला था कुमार की बात मान गया।  निश्चय दिन दोनों बाजार चले ऊंट की पीठ पर एक तरफ की हरी साग सब्जी बांधकर लटकाई गई और दूसरी तरफ अपने ही वजन के बराबर कुमार के बनाए मिट्टी के बर्तन बोरे में भरकर लटकाए गए।  ऊंट को लेकर दोनों बाजार की तरफ चले।  

थोड़ा चलने पर ऊँट ने अपनी गर्दन घुमाई और किसान के गट्ठर में से सब्जी और हरे पत्ते मुंह में भर कर नोच लिए।  अब तो ऊंट को मजा आ गया वह थोड़ा चलता और फिर अपनी गर्दन पीछे घूमता और हर बार सब्जी के गठरी  में से मुँह भरकर सब्जी पत्ते  जो भी आता खा लेता। 

किसान परेशान वह मना करता मारता, पर ऊंट मानता ही नहीं था। किसान की परेशानी पर कुम्हार को मजा आ रहा था। वह बार-बार किसान की खिल्ली उड़ाते हुए कहता। 

"मेरा माल साफ़ बच आया 
तेरा माल ऊँट ने खाया "

कुम्हार द्वारा कई बार अपनी खिल्ली उड़ाने पर किसान चुप न रह सका।  वह दूर की सोचकर बोला -

"आगे चल कुम्हार के पूत 
कौन करवट बैठे ऊँट "

ऐसे ही नोक - झोंक करते-करते वे दोनों बाजार के करीब पहुँच गए।  तब तक ऊंट ने किसान के गट्ठर का माल खा खा करके आधा कर दिया था। इस कारण पीठ के एक तरफ लदे कुम्हार के बर्तनों का बोझ ज्यादा हो गया। पीठ के दोनों और भोज का संतुलन बिगड़ गया तो ऊँट  अपने को संभाल नहीं सका।  और के तरफ को धम्म  से बैठ गया।  ऊँट के पीठ के नीचे होने के कारण कुम्हार के सारे मिट्टी के बर्तन चकनाचूर होकर मिट्टी में मिल गए।अब कुम्हार का दिमाग आसमान से धरती पर आया।  वह सर पीट पीटकर रोने लगा।

किसान ने उसे  समझाते हुए कहा, " भैया अब रोने से  क्या होगा ? यदि तुम मेरी खिल्ली नहीं उड़ाते और मेरे साथ मिलकर ऊँट को सब्जियाँ खाने से रोक देते तू यह स्थिति न आती  ." 
कहते हैं  'देखें ऊँट किस करवट बैठता है ' वाली कहावत इसी घटना के बाद से चल पड़ी।


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