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"काँच के शामियाने " को "महाराष्ट्र साहित्य अकादमी स्वर्ण पुरस्कार "

ब्लॉग से  ही मेरे लेखन की दूसरी पारी की शुरुआत हुई .कई कहानियाँ, उपन्यास सभी यहाँ लिखे .ब्लॉग पर ही किस्तों में लिखे "काँच के शामियाने' को पाठकों का बेशुमार प्यार मिला और सोने पर सुहागा, "महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी  का  जैनेन्द्र कुमार स्वर्ण पुरस्कार" पुरस्कार भी मिला. १७ जनवरी २०१८ को एक भव्य समारोह में सम्मान पत्र, पुरस्कार राशि का चेक, ,शाल एवं स्मृति चिन्ह से सभी पुरस्कार्र्थियों को समानित किया गया. 

अपनी  ख़ुशी ,उपलब्धि और गौरव के ये क्षण फेसबुक पर तो लिखा लेकिन  ब्लॉग पर सहेजना ही भूल गई थी .

पापा  ये आपके लिए .....
आपने ही बचपन से हमें,नंदन,पराग,धर्मयुग ,इलस्ट्रेटेड विकली जैसी पत्रिकाएँ पढने की आदत डाली. नोबल पुरस्कार प्राप्त कैंसर वार्ड, डॉक्टर ज़िवागो जैसी किताबें आप खरीद कर लाते थे. तब समझ नहीं आती थीं,फिर भी पढने की भूख हमसे पढवा ले जाती. आप कभी भी हमें गलत हिंदी नहीं  बोलने देते...अगर हम भाई बहन में से किसी ने स्त्रीलिंग पुल्लिंग में गलती की और आप तुरंत टोक देते, 'हवा बह रहा है यभ रही है?..."भूख लगा अहै या भूख लगी है " . आपके इस तरह सुधारते रहने का ही परिणाम था कि एक बार बस में मैं और बस में ही बनी एक  फ्रेंड खूब बातें कर रहे थे. पीछे बैठे कोई हिंदी के शिक्षक हमारी  बातें सुन रह थे. एक जगह जब बस रुकी और सब खाने पीने उतरे तो उन्होंने मुझे पास बुलाकर बोला, ' मैं इतनी देर से सुन रहा हूँ , तुमने एक बार भी गलत हिंदी या गलत उच्चारण  नहीं किया है " 
आपने शुरू से ही मेरी शिक्षा दीक्षा का विशेष ख्याल रखा, हॉस्टल में रख कर अच्छे स्कूल-कॉलेज में पढ़ाया पर आपके मन में कहीं मलाल था कि पढाई खत्म होते ही मेरी शादी कर दी, मुझे आगे बढ़ने के अवसर नहीं मिले. आपकी इच्छा थी मैं पटना वीमेंस कॉलेज में पढूँ, एडमिशन भी मिल गया था पर हॉस्टल तीन महीने बाद मिल रहा था. मैं वहाँ नहीं पढ़ पाई. मुझे लोगों ने बताया कि रिटायरमेंट के बाद जब आप पटना रहने लगे .ऑटो में कोई लड़की वीमेंस कॉलेज जाती मिल जाती तो आप उसे किराया नहीं देने देते .उस से कहते ,"मैं चाहता था मेरी बेटी यहाँ पढ़े, अब तुम मेरी बेटी सी ही हो."


सभी मिलने जुलने वालों को मेरा ब्लॉग,अखबार में छपी कोई रचना बड़े उत्साह से पढवाते और साथ में अफ़सोस भरे स्वर कहते,' उसमें बहुत पोटेंशियल था पर मैं उसे प्रोत्साहित नहीं कर सका.'
पापा ये छोटा सा जो कुछ अचीव किया है वो आपके द्वारा साहित्य में जगाई गई रूचि का ही परिणाम है. पुरस्कार मिलने की खबर से सबसे ज्यादा ख़ुशी आपको होती पर आप तो ऊपर से सब देख ही रहे हैं, हर पल हमारे साथ हैं . पुरस्कार मिलना,माँ का इस अवसर पर उपस्थित रहना ,सब आपके आशीर्वाद से ही संभव हुआ .
प्रणाम पापा





















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