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AE ZINDAGI

ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ !
तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा मैं ,
दुनिया भर से मिलता रहा
लेकिन तुझी से बिछड़ा रहा मैं ,
ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ !
तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा मैं ।

एक दौड़ थी ज़माने की
और जी-जान से भागा मैं ,
सारी दुनिया से अव्वल
लेकिन खुदी से पिछड़ा रहा मैं ,
ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ !
तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा मैं ।

लोगों के मजमों में
अपना एक नाम सा कर लिया ,
हर जलसे की रौनक
लेकिन दिल की महफ़िल में उजड़ा रहा मैं ,
ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ !
तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा मैं ।

मेरी कलम परिंदा
और कागज़ आसमान था मेरा ,
अल्फ़ाज़ फड़-फड़ाते रहे मेरे
लेकिन लकीरों में लड़-खड़ाता रहा मैं ,
ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ !
तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा मैं ।

समझने की कोशिश में
तुझे जीना ही भूल गया मैं ,
तुझे सुलझाता रहा
लेकिन खुदी में कहीं उलझा रहा मैं ,
ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ !
तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा मैं ।
ऐ ज़िंदगी क्या बताऊँ !
तुझे ज़िंदगी भर कैसे जीता रहा मैं ।।






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AE ZINDAGI

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