‘उफ्फ… थक गया यार।‘ पार्क के किसी किनारे पर खाली पड़े कुर्सी पर पसरता, मैं मन ही मन बड़बड़ाते हुए माथे पर छलके पसीने को हाथों से निचोड़ा। पेंट के दाएं पॉकेट की जीप खोल पॉकेट से मोबाईल निकाला। तर्जनी स्पर्श द्वारा मोबाईल पाश खोलने के उपरांत…गूगलवा का कनिष्ट एप्प पुत्र गूगल फिट पर हथोड़ा रूपी अंगुष्ठ प्रहार किया, परिणामस्वरूप एक चीत्कार संग कुछ आकड़े प्रस्तुत हुए। मामूली अध्ययन उपरांत ही, मुझे ये समझते देर नही लगती कि I have completed 5,000 steps and burn 597 calories.
“अब तक बर्न हो चुके 597 कैलोरी की भरपाई किस राहत कोष से होगी भई? मोदीजी कौनों योजना-परियोजना शुरू कियें हैं क्या? दीनदयाल या अटल-आडवानी जी के नाम पर” अभी पप्पू-प्रभाव में कुछ भी अंड-संड सोच ही रहा था कि हवा का एक झोंका हौले-हौले से बह चला। पसीने से सरोबार होने के कारण, सुबह के इस ताजी हवा में कुछ एक्सट्रा ही शीतलता थी, बिल्कुल अमिताभ और शाहरुख चचा द्वारा सुझाये गए नवरत्न कूल तेल से भी बेहतर।
शीतलता को खुद में समाहित कर दाएं-बाएं, ऊपर-निचे नजर दौड़ाई। कोयल-पपीहे के कलरवयुक्त गायन संग ऊपर पेड़ से कुछ पिले-पीले फूल झड़ रहे। मानों वे पक्षियां पेड़ों से निवेदन कर रही हो “बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया हैं। हवाओं रागिनी गाओ, मेरा महबूब आया हैं….“। अब ऊ का हैं न कि स्वयं को बुद्धिजीवी प्रमाणित करने हेतु आप पेड़ का नाम मत पूछ लेना भईवा, काहे कि ऊ हमारे सिलेबस में नाही न हैं।
सामने लटके एक बड़े से पोस्टर-पम्पलेट में योगगुरू बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण संग मंद-मंदमुस्कुरा रहे थे, शायद कल घी, करेला-लौकी जूस और गोमूत्र की ज्यादा बिक्री हो गई हो। निचे 20-25 अतिरिक्त पोषण से ग्रसित पतंजलि पुरुष और महिलाएं, अपने स्माइली टाइप के उभरे पेट के संग भगवा चटाई पर बैठ अनुलोम-विलोम, कपालभाति, प्राणायाम करते हुए पेट हिला हिला कर कुत्ता टाइप का हाँफते हुए सांस ले-छोड़ रहे हैं और मैं गुनगुना रहा हूँ…”सासों की जरूरत हैं जैसे, जिंदगी के लिए। बस एक सनम चाहिए, आशिक़ी के लिए“।
इतने में मेरे बगल में कुर्सी पर खाली जगह को भरने के लिए कुछ भागदौड़ कर पसीने से नहाएं एक चचा, टिकुली-सिंदूर, आलता, काजल में रंगी चाची संग आकर पसर गए। ‘उई माँ, पसीने की वजह से क्या खतरनाक बू आ रही थी उनसे।‘ सुबह-सवेरे खाली पेट उल्टियां कर कुछ भी सोंच लेनेवाले लोगों के काली नजर में चढ़ने से बेहतर, मुझे वहाँ से खिसकना प्रतीत हुआ।
पार्क के दूसरे छोर पर कुछ नन्हे-मुन्हे, छोटे-बड़े बच्चों का झुंड सचिन, कोहली और धोनी बनने का सपना लिए क्रिकेट खेल रहा था। छोट से घांस रहित रेगिस्तान हो चुके मैदान में चार से पांच टीमों के जुझारू खिलाड़ी विभिन्न छोरों से बैटिंग-बौलिंग कर फोर-सिक्स, आउट-नोबाल कर रहे हैं। कुई टीमों के पास प्लास्टिक की बॉल और बल्ला हैं, कितनों ने लकड़ी के पुराने पटरे को काट-छाँट कर बल्ले के रूप में गढ़ा हैं तो कुछ के पास ब्रांडेड MRF और Addidas का बल्ला संग पूरा ऊपर से निचे तक के लिए क्रिकेट का किट हैं। संसाधनहीन टीम के खिलाड़ियों ने पास पड़े ईटा-पत्थरों को सहेज कर विकेट का रूप दिया हैं। क्रिकेट के इस मैदान में 50-55 बच्चे एक साथ फील्डिंग कर रहे थे। कौन किस टीम का सदस्य हैं और किस टीम की गेंद फील्डिंग कर रहा हैं, इस कॉम्प्लिकेटेड टॉपिक पर पीएचडी करने के ख्याल को तिलांजली देकर मैं आगे बढ़ा।
आगे कुछ बुजुर्गों की टोली दहाड़ मार-मारकर ठहाके लगा रहीं हैं, जिससे सर्वप्रथम मैं डर ही गया। अपने छुटकू बेटे संग बगल में सूर्य नमस्कार कर रहे अपने एक भईया ने बताया कि दादाजी लोग हास्य-योग कर रहे हैं। अब इसका आविष्कार बाबाजी ने कब कर दिया भई?
