आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय
भारत सरकार नई दिल्ली
माननीय,
आने वाले हर नये वित्तीय वर्ष पर भारतीय जनमानस अपने द्वारा चुनी गई सरकार से यह उम्मीद करता है कि उनकी चयनित सरकार पूरे वर्ष उनकी वित्तीय व्यवस्था और परेशानियों का पूरे मन से आंकलन कर टैक्स और मंहगाई के समायोजन द्वारा हर संभव राहत पहुचाने का प्रयास करेगी । पर वर्ष 2018 के बजट अभिभाषण पर मुझ जैसे करोड़ों मध्यमवर्गीयों को सिर्फ निराश ही नही होना पड़ा बल्कि झटका भी लगा तब जब जेठली जी यह कहते नजर आये कि “मध्यम वर्गीय अपनी चिंता खुद करें “ मतलब साफ था कि सरकार मध्यमवर्गीयों को दरकिनार कर रही है ! पर यह कोई नई बात नहीं है पिछले सत्तर सालों का ये अनकहा सच ही तो है, सत्ता परिवर्तन से सिर्फ यही फर्क आया है कि नई सरकार इसे बताकर कर रही है ।
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भारतीय प्रजातांत्रिक पृष्ठभूमि का सबसे बड़ा वित्तीय सत्य यही है कि पूरी आवादी से सिर्फ मध्यम वर्गीय तबका ही ऐसा है जिनमें जादातर तनखाभोगी है जिनकी टैक्स देना मजबूरी कहें या ईमानदारी जो भी हो, टैक्स अदायगी का इनका एक बहुत बड़ा फिगर है । सरकार की यही सुविधा ही मध्यमवर्गीयों की वेदना भी है कि उनसे टैक्स बसूल कर ही लिया जाता है । कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि मध्यमवर्गीय ही ऐसा तबका है जिसके द्वारा भारत में सबसे जादा संख्या में टैक्स अदा किया जाता है या यों कहें कि मध्यमवर्गीय ही ऐसे हैं जिनके द्वारा टैक्स अदायगी सरकार की मजबूरी है ? चूंकि भारतीय आवादी का 60 प्रतिशत हिस्सा या तो किसान है या उनकी मिरर इमेज गरीबी की है तथा जिनके प्रति सरकारी धारणा टैक्स पेयी की जगह टेक्स उपभोगी ही कही जा सकती है । स्पष्ट कहा जाये तो जनता के द्वारा अदा किये गये टैक्स के उपभोग में सरकार के साथ इस 60 प्रतिशत तथाकथित किसान/स्लम की बराबर की हिस्सेदारी है तब इस परिस्थिती में जेठली जी का यह उद्वोघ अचंभित करता है कि “बांकियों के लिये बहुत हो चुका अब उनकी सरकार गरीबों की सुध लेने जा रही है “ ! अब इसे वित्तीय असंतुलन की हद ही कहा जा सकता है, एक तरफ तो किसानों/स्लमों को चक्रवर्ती किया जा रहा है तो दूसरे तरफ मध्यमवर्गीयों पर दुबलों पर ढ़ाई अषाढ़ !? मध्यमवर्गीयों के हित में भी कुछ होना चाहिये था, यूॅ नकारना नही था हमें ।
प्रधानमंत्री जी से यही निवेदन है कि हर एक वर्ग का पोषण और उसमें संतुलन बनाये रखना सरकार की जिम्मेदारी है, आने वाले समय में हम मध्यमवर्गीयों के मन में कही यह बात घर न कर जायें कि हम मध्यमवर्गीय सरकार द्वारा पोषित नही शोषित आमजन हैं । “सबका साथ सबका विकास” सरकार द्वारा दिया गया नारा है , हमारा साथ तो आपको है पर हमारा विकास हम इस टैक्स अदायगी और मंहगाई के साथ आपके वित्तीय पैमाने पर खोजने के कार्य में लगे हुये हैं ।
बस इतना ही, इसे निवेदन कहें या शिकायत आप तक प्रेषित है ।
विनम्रता के साथ
अभिनव सूद