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चाँद उतरता है होले से ज़ीने पर ...


हुस्नो-इश्क़, जुदाई, दारू पीने पर
मन करता है लिक्खूं नज़्म पसीने पर 

खिड़की से बाहर देखो ... अब देख भी लो  
क्यों पंगा लेती हो मेरे जीने पर 

सोहबत में बदनाम हुए तो ... क्या है तो 
यादों में रहते हैं यार कमीने पर    

लक्कड़ के लट्टू थे, कन्चे कांच के थे
दाम नहीं कुछ भी अनमोल नगीने पर

राशन, बिजली, पानी, ख्वाहिश, इच्छाएं
चुक जाता है सब कुछ यार महीने पर 

खुशबू, बातें, इश्क़ ... ये कब तक रोकोगे  
लोहे की दीवारें, चिलमन झीने पर

छूने से नज़रों के लहू टपकता है
इश्क़ लिखा है क्या सिन्दूर के सीने पर

और वजह क्या होगी ... तुझसे मिलना है
चाँद उतरता है होले से ज़ीने पर



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