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कुछ कूल ड्यूड टाइप के लौंडे सुबह-सुबह कान में ठुला लगाकर यूट्यूब यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी से ‘लूलिया का मांगे ला?’ पर रिसर्च कर रहे थे। वहीं फ़ेसबुक, व्हाट्सएप कॉलेज से ग्रेजुएट, इंस्टाग्राम यूनिवर्सिटी से पोस्टग्रेजुएट किए रिसर्च स्कॉलर बिना हैडफोन के ओपन यूनिवर्सिटी टाइप का फीलिंग लेते हुए पवन सिंह, कल्पना, कल्लुआ,रितेश पांडे और खेसारी जी के लिखे-गाये गीतों के विभिन्न पक्षों का अध्ययन घास और खाली पड़ी कुर्सियों में अपनी मित्रमंडली संग में बैठ-सूत-लेट कर रहे हैं। तनिक आगें घास पर माताओं की एक टोली गोल घेरे में घेराबंदी कर ‘राम जी की निकली सवारी‘ के संग ‘निमिया के डार मईया, झूले ली झुलनुआ‘ और ‘छुम-छुम छनानन बाजे, मईया पॉव पैजनिया‘ तालियों के लयबद्ध संगीत में गा रही हैं। कुछ सिर्फ ओठ हिला रही हैं, तो कई स्वरों में आगें बढ़ने की होड़ लिए जल्दबाजी में पुरे लयबद्ध संगीत का छीछालेदर करने में अपनी सर्वजनिक भूमिका अदा कर रही हैं।
अंधेरा पूरी तरह छटने के साथ ही, सूरज चाचू लालिमा में नहाएं बादलों के पीछे से लुकाछिपी करते हुए दस्तक दे रहे हैं। छिटपुट बादलों के विभिन्न कलाकृतियों से सजे अंबर तले सुबह के इस अलौकिक वातावरण में लोकसंगीत के प्रति अपने समर्पित प्रेम ने पैरों को बंधक बना के रोक लिया। अब इतनी दूर में स्थित कुर्सी पर बैठ गया जहाँ से भजन कीर्तन के लोकस्वर का रसास्वादन कर में स्वयं को कुछ प्रतिशत ईश्वरीय रमन के लिए समर्पित कर सकूं।
अभी ईश्वर से संपर्क स्थापित कर ही रहा था कि आंखों के समक्ष रब ने दस्तक दी। आज पहली बार महसूस हुआ कि बॉलीवुडिया कविश्रेष्ठ टोनी कक्कड़ साहेब ने मेरे अंदर उमड़ पड़े केमेस्ट्री के लिए कुछ सही सा लिखा हैं। “सांवली-सलोनी, अदाएं मनमोहिनी…तेरी जैसी बयूटी किसी की भी नी होनी। ठंडे की बोतल, मैं तेरा ओपनर…तुझे घट-घट मैं पी लू। कोका कोला तू….” खिलता चंपई रंग, तीखे नैन-नक्श, घनी केशराशि, सुडौल देहयष्टि—मीन-मेख निकालने की जरा भी तो गुंजाइश नहीं थी। लगता था, जैसे मेरी कल्पना में रची-बसी मेरी देवी साक्षात् उतर आई है।
आनंद की तरंगों पर झूलते हुए मैंने कनखियों से उसे देखा और उसने मुझे। नजरे टकराई, फिर धरती की और झुकी…वो मुस्कुराती किसी भाभी टाइप की महिला संग बैठ नाखूनों को रगड़ते हुए नजरे छुपाकर-झुकाकर ताकाझांकी कर रही हैं, जिसके आँखों के हृदयभेदी तीरों से मैं लहूलुहान सा हो गया। दोनों में हो रही फुसफुसाहट के संग, भाभी ऐसे खिलखिला रही थी मानो अभी-अभी दातों में पतंजलि दंतकांति करके आयी हो।
अभी मन-मस्तिष्क में हुए घुसपैठ से जूझ ही रहा हूँ कि बारिश की बड़ी-बड़ी बूंदों ने बमबारी शुरू कर दी। एक और कहानी अंजाम से पहले, आज बारिश के पानी में यादों का कागजी नाव बन बह चला… हौले हौले, धारा के संग |
जय हो
©पवन Belala Says 2018