आज फिर शहर में बंध है,
आज फिर गरीब के घर चूल्हा नहीं जलेगा,
बच्चा भूख से बिलखता,
यूँ ही सो जाएगा,
और सपने में देखेगा,
चाँद बन गया है रोटी,
जिसे वह निगल रहा है बेतहाशा,
कि कहीं भोर हो गयी,
तो, न चाँद रहेगा,
न ख्वाब रहेगा,
और न ही रोटी रहेगी.
आज फिर गरीब के घर चूल्हा नहीं जलेगा,
बच्चा भूख से बिलखता,
यूँ ही सो जाएगा,
और सपने में देखेगा,
चाँद बन गया है रोटी,
जिसे वह निगल रहा है बेतहाशा,
कि कहीं भोर हो गयी,
तो, न चाँद रहेगा,
न ख्वाब रहेगा,
और न ही रोटी रहेगी.