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लघुकथा- राखी

''मम्मी, मेरे स्कूल में राखी बनाओं स्पर्धा हैं। उसके लिए मुझे राखी की कोई अच्छी सी डिजाइन बताकर उसे बनाना सिखाओं न...'' सातवी कक्षा में पढ़ने वाली अनिता ने कहा। मैं कुछ बोलती उसके पहले ही सासू जी बोल पड़ी- ''तू क्या करेगी राखी बनाना सीख कर? तेरा तो कोई भाई ही नहीं हैं...तू किसको राखी बांधेंगी? इसलिए टीचर से कहना कि मुझे नहीं लेना स्पर्धा में भाग...ऐसी राखी बनाने से क्या फ़ायदा, जो किसी को बांध ही न सको!''
''दादी माँ, टीचर ने कहा हैं कि राखी का महत्व सिर्फ़ इतना ही नहीं हैं कि एक बहन अपने भाई को राखी बांधे। सदियों से चले आ रहे रिवाज के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती थी, जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन कहा जाता था। तुलसी और नीम के पेड़ हमारे लिए बहुत ही उपयोगी हैं इसलिए बहन इन पेड़ो को राखी बांध कर उनके लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए मंगलकामना करती थी। लेकिन अब यह रिवाज चलन में नहीं हैं। सही मायने में राखी उसे बांधी जाती हैं, जो हमारी रक्षा करता हैं और जिसकी मंगलकामना हेतु हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। रक्षा सिर्फ़ एक भाई ही बहन की नहीं करता तो एक बड़ी बहन भी अपने भाई की रक्षा करती हैं...राखी का संबंध सिर्फ़ रिश्ते से नहीं हैं, राखी का संबंध रक्षा से हैं! इस दृष्टिकोन से एक पत्नी भी अपने पति को राखी बांध सकती है।''  

''ये तू क्या बोल रहीं हैं? राखी तो भाई-बहन का त्योहार हैं। मैं ने अपने बाल ऐसे ही धूप में सफ़ेद नहीं किए! मैं ने बहनों को ही अपने भाई को राखी बांधते देखा हैं! तेरे टीचर की मति मारी गई हैं! पत्नी भी कभी अपने पति को राखी बांधती हैं क्या?''  
''दादी माँ, मेरी टीचर ने कहा हैं कि आजकल हम राखी को सिर्फ़ भाई-बहनों का त्यौहार मानते हैं। लेकिन सबसे पहली राखी एक बहन ने अपने भाई को नहीं बांधी थी...एक पत्नी ने अपने पति को, उसके मंगलकामना हेतु बांधी थी!'' 
''हे राम, ये क्या बोल रहीं तू?''  
''मेरी टीचर ने ये भी बताया कि जब बलि नाम के असुर ने देवराज इंद्र को युद्ध में हरा दिया था, तब इंद्र की पत्नी शचि भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहूूंची थी। तब विष्णु जी ने शचि को एक सूती धागा देकर कहा था कि इसे इंद्र की कलाई पर बांध देना। तब पहली बार एक पत्नी (शचि) ने अपने पति (इंद्र) की कलाई पर राखी बांध कर उनके सुरक्षा और सफलता की कामना की थी। वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का था। इसी दिन देवताओं की जीत हुई थी। इसलिए श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता हैं। आगे जाकर यह प्रथा भाई-बहनों के बीच निभाई जाने लगी। टीचर ने कहा कि रक्षा का अर्थ सिर्फ़ मुश्किलों से बचाना ही नहीं हैं, तो हर परिस्थिति में साथ देने से हैं...हर कठिनाई को पार करने की हिम्मत देना भी एक तरह की रक्षा ही हैं! टीचर के ऐसा कहने पर जब मैं ने टीचर से पूछा कि मैडम, क्या मैं मेरी दीदी को राखी बांध सकती हूं? क्योंकि दीदी हर काम में मेरी मदद करती हैं! तब टीचर ने कहा कि हां, तूम अपनी दीदी को राखी बांध सकती हो...इसलिए, अब हर साल मैं दीदी को राखी बांधूगी!!''  
''तूम नए जमाने के लोग जो तुम्हारे मन को अच्छा लगे वो ही करते हो...वैसे ठीक ही कहती हैं तेरी टीचर...राखी उसे ही बांधी जानी चाहिए जो हमारी रक्षा करता हैं!!''

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