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एक दिन प्रसिद्ध ब्रिटिश विचारक जान रस्किन अपने मित्र के साथ लंदन की गलियों से गुजर रहे थे । रास्ता गंदा व कीचड़ भरा था । रस्किन का मित्र बारबार नाक-भौंह सिकोड़ता व कहता कि इस गंदगी में चलने में कितना कष्ट हो रहा है ? इस पर रस्किन हंस कर बोले, ''मित्र, यदि तुम विचार करो तो पाओगे कि हम हीरा, पन्ना और जवाहरातों पर चल रहे हैं ।''
                                                उनका मित्र यह सुनकर चकित हुआ और उनकी तरफ देखने लगा । रस्किन ने आगे कहा, ''तुम्हीं बताओं कि यह काली मिट्टी क्या हैं ? क्या यह उसी खान में से नहीं निकलती है जिस में से हीरा निकलता है । इसलिए मैं कहता हूं कि इस संसार में गंदी या नाचीज कहलाने लायक कोई वस्तु नहीं है । जिसे हम लोग नाचीज समझते हैं, वह बहुधा सब से बढ़ कर उपयोगी निकल जाती है, केवल उसे अपनाने और उसे लेकर आगे बढ़ने का हौसला होना चाहिए।''


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