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अपना सच कह देना अच्छा है ताकि सनद रहे

बहुत अच्छा
लगता है

जब अपने
मोहल्ले की
अपनी गली में

अपने जैसा ही
कोई मिलता है
अपनी तरह का
अपने हाथ
खड़े किये हुऐ

उसे भी
वो सब
पता होता है
जितना तुम्हें
पता होता है

ना तुम
कुछ कर
पाते हो
ना वो कुछ
कर सकता है

हाँ
दोनों की
बातों की
आवृति
मिलती है
दो सौ
प्रतिशत

फलाँ चोर है
फलाँ बिक
गया है
फलाँ बेच
रहा है
फलाँ
बेशरम है

हाँ
हो रहा है पक्का

अजी बेशरमी से
शरम है ही नहीं

लड़कियों को
फंसा रही है वो

बहुत गन्दे
खेल चल रहे हैं

नाक ए है

कहते हैं आप लोग

ना जी ना

अखबार में
नहीं आ
सकती हैं
 ये सब बातें
नौकरी का
सवाल हुआ

कोई नहीं

तुम अपने
अखबार में
लिखते रहो
अपने फूलों के
लड़ने की खबरें
उनकी खुश्बुओं
पर खुश्बू छिड़क कर

हम तो
लिखते ही हैं
 बीमार हैं
जरूरी है
लिखनी
अपनी बीमारी
इलाज नहीं है
 कर्क रोग का
 जानते हुऐ

अच्छा लगा
मिलकर
 दो भाइयों
का मिलन
हाथ खड़े
किये हुऐ ।

चित्र साभार: Shutterstock


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