जानिए एनएसजी में शामिल होने से भारत को क्या होंगे फायदे ?
खास लोग हों या आम हर किसी के दिल और दिमाग में हमेशा एक सवाल कौंधता है कि क्या चीन कभी भारत का दोस्त बनेगा? क्या भारत के खिलाफ चीन अपनी नापाक चाल पर ब्रेक लगाएगा? इन दोनों या इनसे जुड़े कई सवाल हमेशा पीछा करते रहते हैं. दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों को देखें तो वास्तविकता ये है कि चीन ने 1962 में भारत की पीठ में खंजर भोंका था.
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चीन एक तरफ भारत से बेहतरीन रिश्ते बनाने की बात कहता है, तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का खुलकर खिलाफत भी करता है. पिछले साल सियोल में एनएसजी की प्लेनरी बैठक में चीन ने भारत का विरोध किया. ठीक एक साल बाद जून में बर्न में एक बार फिर एनएसजी के मुद्दे पर बैठक होने जा रही है. लेकिन इस दफा चीन के साथ साथ रूस का रवैया दोस्ताना नजर नहीं आ रहा है.
उल्लेखनीय है कि 48 देशों वाले इस समूह में भारत के प्रवेश के मुद्दे पर इसके ज्यादातर सदस्य राजी हैं, मगर चीन लगातार भारत की कोशिशों में अड़ंगा डाल रहा है. वहीं भारत इसकी सदस्यता हासिल करने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहा है. उसने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों का समर्थन भी हासिल कर रखा है, फिर भी उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर चीन खड़ा हो गया है.
चीन नहीं चाहता कि भारत को एनएसजी में प्रवेश मिले. इसके लिए उसने दो शर्तें थोप रखी हैं. सबसे अहम यह है कि जिन देशों ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं, उन्हें सदस्यता से महरूम रखा जाए. इसके साथ ही चीन पाकिस्तान को इस मामले में भारत के बराबर आंकता चला आ रहा है.
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