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ग़ज़ल: जुनूने शौक़ अगर है तो हिचकिचाना क्या

जुनूने शौक़ अगर है तो हिचकिचाना क्या
उतरना पार या कश्ती का डूब जाना क्या
(जुनूने शौक़ = कुछ प्राप्त करने का पागलपन)


हमारे बिन भी वही कहकहे हैं महफ़िल में
हमारा लौट के आना या उठ के जाना क्या

यही कहा है सभी से कि ख़ैरियत से हूँ
अब अपना हाल हर इक शख्स को सुनाना क्या

दिखाने को तो दिखा दूं मैं दिल के ज़ख्म मगर
मैं सोचता हूँ तेरा ज़र्फ़ आज़माना क्या
(ज़र्फ़ = सामर्थ्य/Capacity)

मुझे तो हिज्र के सदमों ने कर दिया पत्थर
तुम्हें भी भूल गया है गले लगाना क्या
(हिज्र = जुदाई)

तुम्हारे ओंठों पे रक्सां है तिश्नगी अब भी
बना दिया है समंदर ने फिर बहाना क्या
(रक्सां = नृत्यमग्न/Dancing, तिश्नगी = प्यास)

जो दिल में है वही चेहरे पे हो तो बेहतर है
दिखावे के लिए बेवज्ह मुस्कुराना क्या

दिलों के राज़ दिलों में सहेज कर रखिये
हर आशना को भला राज़दां बनाना क्या
(आशना = जान पहचान वाला, राज़दां = जिससे राज़ सांझा किये जाएँ)

जब अपनी जीत में अपनों की हार शामिल हो
तो ऐसी जीत पे ऐ दोस्त मुस्कुराना क्या

न जाने कौन सी मिट्टी के तुम बने हो 'भरोल'
तुम्हारा अब भी है उस घर में आना जाना क्या

- राजीव भरोल

बह्र : मफ़ाइलुन फ़यलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन (1 2 1 2 -1 1 2 2 – 1 2 1 2 – 2 2)


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