अटल बिहारी वाजपेयी :- इमरजेंसी के बाद लोगो ने जनता पार्टी पर अपना विश्वास प्रकट किया था । जय प्रकाश जी हमारे नेता थे । उनके नेतृत्व में हमने राज-घाट पर जाकर शपथ ली थी, कि हम मिलकर चलेंगे, मिलकर देश का भला करेंगे । लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जनता पार्टी टूट गयी, बिखर गयी । जय प्रकाश जी ने अपनी आँखों के आगे जनता पार्टी का दुर्घटन देखा । गाँधी के कारण राज-घाट पर जय प्रकाश जी के नेतृत्व में जो शपथ ली गयी थी, उसका हमने पालन नहीं किया, इसका हमें अफ़सोस रहेगा । उसी समय मैंने ये कविता लिखीं थी जो मेरी पीड़ा को थोड़ी मात्रा में व्यक्त करती हैं ।
क्षमा करो बापू तुम हमको,
वचन भंग के हम अपराधी,
राज-घाट को किया अपावन,
मंजिल भूले यात्रा आधी,
जय प्रकाश जी रखो भरोसा,
टूटे सपनो को जोड़ेंगे,
चिता भस्म कि चिंगारी से,
अंधकार की गड़ तोड़ेंगे ।
बाधायें आती हैं आयें,
गिरे प्रलय की घोर घटायें,
पाँवो के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसे यदि ज्वालायें,
निज हाथों से हँसते हँसते,
हाथ लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा ।
हास्य रूदन में तूफ़ानों में,
अमर असंख्यक बलिदानो में,
उद्यानो में विरानो में,
अपमानो में सम्मानो में,
उन्नत मस्तक उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा ।
उजियारो में अंधकार में,
कल कछार में बीच धार में,
घोर घिनाने पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में दीर्घ हार में,
जीवन के शत शत आकर्षक,
अरमानों को दलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा ।
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