Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

सेठ और बन्दर की कहानी

एक सेठ जी थे. वे शौक से बन्दर पाल रखे था. बन्दर बहुत समझदार था. वह सेठ की नक़ल किया करता था. सेठ को गिलास से पानी पीते देख वह भी गिलास से पानी पीने लगा था. सेठ जी को पंखा झलता हुआ देख कर वह मर्कट भी पंखा झलना सीख गया था. वह कभी खुद को और कभी सेठ जी को पंखा झलता . अपने बन्दर के इस व्यवहार से सेठ जी अत्यंत खुश थे.
एक दिन सेठ जी के सो जाने के बाद वह बन्दर सेठ जी को पंखा झल रहा था. तभी एक मक्खी सेठ जी के नाक पर आकर बैठी और बन्दर उस मक्खी को बार बार भगाने लगा . जैसा कुत्ता कौआ और मक्खी का स्वभाव है वो बार बार भगाने के बाद भी पुनः वही आकर बैठते हैं, मक्खी भी बार बार नाक पर आकर बैठ रही थी. बन्दर मक्खी के इस व्यवहार से बहुत क्षुब्द होकर मक्खी पर बहुत क्रोधित हो गया. वह मक्खी को जान से मार देने के लिए कोई युक्ति सोचने लगा.

वह ऐसे किसी चीज़ की तलाश करने लगा जिससे प्रहार कर वह चंचला मक्खी की जीवन लीला समाप्त कर सके . खोजते खोजेते बन्दर को एक पत्थर मिला. वह बहुत खुश हुआ. उस समय मक्खी सेठ जे के नाक पर विराजमान थी. मर्कट शीघ्रता से पत्थर उठा कर मक्खी पर दे मारा. मक्खी तो उड़ गयी लेकिन सेठ जी के नाक के आकार विकृत हो गए.     



कमेंट बॉक्स में इस कहानी का मोरल सुझाएँ 

Share the post

सेठ और बन्दर की कहानी

×

Subscribe to हजारों साल चलने वाला पंखा

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×