चालाक लड़की और धूर्त साहूकार
एक किसान को अपनी बुरी आर्थिक स्थिति से हार मानकर एक साहूकार से क़र्ज लेना पड़ा, लेकिन काफी वक्त बीत जाने पर भी वह साहूकार का ऋण नहीं चुका पाया। गाँव का वह साहूकार बुढ़ा और देखने में बदसूरत था और उसके अनुचित स्वभाव के कारण गांव में उसे कोई पसंद नहीं करता था। किसान के परिवार में उसके और उसकी एक बेटी के सिवा और कोई नहीं था। उसकी लड़की बहुत ही सुन्दर और अच्छे स्वभाव की थी। किसान ने उसे बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था। वह अपने पिता के साथ ही खेतों में काम करती।
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एक दिन उस बूढ़े साहूकार की नज़र उसकी खुबसूरत लड़की पर पड़ी और वह उस पर मोहित हो गया। वह मन ही मन उससे विवाह करने की सोचने लगा। लेकिन उसे पता था कि किसान अपनी लड़की का विवाह उससे कभी नहीं करेगा और उसे यह भी मालूम था कि किसान इस समय ऐसी स्थिति में नहीं है कि उसका क़र्ज चुकता कर सके।
इन सारी बातों को मन में रख वह स्वयं ही एक दिन किसान के पास जा पहुंचा, रास्ता छोटे-छोटे कंकड़-पत्थरों और रोड़ियों से भरा पड़ा था। उसने किसान से क़र्ज के विषय में बात करते हुए उसके सामने एक शर्त रखी’अगर उसने अपनी लड़की का विवाह उससे कर दिया, तो वह उसके सारे ऋण माफ़ कर देगा वो भी ब्याज़ सहित।’ साहूकार की इस अजीबों-गरीब शर्त से किसान और उसकी बेटी भयभीत हो गये। उस धूर्त साहूकार ने आगे सुझाव देते हुए दोनों से कहा कि चिंता करने की कोई बात नहीं। इस शर्त का फैसला न मैं करूंगा न आप। इसे आप अपने भाग्य पर छोड़ दे। इतना कहते हुए उसने अपनी ज़ेब से एक पैसे की खाली पोटली निकाली और उसे दिखाते हुए कहा कि मैं इसमें एक काले रंग का और एक सफ़ेद रंग का कंकड़ रखूंगा। उसके बाद तुम्हारी लड़की को बिना देखे इस पोटली से एक कंकड़ निकालना होगा और यहाँ शर्त यह रहेगी कि –
यदि उसने काले रंग के कंकड़ को निकाला तब उसे मुझसे विवाह करना होगा और तुम्हारे क़र्ज भी माफ़ कर दिये जाएंगे।यदि तुम्हारी लड़की ने सफ़ेद रंग के कंकड़ को निकाला तो इसे मुझसे विवाह नहीं करना होगा और फिर भी क़र्ज माफ़ कर दिये जाएंगे। लेकिन अगर इसने कंकड़ निकालने से मना कर दिया तो फिर तुम्हें जेल के सलाखों के पीछे जाना होगा।
जैसे ही किसान और उसकी लड़की उसकी इस शर्त पर आपस में बात करने लगे, तभी साहूकार अचानक कंकड़ों को उठाने के लिए नीचे झुका। उसने जैसे ही दो कंकड़ों को उठाया उसी समय किसान की लड़की कि नज़र उस पर पड़ गई। उसने देखा कि साहूकार ने दो काले कंकड़ ही पोटली में रख दिये। जबकि नियम के अनुसार होना यह चाहिए था कि वह एक काले रंग का और दूसरा सफ़ेद रंग का कंकड़ खाली पोटली में रखता। खैर, उसके बाद साहूकार ने लड़की को पोटली से एक कंकड़ निकालने के लिए कहा।
दोस्तों, अब आप कुछ देर के लिए ऐसा महसूस करें कि उस लड़की कि जगह आप उस कंकड़-पत्थर वाले रास्ते पर खड़े है। उस परिस्थिति में आप अगर एक लड़की होते तो क्या करते? अगर आपको उस लड़की को कुछ सुझाव देना होता तो क्या देते?
मुझे लगता है कि अगर हम इस पर ध्यानपूर्वक विचार करे तो हमारे सामने तीन संभावनाएं निकलकर आती हैं-पहली बात यह हो सकती है कि, लड़की को कंकड़ निकालने से बिल्कुल मना कर देना चाहिए।
दूसरी बात यह हो सकती है कि, लड़की को थोड़ा साहस दिखाते हुए यह बता देना चाहिए कि उस पोटली में दोनों कंकड काले ही हैं जिससे साहूकार की धूर्तता की पोल खुल जाती।या तीसरा विकल्प यह हो सकता है कि, लड़की साहूकार की धूर्तता के बारे में जानते हुए भी काले रंग के कंकड़ को निकाले और अपने आप को sacrifice कर दे, ताकि उसके पिता ऋण से मुक्त हो जेल जाने से बच जाए।
यह कहानी इस उम्मीद से लिखी गई हैं कि हम पारंपरिक सोच के ढ़ंग और आज की सोच में अंतर बता सके। उस लड़की कि इस दुविधा को हम पारंपरिक सोच के ढ़ंग से हल नहीं कर सकते।तो चलिए मैं ही बता देता हूँ कि आगे उस लड़की ने क्या किया।
किसान की लड़की ने साहूकार के कहे अनुसार ही पोटली से एक कंकड़ निकाला और उसे बिना देखे हुए, जानबुझकर कंकड़-पत्थरों से भरे रास्ते पर उछाल दिया। जिससे जल्द ही वह काले रंग का कंकड़ भी अन्य कंकडों में मिल गया।उसके बाद उस लड़की ने झूठा खेद व्यक्त करते हुए कहा – ‘ओ, मैं कितनी लापरवाह हूं!’ साहूकार इस बात ले लड़की पर थोड़ा क्रोधित हुआ लेकिन फिर उस लड़की ने मामला संभालते हुए आगे कहा कि चिंता न करे, अगर आप पोटली खोलकर देखें कि उसमें कौन से रंग का कंकड़ बचा हुआ है तो यह साफ हो जाएगा कि मैंने कौन सा कंकड़ निकाला था, काला या सफ़ेद ?
हालांकि, यह तो निश्चित था की बचा हुआ कंकड़ काले रंग का ही होगा। क्योंकि जैसा कि आप जानते ही है साहूकार ने पोटली में दोनों ही कंकड़ काले ही रखे थे। तो इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि लड़की ने सफ़ेद कंकड़ निकाला है। अब साहूकार चाह कर भी अपनी बेईमानी और धूर्तता को प्रकट नहीं कर सकता था। इस तरह उस लड़की ने बड़ी चालाकी से अपने विरूद्ध खड़ी परिस्थिति को अपने पक्ष में कर लिया।
तो दोस्तों, इस कहानी से आपने क्या सीखा?
दोस्तों, इस कहानी से मैं यह बताना चाहता हूँ की कि, समस्या चाहे कितनी भी जटिल क्यों न हो, हम उसके बारे में सोचने और उसे सुलझाने के तरीकों को बदलकर उसका सामाधान आसानी से निकाल सकते है।
यदि आप के पास भी कोई ऐसी कहानी हो तो मुझे मेल करें यह वेबसाइट आपके लिए ही है स्टूडेंट्स !
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Santosh Pandey
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