सवाल अगर आरक्षण का है, तो हां आरक्षण आवश्यक है । लेकिन किन के लिए और किस हद तक, यह सवाल उठना भी लाज़मी है अगर आपके मन में अगर आपके जहन में यह सवाल नहीं आता कि आरक्षण की आवश्यकता क्या है और इसकी वैधानिकता क्या है तो आप सिर्फ मक्कार हैं और किसी और के हक को मारकर आलस्य का मजा उठाना चाहता है।
लेकिन अगर आप जागरुक हैं आप जिम्मेदार हैं तो आपके मन में यह सवाल जरूर आता होगा कि जो मौका आपको किसी सहायता से मिल रहा है क्या आप उसके हकदार हैं आपने कई बार देखा होगा आपके आस पड़ोस में ही कई गरीब बेसहारा बरसों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी वही कार्य कर रहे होंगे वही जिंदगी जी रहे होंगे जो आजादी के पहले जी रहे थे और आप या आपका कोई दोस्त या आपका कोई पड़ोसी जिसने एक बार आरक्षण पा लिया फिर क्या वह आज भी उतना ही कमज़ोर है? क्या वह आज भी इस काबिल नही हो पाया कि वह बिना आरक्षण के अपने बच्चों का जीवन यापन करा सके। अगर वह इस स्थिति में आ गया है तो क्या उसे आरक्षण के दायरे से बाहर नही कर देना चाहिए?
अगर वह आरक्षण का लाभ लेने बाद भी अभी तक इस स्थिति में नही पहुंच पाया कि अपने बच्चों को बगैर आरक्षण के शिक्षित कर सके, और अपने आरक्षण को अपने ही समुदाय अपने ही किसी पड़ोसी के लिए छोड़ सके.. तो फिर ऐसी आरक्षण व्यवस्था का लाभ क्या हुआ?
बात बहुत ही प्रयोगिक है.. किसी कमज़ोर को ऊपर उठने का मौका देना ही आरक्षण है... जैसे महाभारत में दुर्योधन ने कर्ण को दिया था, जैसे रामायण में राम ने विभीषण और सुग्रीव को दिया था।
लेकिन लगातार एक ही व्यक्ति एक ही परिवार एक वंस को आरक्षण देना कहाँ की समझदारी है?
अगर आरक्षण की मदद से आईएएस बना अधिकारी लाखों की सैलरी पाकर भी अपने बच्चे को आरक्षण दिला रहा है तो फिर वो गरीब क्या करेगा जो दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुटा पा रहा है। आरक्षण को जातिगत और सामुदायिक नज़रिए देखना गलत है, आरक्षण उसके लिए ज़रूरी है जो शोषित है जो गरीब है। और शोषण हमेशा उसी का होता है जो गरीब है जो कमज़ोर है फिर चाहें वो दलित हो या क्षत्रिय हो यादव हो ब्राह्मण हो हिन्दू हो या फिर मुसलमान हो। शोषण कमज़ोर व्यक्ति का ही होगा, और कमज़ोर व्यक्ति को आरक्षण मिलना जायज है।।
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अभिषेक प्रताप सिंह