बहुत पानी बरसा उस रात, हर आँख नम और सैकड़ों दिलो में था ग़म,
फिर दो चार दोपहर बाद ढल गयी होंगी यादें, सैकड़ों के ज़हन से…
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बाक़ी जो बुझे थे दिये, आज भी इक आग बन दिलों में जल रहे है,
सूरज ढल गए थे जिनके अब बस दिन निकल रहे हैं…
१० बरस – ख़ौफ़नाक और दर्दनाक…
सर, मे आय टेक योर ऑर्डर प्लीज़…
Sure, १ जूस
…गोली ख़ून गयी चूस…
सर, फ़ोर यू all…
३ ओमलेट…and ३ ब्रेड slices
…उन ३ को भी बेड ही नसीब हुआ, हमेशा के लिए…
मैडम, how may I help यू…
उसने, उसकी मदद की, जान पर खेल कर, सीना बच गया उसका पर पीछे से हुआ वार…
हौसला दमदार था और दुश्मन कमज़ोर…
सुबह का समय था, बचा ले गया फिर भी किचन से…
help किए बिना नहीं जाना चाहता था वो…
ये तो बस ३ क़िस्से थे…शायद ३ हज़ार परिवार मरें होंगे उन ३ रातों में…
अगर और भी जाते तो क्या होता?
क्या छोड़ा क्या सँवार दिया बँटवारे नें?
वही टुकड़ा अब बाहर है जो कभी अंदर था,
एक था…बाँट लिया, काट लिया,
राज करने को, हुकूमत बनाने को,
ज़मीन बाँट ली अपनी अपनी सरकार चलाने को…
घर छोड़, कहीं और जा बसे, घर के साथ ख़ुद को खो दिया…
ग़ुलामी थमा दी हुजूम को, कहने को आज़ादी का बीज बो दिया…
हम ना समझ पाय पर शायद सत्ता ने गुथी सुलझा ली थी,
कभी एक कहानी कभी क्या क़िस्सा सुनाते रहे,
और हमें उल्लू–का–पट्ठा बनाते रहे…
यही हुआ था, सुबह का कोई ऑर्डर वैसा ना पूरा हुआ जैसा मँगा था,
हर ऑर्डर एकदम एक जैसा था, ख़ौफ़नाक और दर्दनाक…
सुना है मौत पानी के रास्ते सरहद पार से आयी थी,
आदमी, तूने पानी में भी बनायी थी…