8 मार्च के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सभी सहेलियों को असीम शुभकामनाएं...। आज इक्किसवी सदी में भी महिलाओं को उसके संघर्ष और उपलब्धियों में “स्त्री होने के बावजूद” वाले भाव का दंश झेलना पड़ता है। आपने कभी सुना है कि कोई ‘पुरुष होने की वजह’ से नाकामयाब हुआ? पुरुषों को केवल परिस्थितिजन्य अवरोध रोकते है। स्त्री को कामयाबी, पुरुषजन्य अवरोधो को पार करके ही मिलती है। इसलिए स्त्री की उपलब्धियों में ‘स्त्री होने के बावजूद’ जुड जाता है। हम आज भी पुरुषप्रधान समाज में जी रहे है इसका कटू संकेत यह है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' की कहानी को 'स्त्री उन्मुख' बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। और लगभग 30 देशों की महिलाएं स्त्री व्देष, लिंग आधारित हिंसा और ट्रंप के लैंगिक भेदभाव के विरोध में आज ही के दिन अंतरराष्ट्रीय हड़ताल कर रही है।
असल में महिलाओं का संघर्ष तो कोख से ही शुरु हो जाता है। घरवाले की अनुमति मिलने पर ही वो इस दुनिया में आ सकती है। कन्या-भ्रूण होने के बावजूद जन्म लेकर, महिलाएं अपने जीवन की पहली लड़ाई जीतती है। फ़िर महिलाओं का पालन-पोषण, पढ़ाई, नौकरी, सपने और लक्ष्य... मतलब जीवन के हर मोड पर उसे किसी न किसी के मर्ज़ी के मोहर की आवश्यकता होती है।
मैं अपने सभी सहेलियों से कहना चाहती हूं कि ‘स्त्री होने के बावजूद’ भी हम किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है। वास्तव में कम होना, कम मानने पर निर्भर है। कम समझा जाना पहले खुद के दिमाग में उपजता है और फ़िर दूसरे की सोच में शामिल होता है। स्त्री-पुरुष असमानता की जड़े बचपन में ही पनपती है। बच्चे जो देखते है, वही सीखते है। जैसे आ की मात्रा सिखाने के लिए याद कराया जाता है,"राधा आ खाना बना, राजा आ खाना खा..." इससे बच्चों की धारणा बनती है कि राधा (याने स्त्री) का काम खाना बनाना है। शिक्षा के इस तरह के पारम्पारिक उदाहरण बदलने की जरुरत है। अब समय आ गया है कि हम उपदेश देना बंद करें और अपने स्तर पर कुछ शुरवात करें। लोगों की दोहरी मानसिकता सिर्फ़ अच्छी पढ़ाई से नहीं बदल सकती। अच्छी शिक्षा नौकरी दिला सकती है, लेकिन मानसिकता बदलने के लिए हमें खुद की सोच बदलनी होगी। संसार की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फ़तह करनेवाली पहली विकलांग महिला अरुणिमा सिन्हा को चोटी पर शेरपा ने कहा अब वापस चलो। अरुणिमा ने उसे तस्वीर खिंचने और वीडियो बनाने कहा। तो वो कहने लगा, ''जिंदा चलो, यह ज्यादा ज़रुरी है।'' अरुणिमा ने कहा, ''अगर मैं मर भी जाऊँ, तो ये वीडियो आप भारत के युवाओं तक पहुंचा दें, कि मैं उन्हें संदेश देना चाहती हूं कि आप से बढ़कर कोई और आपको प्रेरित नहीं कर सकता। जो आप ठान लें, अपने लक्ष्य का जुनून बना लें, तो कोई आपको रोक नहीं सकता।'' इसी तरह यदि हम महिलाएं कुछ अच्छा करने की ठान लें, तो दुनिया की कोई ताकत हमें रोक नहीं सकती। संयुक्त राष्ट्र संघ का भी कहना है कि यदि महिलाओं को कामकाज के बेहतर मौके मिलें तो भारतीय अर्थव्यवस्था में 4.2 प्रतिशत का बड़ा उछाल आ सकता है।
इसलिए ...
