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एक लघु कथा : चार लाठी

व्यंग्य लघुकथा 09 : चार लाठी ----उनके चार लड़के थे।  अपने लड़कों पर उन्हे बड़ा गर्व था। और होता भी क्यों न । बड़े लाड़-प्यार  और दुलार से पाला था । सारी ज़िन्दगी इन्हीं लड़को के लिए तो जगह ज़मीन घर मकान करते रहे और पट्टीदारों से मुकदमा लड़ते रहे, खुद वकील जो थे । गाँव जाते तो सबको सुनाते रहते -चार चार लाठी है हमारे पास ।ज़रूरत पड़ने पर एक साथ बज सकती है ।  परोक्ष रूप से अपने विरोधियों को चेतावनी देने का

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