अपने छुटकू से शहर में, आज फिर अनजान-पहचान से गलियों में मंजिल की फ़िक्र के बिना पथिक रूपेण भटकने निकला था…मैं!
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अभी कुछ ही दूर, मुझे नंगे पैर मैली-कुचली यूनिफॉर्म और कांधे पर झोला लटकाये स्कूल से आते छोटे-मोटे हँसते खिलखिलाते नन्हे नटखटो की टोली दिखाई दी,
जो सरकारी स्कूल रूपी कैदी खाने से मुक्त हो कर बाहर ही निकले थे…।
उनको देखकर मे कुछ पल के लिए ठहर गया ओर खो गया अपने अतीत पर…
क्योंकि मै भी सरकारी स्कूल का Product हूँ….।
परन्तु आज ये स्कूल, पता नहीं क्यों पिंजरा रूपी क़ैद खाने में बदल गए हैं…
तनिक कान खपाने पर, उन बच्चों की टोली में से 2 बच्चे हन्नी सिंह & रफ़्तार पर चर्चा कर रहे थे…।
मुझे उन बच्चों पर गर्व Feel हुआ कि चलो हमारे बच्चे इतने Updated हैं।
हनी को तोह जानता हूँ मैं, मगर रफ़्तार से Partially ही परिचित हूँ…!
बगल से एक चच्चा को साईकल में जाते देखकर सबसे छोटा पीस बोलता हैं
“Uncle…अंकल… आपके साइकिल का चक्का घूम रहा हैं…|”
हैरान- परेशान से चच्चा की नजरे झुकी क्या, हंसी की खिलखिलाहट के बीच बेचारे Uncle
चच्चा बन चुके थे।