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• मैं एक स्त्री हूं इसलिए मैं आगे नहीं बढ़ सकती इस सोच से खुद को मुक्त करें। आप स्त्री होने के बावजूद भी बहुत कुछ कर सकती है।
• यदी आपके पति या सास आपको पसंद नहीं करते है, तो यह उनकी अपनी समस्या है। आप जैसी है, वैसी ही बने रहिए। मूलत: आप में जो गुण है...उन्हीं गुणों के सहारे आप और बेहतर कर सकती है, न कि दूसरों की अपेक्षाओं के अनुरुप अपने आप को बदल कर।
• कुछ नया और अच्छा सीखने के लिए अपने आप को तैयार रखें। कम से कम कोई भी एक हुनर ऐसा ज़रुर सीखें जिससे वक्त आने पर आप अपना एवं अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें।
• यदि आप घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारियां निभा रही है, तो फ़ालतू की बातों का तनाव या कुंठा मन में न पालें। जैसे क्या करुं...नौकरी की वजह से मैं अपने परिवार को ज्यादा समय नहीं दे पाती या अपनी सहेली की तरह अलग-अलग तरह के व्यंजन बनाने का मेरे पास वक्त नहीं है। अपने परिवार के साथ क्वालिटी वक्त बिताए और यह तभी संभव है जब आप तनावमुक्त रहेंगी।
• अपने आप को दुनिया की सबसे खुबसुरत स्त्री माने। क्योंकि खुबसुरती सिर्फ़ शारीरिक नहीं होती। अच्छा दिखने के लिए न जीए बल्कि अच्छा बनने के लिए जीएं।
• घर के सभी लोगों का ख्याल रखते हुए कभी-कभी थोड़ा सा ख्याल अपना भी रखें।
• एक खुश इंसान ही किसी और को खुशी दें सकता है और आप तो किसी एक नहीं, पूरे घर की खुशी और हँसी का कारण है इसलिये अगर आप अपने घरवालों से प्यार करती हैं तो खुद से इश्क करना ना भूलें।
• आदर्श बेटी, पत्नी, बहु और माँ बनने के चक्कर में खुद की छोटी-छोटी इच्छाओं का गला न घोटें। आप भी एक इंसान है...अत: आपकी अपनी भी कुछ इच्छायें हो सकती है। जहां तक संभव हो छोटी-छोटी इच्छाएं पूरी करें। जिससे आपका तनाव कम होगा और इसका फायदा आपके पूरे परिवार को मिलेगा।
इक्किसवी सदी की स्त्री के मनोभाव, एक कविता के माध्यम से पढ़िए...
मैं स्त्री होने के बावजूद...एक इंसान भी हूं...
मैं कोई माल नहीं… जो बिकती रहूँगी चुपचाप रहकर।
मैं चेतना हूं कोई जड़ नहीं… जो निलाम हो जाऊंगी बोलीयों पर।
मैं सीता नहीं हूं...जिसकी राम द्वारा अग्निपरिक्षा ली जाएगी।
मैं द्रोपदी नहीं हूं...जो युधिष्ठिर द्वारा दांव पर लगा दी जाऊंगी।
मैं गांधारी नहीं हूं...जो अंधे के पिछे चलती रहुंगी पट्टी बांधकर।
मैं नारी अर्धांगिनी हूं...अंधे के संग चलूंगी ज्योति बनकर।
मैं ऐसी शक्ति हूं… ठोकर अगर लगाओगे,खुद गिरोगे पलटकर।
मैं प्रेम की भुखी हूं...फ़िर भी नहीं जिऊंगी अपनी अस्मिता खोकर।
मैं आज की नारी हूं...जिऊंगी अपनी आन पर, मरुंगी अपनी शान पर।
बहुत सह चुकी...अब न सहूंगी जुल्मों-सितम।
मैं स्त्री होने के बावजूद...एक इंसान भी हूं...!!!
Keywords: International Women's Day, Women
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