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सुनो सबकी करो अपने मन की - suno sabki karo apne man ki



सुनो सबकी करो अपने मन की
एक बार एक आदमी अपने सिर पर बकरा लिए जा रहा था . रास्ते में बकरा ले जाते हुए तीन ठगों ने देख लिया . वो ठग उस आदमी से बकरा लेने के लिए युक्ति बनाने लगे. इसके लिए उन तीनो ठगों ने एक योजना बनायीं. सॉर्ट कट रास्ते से वो तीनों ठग उस पथिक से आगे निकल गए. कुछ किलोमीटर की अंतराल पर वे तीनों योजनाबद्थ तरीके से खड़े हो गए रास्ते में उस पथिक को देख पहला ठग उसके साथ साथ चलने लगा
पहले ठग ने कहा .
भाई साहब ये खरगोस कितने में लिए . पथिक ने उस ठग के बात को अनसुना कर अपनी यात्रा जारी रखी . ठग पुनः पूछा खरगोस बहुत अच्छा है मुझे भी लेना था ये कितने में लिए आपने . इसपर पथिक चौक गया और अपने सिर से बकरे को उतर कर देख फिर सिर पर रख कर चलने लगा .
कुछ देर चलने के बाद पथिक को दूसरा ठग मिला वह भी पथिक के साथ साथ चलने लगा
दुसरे ठग ने पूछा
भाई साहब ये कुत्ता कितने में लिए . बड़े अच्छे नस्ल का लग रहा है . कहा मिलते हैं इस नस्ल के कुत्ते पता बतावोगे मुझे भी . इसपर पथिक को विशेष चिंता हुई वह झट से सिर पर से बकरे को पटक दिया . फिर आस्वस्त होने पर बकरे को सिर पर रख लिया और चलने लगा .
कुछ दूर जाने पर उसे तीसरा ठग मिला
तीसरे ठग ने पूछा
इतना सुन्दर भेड़ कहा से ला रहे हो भैया . कितने में मिला ये भेड़ ?  अब इस तीसरे ठग की बात सुनकर पथिक विचलित हो गया उसे लगा मेरे सिर पर जरुर कोई मायावी राक्षस बैठा है जो बार बार रूप बदलकर कभी खरगोस कभी कुत्ता और कभी भेड़ बन जा रहा है .  निश्चय ही यह त्याज्य है इसे फ़ेंक देना चाहिय . ऐसा सोचकर उस पथिक ने उस बकरे को वहीँ फ़ेंक कर चल दिया . कुछ देर बाद वे ठग उस बकरे को ले गए .
इसीलिए विद्वानों ने कहा है सुनो सबकी करो अपने मन और बुद्धि की

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