लहर कब उठेगी
पता नहीं होता है
जरूरी नहीं
उसके उठने के
समय हाथ में
किसी के
कैमरा होता है
शेर शायरी
लिखने की बातें
हैं शायरों की
ऐसा सभी सुनते हैं
बहुतों को पता होता है
बहकती है सोच
जैसे पी कर शराब
सोचने वाला
पीने पिलाने की
बस बातें
सोचता रहता है
कुछ आ रहा
था मौज में
लिख देना चाहिये
सोच कर
लिखना शुरु होता है
सोच कब
मौज में आयी
सोचा हुआ
कब बह गया होता है
किसे पता होता है
रहने दे चल
कुछ फिर और
डाल साकी
सोच के गिलास में
शराब और गिलास
का रिश्ता अभी
भी बचा है
कोई गिला कोई
शिकवा नहीं
बताता है
अखबार वाला भी
कभी पढ़ने में
सुनने में ऐसा
आया भी
नहीं होता है
‘ऊलूक’ की
आदत है
इधर की
उधर करने की
जैसा कहावतों
में किसी की
आदत के लिये
कहा होता है
रोज लिखना
शरीफों
की खबर
ठीक भी
नहीं होता है
किसी दिन
शरीफों के
मोहल्ले में
शराफत से
कुछ नहीं
बोल देना भी
ठीक होता है।
चित्र साभार: Shutterstock
पता नहीं होता है
जरूरी नहीं
उसके उठने के
समय हाथ में
किसी के
कैमरा होता है
शेर शायरी
लिखने की बातें
हैं शायरों की
ऐसा सभी सुनते हैं
बहुतों को पता होता है
बहकती है सोच
जैसे पी कर शराब
सोचने वाला
पीने पिलाने की
बस बातें
सोचता रहता है
कुछ आ रहा
था मौज में
लिख देना चाहिये
सोच कर
लिखना शुरु होता है
सोच कब
मौज में आयी
सोचा हुआ
कब बह गया होता है
किसे पता होता है
रहने दे चल
कुछ फिर और
डाल साकी
सोच के गिलास में
शराब और गिलास
का रिश्ता अभी
भी बचा है
कोई गिला कोई
शिकवा नहीं
बताता है
अखबार वाला भी
कभी पढ़ने में
सुनने में ऐसा
आया भी
नहीं होता है
‘ऊलूक’ की
आदत है
इधर की
उधर करने की
जैसा कहावतों
में किसी की
आदत के लिये
कहा होता है
रोज लिखना
शरीफों
की खबर
ठीक भी
नहीं होता है
किसी दिन
शरीफों के
मोहल्ले में
शराफत से
कुछ नहीं
बोल देना भी
ठीक होता है।
चित्र साभार: Shutterstock